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भारतीय संस्कृति से सजा ये था 90s का सबसे मशहूर शो, एक हफ्ते में मिली 14 लाख चिट्ठियां, किराए पर लेना पड़ा था टैंपो

90 के दौर में दूरदर्शन पर बहुत से सीरियल टेलीकास्ट हुआ करते थे जिनकी अपनी ही पॉपुलैरिटी हुआ करती थी। उस दौर में रामायण और महाभारत जैसे शो भी काफी पॉपुलर थे। इन सबके बीच एक शो ऐसा भी था जिसकी लोकप्रियता अपने आप में एक रिकॉर्ड बन गई। ये शो इतना पॉपुलर हुआ कि पोस्ट ऑफिस वाले तक परेशान हो गए थे।

By Karishma Lalwani Edited By: Karishma Lalwani Updated: Mon, 27 May 2024 09:25 PM (IST)
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90 के दशक में दूरदर्शन का लोकप्रिय शो था सुरभि

एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। आज मनोरंजन का जरिया काफी बढ़ गया है। आप ट्रैवल कर रहे हों या खाना खा रहे हों, ओटीटी और यूट्यूब पर हर कंटेंट मौजूद है। आप कभी भी अपने मनचाहे शो देख सकते हैं। लेकिन एक वक्त था, जब सभी लोगों के घरों में टीवी तक नहीं हुआ करती थी। लोग अपने पसंदीदा शो पड़ोसियों के घर जाकर देखा करते थे। 

90 के दौर में मशहूर था दूरदर्शन का ये शो

उस दौर में आने वाले शो की लोकप्रियता टीआरपी से नहीं, बल्कि लोगों से रियल में मिलने वाले प्यार से आंकी जाती थी। 90 का दशक वह दौर था, जब महाभारत और रामायण काफी पसंद किए जाते थे। जिस जमाने में ऐसे पौराणिक सीरियल्स चलन तेज था, उस जमाने में एक ऐसा भी शो था, जिसके दीवाने लोगों ने मेकर्स को चिट्ठियां लिखनी शुरू कर दी। खास बात य है कि इतने मेकर्स के पास इतने पोस्टकार्ड आ गए कि इसके लिए टेंपो तक उधार में लेना पड़ गया।

भारत की संस्कृति से सजा था ये शो

90 के दशक में रेणुका शहाणे (Renuka Shahane) और सिद्धार्थ कार्क का शो 'सुरभि' दूरदर्शन पर टेलीकास्ट किया जाता था। 1990 से 2001 तक चला यह शो उस समय का सबसे ज्यादा दर्शक पाने वाला धारावाहिक था। 'सुरभि' सीरियल में भारत की संस्कृति और स्थानीय कला की बात होती थी। इसे देखने वाले दर्शक इस शो के ऐसे दीवाने थे कि वह चिट्ठियां भेज कर अपनी बात पहुंचाया करते थे। 

लिम्का बुक में दर्ज है नाम

शो पर देखते ही देखते इतनी चिट्ठियां आने लगीं कि डाक विभाग तक परेशान हो गए। लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में 'सुरभि' के नाम सबसे ज्यादा चिट्ठियों का रिकॉर्ड है। शो के प्रोड्यूसर सिद्धार्थ कार्क ने बताया था एक हफ्ते में 14 लाख चिट्ठियां मिली थीं। इतना ही नहीं, चिट्ठियों की संख्या इतनी ज्यादा होने के कारण पोस्ट ऑफिस में जगह कम पड़ने लगी थी। लिहाजा डाक विभाग ने मंत्रालय से शिकायत की, जिसके बाद पोस्टकार्ड की कीमत बढ़ा दी गई।  

उम्मीद से ज्यादा मिली थी चिट्ठियां

सिद्धार्थ ने एक इंटरव्यू में बताया था कि हमारी टीम थी, जो भी लोग जानना चाहते थे, वो सब आपको बता देते थे। आपको सिर्फ पूछना होता था और वो आपको इसकी जानकारी देते थे। शो को पहले कुछ महीनों में 10-15 और फिर 100-200 चिट्ठियां मिलीं। लेकिन 4-5 महीने बाद हमें लगभग पांच हजार पोस्टकार्ड मिलने लग गए थे। ये काफी मुश्किल हो गया था। आपको हर पोस्टकार्ड को पढ़ना होता था। इसलिए हमने दर्शकों से एक चिट्ठी भेजने के लिए कहा। हमें मिलने वाली चिट्ठियां उम्मीद से भी ज्यादा थीं।

टैंपो में भरकर आई थी चिट्ठियां

सिद्धार्थ काक ने बताया कि उस वक्त एक पोस्टकार्ड की कीमत 15 पैसे हुआ करती थी। सरकार इसे सब्सिडी पर देती थी। क्योंकि लोग इसी के जरिये बात करते थे, इसलिए सरकार की तरफ से इस पर छूट दी जाती थी। जबकि, एक पोस्टकार्ड की कीमत करीब 50 पैसे थी। शो के लिए लोग इतनी चिट्ठियां भेजने लगे थे कि पोस्ट ऑफिस वाले भी परेशान हो गए थे।

काक ने बताया कि एक बार उन्हें अंधेरी पोस्ट ऑफिस से फोन आया था। उनसे कहा गया कि चिट्ठियों को रखने की जगह नहीं है और इतनी बड़ी मात्रा में चिट्ठी पहुंचाने का साधन भी नहीं है। आप खुद आकर इसे ले जाइये। इतनी चिट्ठियों को एक साथ ले जाने के लिए हमें टैंपो करना पड़ गया था। सैकड़ों बैग चिट्ठियों से भरे थे। इन चिट्ठियों को एक बंद कमरे में काउंट किया जाता था।

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