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Mirzapur में क्यों रखा गया था कालीन भैया का पत्नी बीना संग बेडरूम सीन? पंकज त्रिपाठी ने बताई सही वजह

मिर्जापुर के नए सीजन में पता चलेगा कि क्या कालीन भैया अपनी सत्ता वापस पा सकेंगे या गुड्डू पंडित को मिलेगी उनकी गद्दी? शो में हिंसा दिखाने व अपशब्दों के प्रयोग को लेकर सवाल तो खड़े हुए पर लोकप्रियता भी खूब मिली। कालीन भैया का पात्र निभाने वाले पंकज त्रिपाठी व गुड्डू पंडित बने अली फजल से शो को लेकर प्रियंका सिंह की बातचीत के अंश।

By Jagran News Edited By: Manoj Vashisth Updated: Fri, 05 Jul 2024 06:30 AM (IST)
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मिर्जापुर सीजन 3 प्राइम वीडियो पर आ गया है। फोटो- इंस्टाग्राम
प्रियंका सिंह, मुंबई। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में कालीन के व्यवसाय की आड़ में मादक पदार्थों व हथियारों का गैरकानूनी धंधा चलाने वाले अखंडानंद त्रिपाठी को शहर कालीन भैया के नाम से जानता है। पिछले सीजन में उन्हीं की तरह गैरकानूनी हिंसा से उनके साम्राज्य का अंत करते दिखे गुड्डू पंडित। पेश है दोनों कलाकारों से बातचीत।

क्या कंटेंट और पात्र कलाकारों से बड़े हो गए हैं?

अली: हां, यह बात सही है। शो का जो कंटेंट है, उसके कारण कलाकारों का कद बढ़ा है। एक आत्मविश्वास आ जाता है कि यह तो हमने किया है। अब इसके साथ दूसरे कंटेंट में भी प्रयोग कर सकते हैं। मैं इस शो को अपने जीवन में स्तंभ की तरह देखता हूं। जो मुझे कुछ ना कुछ (प्रसिद्धि, पैसा) देता रहता है। हालांकि, इसके बाद दूसरा शो कर नहीं पाया हूं, क्योंकि यह बहुत वक्त और ऊर्जा ले लेता है।

पंकज: नि:संदेह कंटेंट बड़ा हो गया है। लोग पूछते रहते थे कि नया सीजन कब आ रहा, पर मेरे पास उत्तर नहीं होता था। हमें भी प्रदर्शन से एक हफ्ता पहले ही पता चलता है। फिर रणनीति बनानी पड़ती है। तारीख पता होने के बाद भी दर्शकों की जिज्ञासा बनाए रखना आवश्यक होता है। बीवी और बच्चों को भी बताने में झिझकते हैं कि कहीं कहानी लीक न हो जाए।

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कालीन भैया की गद्दी के लिए दावेदारी है, लेकिन क्या कभी पात्रों के लिए दावेदारी करनी पड़ी है?

पंकज: (हंसते हुए) जब घूम-घूमकर ऑडिशन देते थे तो वह दावेदारी ही तो थी। मैं अपनी तरफ से यही कहता था कि पात्र के लिए उपयुक्त हूं, लेकिन काम नहीं मिलता था। उस समय हमारी दावेदारी चलती नहीं थी।

अली: अब सब कुछ गठबंधन वाला काम हो गया है। निर्देशक कलाकारों से इनपुट लेते हैं। हमारे सुझाव को ऊपर रखते हैं, उन पर अमल करते हैं, इन कारणों से दावेदारी अब नहीं करनी पड़ती है। शो में कई ऐसे दृश्य रखे गए हैं, जो पटकथा लेखन के समय नहीं सोचे गए थे।

शो में वे सब चीजें हैं, जो सिनेमा में सेंसरशिप के दायरे में आती हैं। क्या आप स्वयं सोचते हैं कि इस सीमा से आगे नहीं जाऊंगा?

अली: हां, मेरी सीमा है। मैं चाहे जितना भी पात्र में रम जाऊं। मेरे जो मूल्य हैं, वो नहीं बदलेंगे। मुझे फिर पात्र और अपने मूल्यों के बीच संतुलन बनाना पड़ता है। फिर उसका तर्क मैं स्वयं उस पात्र की दुनिया में निकालता हूं। हिंसा और अपशब्दों को लेकर दूसरे सीजन के दौरान भी निर्देशक के साथ काफी विचार-विमर्श हुआ था, जहां मैंने एक भी गाली नहीं दी थी। तीसरे सीजन में पात्र में कुछ बदलाव आया है। जहां आवश्यकता थी, वहां थोड़ा प्रयोग किया गया है।

लेकिन कई बार कहा जाता है कि ओटीटी ही एक प्लेटफार्म है, जहां पर थोड़ी स्वतंत्रता है...

पंकज: मैं मानता हूं कि कंटेंट को बांधना नहीं चाहिए, लेकिन दृश्यों का औचित्य साबित करना जरूरी है। पहले सीजन में कालीन भैया का पत्नी बीना संग बेडरूम दृश्य रखा गया था। दर्शकों को बताना था कि बाहर भले ही कालीन भैया का भौकाल है, लेकिन उसके नितांत पारिवारिक जीवन में समस्या है। वह दृश्य कहानी को दिशा देने के लिए जरूरी था। कई लोगों को लगता है कि ओटीटी पर सेंसरशिप नहीं है तो दृश्यों को सनसनीखेज बनाओ। मैं इसके खिलाफ हूं। अगर उस दृश्य या गाली के बिना कहानी पूरी नहीं हो सकती है तो फिर करिए। दृश्य से सनसनी फैलाना इरादा नहीं होना चाहिए।

अली: मिर्जापुर को सफलता मिली तो लोगों को लगा कि इस फॉर्मूले का प्रयोग करो, पर कोई नियम नहीं है। पूरा खेल पसंद से जुड़ा है। विविधतापूर्ण कंटेंट एक क्लिक पर उपलब्ध है। अपनी पहचान बनाए रखनी है तो दर्शकों को कुछ अलग परोसना ही होगा।

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कालीन भैया की नैतिकता

पंकज त्रिपाठी कहते हैं कि कालीन भैया के पात्र की भी सीमाएं हैं। अपने मूल्य और नीतियां हैं। पहला और दूसरा सीजन देखें तो मैंने ज्यादा हिंसा और अपशब्दों का प्रयोग नहीं किया है। कुछ संवादों में अपशब्द हैं, क्योंकि वहां भाव का अभाव था। भाव के अभाव में ही गालियों का आविष्कार हुआ है, उसके लिए दूसरे शब्द नहीं बने हैं। बाकी पूर्वांचल (पूर्वी उत्तर प्रदेश) की गालियों में बहुत रस भी है। वे आम जीवन और बोलचाल का ही हिस्सा हैं। आप बनारस के आसपास जाएंगे तो एक मिठास और अपनत्व की भावना मिलती है।