'बालिका वधू' के दौरान जैसलमेर में आनंदी ने लिया था 5 हजार बच्चों से बाल विवाह न करने का वादा, और उस साल इलाके में...
अभी बहुत से सपने हैं जो पूरे होने बाकी हैं। मैंने अपने सपनों का भी स्तर इतना अलग-अलग सेट किया है कि एक सपना पूरा होने पर दूसरा नया सपना देख लेती हूं। खुद को कभी आराम नहीं करने देती हूं।
By Priti KushwahaEdited By: Updated: Sat, 14 Aug 2021 03:20 PM (IST)
प्रियंका सिंह, मुंबई। टीवी पर कई ऐसे शो रहे हैं, जिनमें कोई न कोई सामाजिक संदेश रहा है। कलर्स चैनल का शो 'बालिका वधू' में उनमें से एक रहा है। अब इस शो का दूसरा सीजन बालिका वधू 2 शुरू हो चुका है। पहले सीजन में बाल आनंदी की भूमिका निभाने वाली अविका गौर अब दक्षिण भारतीय फिल्मों की अभिनेत्री बन चुकी हैं। वह 'बालिका वधू 2' के प्रमोशन से जुड़ी हैं। उनका मानना है कि बाल विवाह जैसी कुप्रथा पर बात करनी चाहिए और इसे बंद होना चाहिए...
आप दूसरे सीजन का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन प्रमोशन के लिए आगे आई हैं। क्या वजह रही?बालिका वधू शो करना मेरे लिए जीवन बदलने वाला अनुभव रहा है। जिन लोगों ने यह शो देखा, उन्होंने शो से काफी कुछ सीखा है। ऐसे शो टीवी पर कम ही बनते हैं, जो मनोरंजन करने के साथ कुछ सिखा भी जाते हैं। ऐसे में यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं इस शो को प्रमोट करूं। बालिका वधू एक मास्टर पीस शो रहा है। शो को नई कास्ट के साथ वापस लाना बड़ी चुनौती है। बाल विवाह जैसी कुप्रथा को मिटाने के लिए इस तरह के शो बनने ही चाहिए।
डिजिटल प्लेटफार्म के दौर में टीवी के जरिए संदेश देना कितना मायने रखता है?मुझे लगता है कि बालिका वधू का पहला सीजन जब हमने किया था, वह इस डिजिटल के जमाने से ज्यादा चुनौतीपूर्ण था। साल 2008 में इंटरनेट मीडिया का इतना जोर नहीं था। सास-बहू शो ज्यादा चलते थे, तब एक नए चैनल पर ऐसा शो लाना, जिसमें सामाजिक संदेश हो, वह मुश्किल था। अब सिर्फ अच्छा कंटेंट लिखना होता है। बालिका वधू कांसेप्ट नया नहीं है, दुर्भाग्यवश ऐसा अब भी होता है। जितना हम इस बारे में बात करेंगे और समझाएंगे कि यह प्रथा गलत है, तभी शायद कोई बदलाव आएगा।
क्या आपने कोई बदलाव पहले सीजन के दौरान देखा था?हां, बहुत सारे बदलाव हुए थे। जब हम शो का पहला सीजन लांच कर रहे थे, तब जैसलमेर जाना हुआ था। वहां पर मैंने पांच हजार बच्चों के बीच खड़े होकर उनसे वादा लिया था कि इस बार यहां बाल विवाह नहीं होगा, न हम होने देंगे। उस साल पता चला था कि उस इलाके में एक भी बाल विवाह नहीं हुआ था। कोलकाता में भी एक बच्ची अपने शादी के मंडप से उठ गई थी कि आनंदी (शो का किरदार) ने मना किया है। दिल्ली में उस वक्त एक अंकल मिले थे, उन्होंने कहा था कि हमें शर्म आती है कि हमारे यहां बाल विवाह की प्रथा है, जो हो गया उसका कुछ नहीं कर सकते हैं, लेकिन आगे ऐसा नहीं होगा। गर्व होता है कि हम बदलाव का हिस्सा बने।
