Move to Jagran APP

'मिथ्या’ और ‘क्रिमिनल जस्टिस’ से लेकर ‘रुद्रा- द एज आफ डार्कनेस’ तक, ये हैं विदेशी वेब सीरिज के हिन्दी रिमेक

ब्रिटिश वेब सीरीज ‘चीट’ की हिंदी रीमेक ‘मिथ्या’ जी5 रिलीज हुई। जल्द ही ब्रिटिश शो ‘लूथर’ की रीमेक ‘रुद्रा- द एज आफ डार्कनेस’ डिज्नी प्लस हाटस्टार पर रिलीज होगी। इससे पहले भी विदेशी शोज के भारतीय रीमेक जैसे ‘क्रिमिनल जस्टिस’ ‘आउट आफ लव’ ‘योर आनर’ लोकप्रिय रहे हैं।

By Ruchi VajpayeeEdited By: Updated: Fri, 25 Feb 2022 12:19 PM (IST)
Hero Image
mithya and Rudra Hindi remakes of foreign web series
दीपेश पांडेय, मुंबई ब्यूरो। डिजिटल प्लेटफार्म पर विदेशी फिल्में और शो सहजता से उपलब्ध होने के बावजूद इन दिनों निर्माता विदेशी शोज को भारतीय पृष्ठभूमि में रूपांतरित करने में दिलचस्पी ले रहे हैं। हाल ही में ब्रिटिश वेब सीरीज ‘चीट’ की हिंदी रीमेक ‘मिथ्या’ जी5 रिलीज हुई। जल्द ही ब्रिटिश शो ‘लूथर’ की रीमेक वेब सीरीज ‘रुद्रा- द एज आफ डार्कनेस’ डिज्नी प्लस हाटस्टार पर रिलीज होगी। इससे पहले भी विदेशी शोज के भारतीय रीमेक जैसे ‘क्रिमिनल जस्टिस’, ‘आउट आफ लव’, ‘योर आनर’, ‘आर्या’ और ‘होस्टेजेज’ बेहद लोकप्रिय रहे हैं। विदेशी शोज के हिंदी रीमेक के प्रति निर्माताओं की बढ़ती दिलचस्पी व निर्माण की चुनौतियों की पड़ताल कर रहे हैं दीपेश पांडेय...

अच्छी कहानियां चाहे जहां की हों, वे निर्माताओं को आकर्षित करती हैं। इन कहानियों को भारतीय सितारों और परिस्थितियों के साथ बनाने के बाद दर्शकों की दिलचस्पी उनमें बढ़ जाती है। यही बात निर्माताओं को विदेशी कहानियों को भारतीय पृष्ठभूमि में रूपांतरित (अडैप्ट) करने के लिए प्रेरित करती है। ‘क्रिमिनल जस्टिस’, ‘होस्टेजेज’ और ‘योर आनर’ जैसे कई विदेशी शोज को हिंदी में अडैप्ट कर चुकी प्रोडक्शन कंपनी एप्लाज एंटरटेनमेंट के सीईओ समीर नायर कहते हैं, ‘डिजिटल से पहले टीवी पर ‘कौन बनेगा करोड़पति’, ‘इंडियन आइडल’ और ‘बिग बास’ जैसे कई रियलिटी शोज को भारतीय पृष्ठभूमि में अडैप्ट किया गया और वे सफल रहे। अडैप्टेशन की शुरुआत कहानी से होती है। हम देखते हैं कि बतौर दर्शक क्या हम उस कहानी को अपने परिवेश में देखना पसंद करेंगे। अगर हमें दिखता है कि कहानी को भारतीय परिवेश में सेट किया जा सकता है तो हम आगे बढ़ते हैं। अडैप्टेशन सिर्फ हमारे यहां ही नहीं, बल्कि हर जगह हो रहा है। बहुत से ब्रिटिश शोज का अडैप्टेशन अमेरिका में किया गया है, बहुत से एशियन शो को ब्रिटेन में अडैप्ट किया गया है।’

