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Boman Irani Interview: रिश्तों की वास्तविकता मुश्किलों में ही पता चलती है- बमन ईरानी

Boman Irani Interview डिज्नी प्लस हॉटस्टार की वेब सीरीज मासूम में बमन ईरानी एक पिता के किरदार में हैं जिसका उसकी बेटी से रिश्ता कड़वाहट भरा है। बमन का ये ओटीटी डेब्यू भी है। सीरीज को लेकर बमन ने बातचीत की है।

By Manoj VashisthEdited By: Updated: Thu, 16 Jun 2022 03:43 PM (IST)
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Boman Irani Interview on His Role In Masoom. Photo- Instagram
दीपेश पांडेय, मुंबई। हिंदी सिनेमा में दो दशक से सक्रिय अभिनेता बमन ईरानी डिज्नी प्लस हाटस्टार की वेब सीरीज मासूम से डिजिटल प्लेटफॉर्म पर पदार्पण कर रहे हैं। आज से स्ट्रीमिंग के लिए उपलब्ध एक पिता और पुत्री के जटिल रिश्तों पर आधारित यह शो आयरिश शो ब्लड का भारतीय रूपांतरण है। इसके अलावा बमन अगले साल बतौर निर्देशक भी अपनी नई पारी की शुरुआत करने के लिए तैयार हैं। बमन के मुताबिक, रिश्तों पर आधारित कहानी प्रस्तुत करना सबसे चुनौतीपूर्ण काम है-

उम्र के इस पड़ाव पर डेब्यू करने जैसा शब्द सुनना कैसा लगता है?

मुझे उम्र से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि मेरी उम्र 62 साल है, तो डेब्यू जैसा शब्द अच्छा नहीं होगा। अगर मैं ऐसा सोचता तो 44 साल की उम्र में फिल्मों में नहीं आता, 35 साल की उम्र में फोटोग्राफर नहीं बनता, 37 साल की उम्र में थिएटर नहीं करता और 62-63 वर्ष की उम्र में निर्देशन शुरू करने के बारे में नहीं सोचता। अगले साल मैं बतौर निर्देशक अपनी पारी की शुरुआत करने वाला हूं। मेरे लिए समय और तारीख कोई मायने नहीं रखता है। जैसे किसी नौजवान को अपने डेब्यू पर उत्साह होता है, (हंसते हुए) उसी तरह यह नौजवान (स्वयं की तरफ दिखाते हुए) भी डिजिटल प्लेटफार्म पर डेब्यू करने के लिए उत्साहित है।

इससे पहले भी आपको कई वेब सीरीज के ऑफर आए होंगे, फिर इसमें स्वीकार करने जैसी क्या चीजें दिखी?

(सोचकर) राइटिंग से बहुत फर्क पड़ता है, सब कुछ अच्छी राइटिंग पर ही निर्भर करता है। अगर हमने अपने छोटे से दिमाग से अच्छी राइटिंग को परख लिया, तो आधी जंग वही जीत ली जाती है। ऐसा नहीं कि इससे पहले मुझे जिन वेब सीरीज के आफर आए, वह अच्छे नहीं थे, लेकिन इसकी टाइमिंग भी सही थी। इस शो का जब मुझे ऑफर मिला, तो मेरे पास वक्त था। मुझे एक सेट से दूसरे सेट पर भागने की जरूरत नहीं थी। इस शो को करने के सिर्फ दो कारण राइटिंग और टाइमिंग है।

क्या मूल शो को देखने या उसके बारे में जानने की कोशिश की?

मैं नहीं जानता कि मैंने गलत किया या सही, लेकिन मेरा यह सोचा-समझा निर्णय था कि मैं वह शो नहीं देखूंगा। मैं उस शो से अच्छे या बुरे, किसी भी तरह से प्रभावित नहीं होना चाहता था। एडाप्टेशन के बाद हमारे सामने सवाल था कि किरदारों को किस तरह से जीवंत किया जाए? मैंने सोचा कि अगर मैं मूल शो को देखकर अपने किरदार में कुछ सुधार करके करूं, तो गलत होगा। उसके बिल्कुल विपरीत करूं, तो भी गलत होगा। इसीलिए मैंने सिर्फ स्क्रिप्ट पढ़ कर अपने अनुसार ईमानदारी से काम करने का निर्णय लिया।

पिता और संतान के रिश्तों के बीच बढ़ती जटिलता का आप क्या कारण मानते हैं?

(सोचकर) जहां तक मैंने देखा है कि संतान के पैदा होने के पहले दो साल तो पिता सिर्फ डायपर बदलता है। जब बच्चे दो-तीन साल के होते हैं, तो पिता की भूमिका शुरू होती है और वह उनकी हरकतों में रोक-टोक करके सुधार करने लग जाते हैं। पांच साल की उम्र तक पहुंचने का बाद बच्चों की हरकतें बदल जाती हैं, दस साल का होते-होते उसका पूरा व्यक्तित्व बदल जाता है। यूं कह सकते हैं कि हर दो साल में बच्चे के स्वभाव में बड़ा बदलाव आता है, लेकिन पिता बच्चे से हमेशा उसी स्वभाव की अपेक्षा करता है, जैसा स्वभाव उसकी चार-पांच साल की उम्र में था। यह कभी संभव नहीं है। ऐसे स्थिति में दोनों के रिश्तों में जटिलता आती जाती है। इंसानों में होने वाले बदलावों के साथ उन्हें स्वीकार करना और उनके साथ चलना ही तो रिश्ता होता है। रिश्तों की वास्तविकता समस्याएं आने के बाद पता चलती है। मासूम में भी वही दिखाया गया है। जिस फिल्म का निर्देशन मैं करने वाला हूं, वह भी रिश्तों पर आधारित है। सिर्फ रिश्तों पर आधारित फिल्म लिखना बहुत चुनौतीपूर्ण काम होता है।

डंकी राजकुमार हिरानी के निर्देशन में बनी आपकी छठवीं फिल्म होगी, क्या उनसे ऑफर हुई स्क्रिप्ट स्वीकार करने के पैमाने अलग होते हैं?

नहीं-नहीं, उनकी स्क्रिप्ट के लिए भी मेरे पैमाने वही होते हैं, जो दूसरे फिल्मकारों की स्क्रिप्ट के लिए होते हैं। मैं कभी उनके साथ घर की मुर्गी जैसा व्यवहार नहीं करता हूं, क्योंकि घर की मुर्गी हमेशा दाल बराबर ही होती है। काम को लेकर हमें गंभीरता से सोचना पड़ता है। हम जो भी किरदार निभाते हैं, उन्हें एक बार फिल्म रिलीज हो जाने के बाद कोई नहीं बदल सकता है। तो हर फिल्म के चुनाव से लेकर शूटिंग तक उतनी ही कठिन मेहनत करनी पड़ती है। कठिन मेहनत सिर्फ बार-बार रिहर्सल करना नहीं होता है, बल्कि अपनी आंखे बंद करके अपने किरदार के बारे में कल्पना करना और कुछ ऐसा काम करना होता है कि लोग याद रखें।