Exclusive: लॉकडाउन में खुद को खत्म करना चाहते थे अमित कुमार मौर्या, कैमरामैन से यूं बने पंचायत 3 के 'बम बहादुर'
पंचायत 3 इस वक्त ओटीटी की सबसे पॉपुलर सीरीज है। इस शो का हर एक कैरेक्टर जबरदस्त तरीके से फेमस हुआ है। पंचायत के एक-एक किरदार ने लोगों के बीच अपनी छाप छोड़ी है। इसी में बम बहादुर का रोल भी लोकप्रिय हो चला है। इस कैरेक्टर को प्ले करने वाले अमित कुमार मौर्या ने दैनिक जागरण से खास बातचीत की।
करिश्मा लालवानी, नई दिल्ली। अमेजन प्राइम पर मौजूद 'पंचायत 3' (Panchayat 3) का हर किरदार लोगों के बीच हिट हो गया है। बड़े से बड़ा कैरेक्टर हो या छोटे से छोटा, डायरेक्टर दीपक मिश्रा की सीरीज की कहानी ने लोगों के दिलों पर छाप छोड़ी है। 'पंचायत 3' ओटीटी की मोस्ट अवेटेड सीरीज रही है। इसके पहले दो सीजन का फील और इमोशन तीसरे सीजन में देखने को मिल रहा है।
इस बार के सीजन में कुछ नए चेहरे भी दिखे। 'विधायक जी' से लेकर 'सचिव जी' तक ने पहले सीजन से अब तक धाक जमाई। लेकिन किसी भी कहानी को पूरा करने में उसमें निभाया गया छोटे से छोटा किरदार भी अहमियत रखता है।
'पंचायत 3' में बम बहादुर का किरदार नया है, यह छोटा लेकिन इतना जबरदस्त कैरेक्टर है कि पंचायत देखने वाला हर व्यक्ति इससे खुद को जोड़ कर देख पा रहा है। महाराजगंज के अमित कुमार मौर्या ने 'बम बहादुर' का रोल प्ले किया है। उन्होंने जागरण डॉट कॉम से अपनी जर्नी पर खास बातचीत की।
'बम बहादुर' को मिला लोगों का प्यार
जितेंद्र कुमार और नीना गुप्ता (Neena Gupta) स्टारर इस सीरीज में 'बम बहादुर' ने अपने किरदार से लोगों का खूब दिल जीता। विधायक को चुनौती देने वाले 'बम बहादुर' का दबंग अंदाज ही है, जो लोगों के दिलों में बस गया है। यह रोल छोटा, लेकिन ऐसा रहा कि लोग इसे भूले नहीं भूल पा रहे। लीक से हटकर इस किरदार को निभाने वाले अमित कुमार मौर्या ने यहां तक पहुंचने से पहले बहुत संघर्ष किया।
लॉकडाउन में झेला डिप्रेशन
अमित कुमार मौर्या ने बताया कि उन्होंने डिप्रेशन झेला है। उनकी लाइफ में एक वक्त ऐसा भी आया, जब वह खुद को खत्म करना चाहते थे। लॉकडाउन के दिनों में अमित एक साल तक घर में ही रहे। उनके पास काम नहीं था और वह नौकरी करना भी नहीं चाहते थे। उन्हें तो शुरू से एक्टर ही बनना था।
खुद को खत्म करना चाहते थे अमित कुमार मौर्या
अमित को नौकरी में दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन खाली बैठे होने की वजह से उनमें नकारात्मकता भी हावी हो गई थी। अमित ने बताया कि वह अपनी जिंदगी खत्म करना चाहते थे। उनके सपने बहुत बड़े थे। वह ग्लैमर वर्ल्ड का जाना माना नाम बनना चाहते थे। लेकिन नॉन फिल्मी बैकग्राउंड के होने के नाते कुछ समझ नहीं आ रहा था कि एक्टिंग लाइन में शुरुआत कैसे करनी है। अमित के पिता चीनी मिल कार्यकर्ता थे। मां आशा देवी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हैं। इस लिहाज से परिवार की आर्थिक स्थिती ठीक नहीं थी। लेकिन वो कहते हैं न कि किसी चीज को दिल से चाहो, तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने में लग जाती है। अमित के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।कभी कैमरा मैन, तो कभी साइकिल की दुकान पर किया काम
करीब एक साल तक घर पर रहने के बाद अमित मुंबई आ गए। उन्होंने बताया, ''गुजारे के लिए मैंने फर्नीचर का काम शुरू किया। मैं कुछ भी कर मुंबई में टिकना चाहता था। पिताजी चाहते थे कि मैं पॉलिटेक्नीक करूं, लेकिन मेरी मैथ्स कमजोर थी। मैंने शादियों में कैमरे चलाए। चाचा की साइकल की दुकान में भी काम किया। जब थोड़ी मु्श्किल आने लगी, तो दिल्ली जाकर खिलौने की फैक्ट्री में काम किया। तीन महीने यहां रुका। इसके बाद अपने भाई के पास जाकर वहां छोटा-मोटा काम किया।''