मिलता है बड़ा दर्शक वर्ग:

विदेशी कहानियों को भारत में ज्यादा दर्शकों ने नहीं देखा होता है। ‘मनी हाइस्ट’, ‘जैक रायन’ और ‘गेम आफ थ्रोंस’ जैसे ही कुछ गिने चुने अंतरराष्ट्रीय शो हैं, जिनसे भारतीय दर्शकों का बड़ा वर्ग परिचित है। ऐसे में विदेशी कहानी को भारतीय सितारों और परिस्थितियों के साथ बनाने के बाद उसे एक बड़ा दर्शक वर्ग मिल जाता है। वेब सीरीज ‘योर आनर’ के अभिनेता वरुण बडोला का कहना है, ‘अडैप्टेशन के लिए ज्यादातर ऐसे शो ही उठाए जाते हैं, जो हमारे यहां के मुख्यधारा के दर्शकों में ज्यादा लोकप्रिय न हों। अक्सर नेटफ्लिक्स या अमेजन प्राइम वीडियो जैसे बड़े प्लेटफाम्र्स के वैश्विक स्तर पर हिट हुए शो को अडैप्ट नहीं किया जाता है। हिंदुस्तानी दर्शकों का एक तबका ही विदेशी शोज को देखता है। ऐसे में अगर किसी अच्छे विदेशी शो को हिंदी भाषा में मसालेदार तरीके से बना दिया जाए तो उसे एक बड़ा दर्शक वर्ग मिल जाता है।’

भारतीय परिवेश में ढालना चुनौती:

अलग-अलग देशों के समाज और संस्कृति में काफी फर्क होता है। किसी विदेशी शो को अपनी भाषा और परिस्थितियों में रूपांतरित करते समय सबसे बड़ी चुनौती प्रत्येक किरदार को एक अलग पृष्ठभूमि में तैयार करना होता है। इस बारे में वेब सीरीज ‘क्रिमिनल जस्टिस’ के निर्देशक विशाल फुरिया कहते हैं, ‘क्रिमिनल जस्टिस’ का ब्रिटिश वर्जन अलग इसलिए है, क्योंकि वहां का कायदा कानून हमारे कानून की तुलना में बिल्कुल अलग तरीके से काम करता है। वहां पर न्यायिक प्रक्रियाएं तेज होती हैं, जबकि भारत में आदमी कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने से बचना चाहता है। इन चीजों को देखते हुए ‘क्रिमिनल जस्टिस’ में एक युवा लड़के के आपराधिक मामले में फंसने की कहानी भारतीय पृष्ठभूमि में दिखाना काफी दिलचस्प बन गया था। हमारा सामाजिक नजरिया भी अलग है। किसी के ऊपर आरोप लगते ही हम उसे अपराधी मानने लगते हैं। इन चीजों को देखते हुए कहानी काफी बदल जाती है। ऐसा नहीं था कि हमने सीधा वहां की कहानी को उठाकर पेस्ट कर दिया है, ऐसा करके सफल होना संभव नहीं है।’

मूल भावनाएं वही:

अलग-अलग देशों की परिस्थितियां भले ही अलग हों, लेकिन प्यार, स्नेह, गुस्सा, बदला, दुख, प्रसन्नता, करुणा और दया की भावनाएं एक जैसी ही होती हैं। अडैप्टेशन के वक्त निर्माता-निर्देशक मूल भावनाओं से छेड़छाड़ करने से बचते हैं। ‘मिथ्या’ के निर्देशक रोहन सिप्पी कहते हैं, ‘कुछ चीजें हर जगह एक जैसी होती हैं और कुछ चीजें अलग होती हैं। हमारे शो में यूनिवर्सिटी और साहित्य का माहौल दिखाया गया है। वो इंग्लैंड में हो या भारत में उसमें काफी समानता होती है। हमने अपने शो में उस सेटिंग से छेड़छाड़ नहीं की। भारतीय दर्शकों के मुताबिक हम कई नई चीजें लेकर आए जैसे हुमा को हिंदी प्रोफेसर दिखाया। शो के विषय को नहीं बदल सकते, लेकिन कई चीजें हैं, जिनमें बदलाव करने पर लोगों को फर्क नहीं पड़ता।’

