Netflix के टॉप 10 शोज़ में शामिल हुई बुराड़ी केस पर बनी डॉक्यूमेंट्री सीरीज़ 'हाउस ऑफ़ सीक्रेट्स', जानिए क्या है ख़ास
पार्च्ड और राजमा चावल जैसी बेहतरीन फ़िल्में बनाने वालीं फ़िल्ममेकर लीना यादव ने इस दहलाने वाले केस पर एक डॉक्यूमेंट्री सीरीज़ हाउस ऑफ सीक्रेट्स- द बुराड़ी डेथ्स बनायी है जो इस समय नेटफ्लिक्स के टॉप 10 शोज़ की सूची में दूसरे नम्बर पर चल रही है।
By Manoj VashisthEdited By: Updated: Mon, 18 Oct 2021 07:13 AM (IST)
मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। 2018 में दिल्ली के बुराड़ी इलाके के संत नगर में एक ही परिवार के 11 सदस्यों की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत की ख़बर ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था। सभी सदस्यों के मृत शरीर घर में ही एक जाल पर दुपट्टों और साड़ियों से लटके हुए मिले थे। यह केस पुलिस विभाग के लिए भी एक रहस्य बन गया था। क्राइम ब्रांच ने इस केस की हत्या और आत्महत्या के एंगल से जांच की थी और जांच के दौरान जब इस केस की परतें खुलीं तो कई रोंगटे खड़े करने वाले तथ्य सामने आये, जिनका संबंध मनोविज्ञान, समाज शास्त्र से लेकर कल्ट तक से जुड़ा हुआ था।
पार्च्ड और राजमा चावल जैसी बेहतरीन फ़िल्में बनाने वालीं फ़िल्ममेकर लीना यादव ने इस दहलाने वाले केस पर एक डॉक्यूमेंट्री सीरीज़ हाउस ऑफ सीक्रेट्स- द बुराड़ी डेथ्स बनायी है, जो इस समय नेटफ्लिक्स के टॉप 10 शोज़ की सूची में दूसरे नम्बर पर चल रही है। यह सीरीज़ प्लेटफॉर्म पर 8 अक्टूबर को स्ट्रीम की गयी थी। लीना ने सीरीज़ के ज़रिए इस केस से जुड़े तकरीबन हरेक पहलू को कवर करने की कोशिश की है। चाहे वो क्राइम ब्रांच की जांच हो या उस दौरान मीडिया कवरेज या फिर इस केस के पीछे छिपे मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारण हों।
'हाउस ऑफ सीक्रेट्स' में क्या है ख़ास
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हाउस ऑफ सीक्रेट्स तीन एपिसोड्स की सीमित सीरीज़ है। हरेक एपिसोड की अवधि लगभग 40 मिनट है। पहला एपिसोड केस और सीरीज़ का बिल्ड आप करता है। दूसरा एपिसोड मुख्य रूप से इनवेस्टिगेशन पर फोकस हैं और तीसरे एपिसोड में इसके सामाजिक, मानसिक और परलौकिक पहलुओं पर बात की गयी है। हाउस ऑफ सीक्रेट्स बुराड़ी केस को समझने का मुकम्मल दस्तावेज़ है। सीरीज़ देखते हुए एक थ्रिल का एहसास भी होता है। पड़ोसियों, रिश्तेदारों, दोस्तों के इंटरव्यूज़ इमोशनल करते हैं। जिस परिवार में 10 दिन पहले बेटी की सगाई का जश्न मनाया गया हो, शैक्षिक और आर्थिक रूप से सम्पन्न हो, वहां सामूहिक आत्म-हत्या की आख़िर क्या वजह हो सकती?