आप 24 की उम्र में न सिर्फ दक्षिण भारतीय सिनेमा में काम कर रही हैं, बल्कि निर्माता भी बन गई हैं। इन उपलब्धियों को इतनी कम उम्र में कैसे संभाल रही हैं?जब बहुत कम उम्र में उपलब्धियां मिलती हैं तो बड़े होने तक उनकी आदत हो जाती है। मैं जब आठ-नौ साल की थी, तब बालिका वधू शो में काम करना शुरू किया था। इसके बाद से मेरी जिंदगी बहुत बदल गई, जीवन को अलग तरीके से देखना शुरू किया। मैंने समझ लिया था कि सिर्फ अभिनय ही नहीं, मुझे बहुत कुछ सीखना है। जब आपको समझ आ जाता है कि आप बड़े सपने देख सकते हैं और उस दिशा में सोच सकते हैं तो कोई आपको रोक नहीं सकता है। जीवन में कुछ भी देर से या जल्दी नहीं होता है, हर चीज का अपना वक्त होता है। मैं जीवन के जिस मोड़ पर हूं, मुझे लगता है कि मैं ये सारी जिम्मेदारियां निभा पाऊंगी। मेरे आसपास ऐसे लोग हैं, जिन्होंने मुझे आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया और मुझे अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकाला है। आपने कम उम्र में काम शुरू किया था। सब बाल कलाकार इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाते। क्या बाल कलाकार पर जिम्मेदारी कम उम्र से ही आ जाती है?मैं अपनी बात कहूं तो मेरे माता-पिता ने मेरे सामने एक शर्त रखी थी कि एक्टिंग करनी है तो पढ़ाई भी करनी होगी। मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। मेरे कुछ दोस्त थे, जो स्कूल खत्म करके स्विमिंग करने जाते थे। वह उनका शौक था। मेरा शौक एक्टिंग करना था। मेरे परिवार ने मेरे लिए काम आसान कर दिया था। मैं यह नहीं कहती कि बच्चों को इतनी जल्दी जिम्मेदारी देनी चाहिए। न मेरे माता-पिता ने मुझे दी थी, न मैं दूसरे बच्चों के लिए ये चाहूंगी। खेलने-कूदने की उम्र में जिम्मेदारी देना गलत है। अगर बच्चा खुद दिलचस्पी लेता है तो अलग बात है।
आपके हिंदी दर्शक काफी रहे हैं। ऐसे में हिंदी की बजाय दक्षिण भारतीय फिल्मों में काम करने की क्या वजह रही?मैं इंतजार कर रही हूं कि मेरे पास हिंदी में कोई अच्छा कांसेप्ट आए। अभी फिलहाल तेलुगु पर फोकस है, क्योंकि यहां कंटेंट को लेकर काफी मौके हैं। इन दिनों तो कई तेलुगु फिल्मों की हिंदी रीमेक बन रही हैं। अपने निर्माण में बनने वाले कंटेंट में कितनी कोशिश होगी कि कुछ संदेश देने वाली बात हो?जब फिल्म में सामाजिक संदेश नहीं होता है, तब भी कोई न कोई संदेश तो होता ही है। थ्री ईडियट्स, जिंदगी ना मिलेगी दोबारा ये कुछ ऐसी फिल्में हैं, जो किसी सामाजिक मुद्दे पर नहीं बनी थीं, लेकिन इन फिल्मों में अहम संदेश थे। कोशिश करूंगी कि अपनी फिल्मों में भी कोई न कोई संदेश दूं, भले ही सामाजिक संदेश न हो, लेकिन जिंदगी में वे संदेश काम आएं। अभिनय को लेकर जो सपने देखे थे, उनमें से कितने पूरे हो गए हैं?अभी बहुत से सपने हैं, जो पूरे होने बाकी हैं। मैंने अपने सपनों का भी स्तर इतना अलग-अलग सेट किया है कि एक सपना पूरा होने पर दूसरा नया सपना देख लेती हूं। खुद को कभी आराम नहीं करने देती हूं।