नयापन लाने की कोशिश:

विदेशी शो के रूपांतरण में निर्माता, निर्देशक और लेखक की कोशिश उसी कहानी में नयापन लाने की होती है। कलाकार भी नकल से बचते हैं। उनकी कोशिश किरदार को अपनी शैली और समझ के अनुसार निभाने की होती है। इस बारे में ‘रुद्रा- द एज आफ डार्कनेस’ के अभिनेता अजय देवगन कहते हैं, ‘ मूल शो ‘लूथर’ मैंने बहुत पहले ही देख लिया था। ‘रुद्रा’ स्वीकार करने के बाद मैंने उसके बारे में सोचा ही नहीं, क्योंकि हमारे यहां वह नहींचलता।

यहां हमें कहानी को भारतीय संस्कृति और दर्शकों के अनुसार बनाना पड़ता है। मुझे नहीं लगता है कि ‘लूथर’ का इस पर कोई प्रभाव पड़ेगा।’

जुड़ाव जरूरी:

विदेशी संस्कृति और सभ्यता के बारे में जानने की उत्सुकता दर्शकों को विदेशी फिल्मों और शो की तरफ आकर्षित करती है। हालांकि, उसी कहानी को भारतीय पृष्ठभूमि में अडैप्ट करते वक्त निर्माता-निर्देशक यह जरूर ध्यान में रखते हैं कि हमारे देश के दर्शक उससे खुद को जोड़ सकें। उनकी परिस्थितियों और भावनाओं को समझ सकें। इस बाबत वेब सीरीज ‘रुद्रा- द एज आफ डार्कनेस’ के निर्देशक राजेश मापुसकर का कहना है, ‘आप जब कोई विदेशी शो देखते हैं तो वे कहानियां उस संस्कृति से जुड़ी होती हैं। वे कहानियां आपको अच्छी लगनी शुरू हो जाती हैं, क्योंकि वह कल्चर आपके लिए नया है। अगर मुझे ब्रिटिश संस्कृति की कहानी को भारतीय संस्कृति में फिट करके बतानी है तो उसको पूरी तरह से भारतीय रंग में ढालना जरूरी है।’

सीखने का मौका:

पश्चिमी देशों की तुलना में डिजिटल प्लेटफार्म हमारे यहां नया है। लिहाजा सिनेमा विशेषज्ञ अच्छे विदेशी शोज को अपनी पृष्ठभूमि में रूपांतरित करने की प्रक्रिया को निर्माताओं, निर्देशकों और लेखकों को लिए सीखने का एक अच्छा मौका मानते हैं। इस बाबत रोहन सिप्पी कहते हैं, ‘पश्चिमी देशों में वेब सीरीज की लोकप्रियता टेलीविजन से आई है। वहां पर साप्ताहिक शो चलते हैं। ‘गेम आफ थ्रोंस’ जैसे कई सुपरहिट शोज वहां टीवी के शो हैं। वहां पर टीवी और डिजिटल के लिए कंटेंट लेखन का तरीका समान है। पिछली सदी के आठवें और नौवें दशक में दूरदर्शन के दौर में यह कल्चर हमारे यहां भी था। पिछले 10-15 वर्ष से टीवी में डेली एपिसोड सिस्टम की वजह से हमारे लेखन की क्वालिटी प्रभावित हुई है। विदेशी शो का अडैप्टेशन शुरुआती दौर में हमारे लिए अच्छा है, क्योंकि उससे काफी चीजें सीखेंगे। उम्मीद है भविष्य में हमारे ओरिजिनल कंटेंट विदेश में अडैप्ट किए जाएंगे, क्योंकि लेखकों,

निर्माताओं और प्लेटफाम्र्स के पास भी अनुभव हो जाएगा।’