11 मृत शरीर, जाल में लोहे की 11 पट्टियां और घर की बाहरी दीवार पर लगे 11 पाइप की रिपोर्टिंग चौंकाने वाली लगती है। बुराड़ी केस को लेकर उस दौरान चैनलों पर जो कवरेज हुई, वो एक तरह से मीडिया के हल्केपन को आइना दिखाने वाला है। डॉक्यूमेंट्री सीरीज़ में केस को कवर करने वाले पत्रकार, जांच करने वाले पुलिस अधिकारी, पड़ोसियों और विशेषज्ञों की बातचीत के आधार पर सामूहिक आत्म-हत्या के कारणों को समझने की कोशिश की गयी है। इसे साइकोलॉजिकल समस्या साइकोसिस के तौर पर देखा गया, जिसका शिकार परिवार को छोटा बेटा ललित था।
हालांकि, डॉक्यूमेंट्री इसकी गहराई में नहीं जाती, मगर इंटरव्यूज़ के ज़रिए दिखाया गया है कि ललित का 1988 में एक्सीडेंट हुआ था, जिसमें उसके सिर में गहरी चोट आयी थी। फिर कुछ साल पहले उस पर जानलेवा हमला हुआ था, जिसमें वो बुरी तरह ज़ख़्मी हुआ था। इसके बाद क़रीब तीन साल तक उसकी आवाज़ चली गयी थी। हालांकि, कहा यह भी गया कि ललित ने आवाज़ चले जाने का बहाना किया था।
सीरीज़ में रजिस्टर में लिखे इंस्ट्रक्शंस को एक वॉइसओवर और ग्राफिक्स के ज़रिए दिखाया गया है। पिता की आत्मा का आने का शेड्यूल बताना, घर वालों को ललित की बात मानने की हिदायत, वटवृक्ष की जड़ों की तरह लटकना... रजिस्टर की यह बातें सुनकर सिहरन होती है। बिल्कुल किसी साइकोलॉजिल-थ्रिलर शो की तरह। लीना ने डॉक्यूमेंट्री के लिए अधिकतर इंटरव्यूज़ और स्टॉक फुटेज का इस्तेमाल किया है। दिल्ली और केस से जुड़ी जगहों को शूट किया गया है। एआर रहमान और कुतुब-ए-कृपा का बैकग्राउंड स्टोर इस सीरीज़ के दृश्यों को प्रभावी बनाता है। क्या है बुराड़ी केस2018 में एक जुलाई की सुबह बुराड़ी स्थित संत नगर इलाके में चंदावत परिवार के 11 लोगों की मौत की सनसनीखेज़ ख़बर आयी। आत्महत्या करने वालों में 80 साल की मां नारायणी देवी, दोनों बेटे भुवनेश (50) और ललित (45), दोनों बहुएं सविता (48) और टीना (42), बेटी प्रतिभा भाटिया (57), प्रतिभा की बेटी प्रियंका (33), भुवनेश की बेटियां नीतू (25), मोनू (23), बेटा ध्रुव (15) और ललित का बेटा शिवम (15) शामिल थे। जब पुलिस घर के अंदर पहुंची तो सभी 10 लोगों के शव ग्रिल से लटके मिले थे। एक बुजुर्ग महिला का शव बेडरूम में पलंग के पास वाली खाली जगह पर उल्टा पड़ा मिला था। उनके पीछे अल्मारी के हैंडल पर एक तार बंधा मिला था। बाकी सभी सदस्यों के दुपट्टे और साड़ियों से लटके हुए थे। सभी के हाथ पीछे बंधे हुए थे। मुंह और आंखों पर पट्टी बंधी थी और कानों में रुई ठूसी हुई थी। डॉक्यूमेंट्री के अनुसार, मौका-ए-वारदात का मुआयना करने के बाद पुलिस ने शुरुआत में इसे सामूहिक आत्म-हत्या का केस माना, क्योंकि घर के अंदर किसी बलपूर्वक गतिविधि के निशान नहीं मिले थे। मगर परिवार, रिश्तदारों और कुछ संगठनों के दबाव के बाद हत्या की रिपोर्ट दर्ज़ कर जांच क्राइम ब्रांच के हवाले कर दी गयी। घर के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज देखने पर हत्या की आशंका निर्मूल साबित हुई, क्योंकि उसमें किसी बाहरी व्यक्ति के घर में दाख़िल होने का कोई सबूत नहीं मिला।
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रजिस्टर से हुए चौंकाने वाले खुलासेइस केस में रहस्मयी मोड़ तब आया, जब घर के मंदिर में एक रजिस्टर मिला, जिसमें 2007 से लेकर 2018 तक की इंस्ट्रक्शनल एंट्रीज़ थीं कि घर के सदस्यों को क्या करना है, क्या नहीं करना है। इस रजिस्टर से पता चला कि छोटा बेटा ललित पिता भोपाल सिंह की मौत के बाद घर का मुखिया की तरह चलाने लगा था। सब उसकी बात मानते थे। रजिस्टर के मुताबिक, ललित के ज़रिए पिता भोपाल सिंह की आत्मा परिवार से सम्पर्क करती थी और तब उसकी आवाज़ बदल जाती थी। भोपाल सिंह की मौत 2007 में हुई थी और उसके कुछ वक़्त बाद ही रजिस्टर में एंट्री की जाने लगी थीं। इस रजिस्टर के आधार पर पुलिस ने माना कि सामूहिक आत्म-हत्या एक क्रिया का परिणाम थी, जिसके लिए ललित ने सभी को राज़ी किया था, क्योंकि सुसाइड करने के जो तरीक़े इस रजिस्टर में दर्ज़ थे, सभी मृत शरीर उसी तरह से मिले थे। हालांकि, आत्म-हत्या करते वक़्त सभी को यक़ीन था कि वो मरेंगे नहीं।
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