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Review: फिर क्यों आई हसीन दिलरुबा? फिल्म देखने से पहले फौरन पढ़ लें रिव्यू

तापसी पन्नूविक्रांत मैसी और सनी कौशल स्टारर फिल्म फिर आई हसीन दिलरुबा (Phir Aayi Haseen Dilruba) ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर आज से रिलीज हो गई है। ये मूवी साल 2021 में आई हसीन दिलरुबा का सीक्वल है। फैंस में इसको लेकर जबरदस्त बज बना हुआ है। अगर आप भी फिर आई हसीन दिलरुबा को देखने की प्लानिंग कर रहे हैं तो ये रिव्यू जरूर पढ़ लें।

By Ashish Rajendra Edited By: Ashish Rajendra Updated: Fri, 09 Aug 2024 05:46 PM (IST)
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ओटीटी फिल्म फिर आई हसीन दिलरुबा (Photo Credit-Jagran)

 प्रियंका सिंह, मुंबई डेस्क। साल 2021 में रिलीज हुई फिल्म हसीन दिलरुबा जब रिलीज हुई थी, तो वह कंटेंट अलग सा लगा था। पल्प फिक्शन यानी लुगदी साहित्य पर कई कहानियां हिंदी सिनेमा में बनी हैं। अब हसीन दिलरुबा की कहानी को आगे बढ़ाया गया फिर आई हसीन दिलरुबा (Phir Aayi Hasseen Dillruba) में।

खैर, हसीन दिलरुबा की रानी (तापसी पन्नू) कातिलाना थी, पहले पार्ट में नील (हर्षवर्धन राणे) रानी के साथ एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के चक्कर में अपनी जान गवां बैठा था। रानी का पति ऋषभ यानी रिशू (विक्रांत मैसी) ने रानी को बचाने के लिए अपना हाथ काट दिया था। अब सीक्वल की कहानी वहीं से आगे बढ़ती है।

कहानी में क्या है नया

रिशू (Vikrant Massey) अब रवि बनकर अपनी जिंदगी बिता रहा है। रानी (Taapsee Pannu) अपना पार्लर चलाती है। दोनों आगरा में पुलिस से छुपकर रह रहे हैं। वहां भी उनकी जिंदगी आसान नहीं, एक ओर जहां रानी के साथ अभिमन्यु (सनी कौशल) पागलपन की हद तक प्यार में पड़ चुका है, वहीं रिशू की मकान मालकिन पूनम (भूमिका दुबे) उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए बेकरार है।

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नील के सगे चाचा और पुलिस अफसर मृत्युंजय पासवान (जिम्मी शेरगिल) रिशू को ढूंढ रहा है। रानी और रिशू गैकानूनी तरीके से थाइलैंड जाने की कोशिशों में लगे हैं। पिछली फिल्म में रानी और रिशू को लेखक दिनेश पंडित की किताब कसौली का कहर किताब पढ़कर नील को मारने का आइडिया आया था, इस बार वह उनकी किताब मगरमच्छ का शिंकजा का सहारा लेते हैं।

सीक्वल का नहीं आया था ख्याल

फिल्म की शुरुआत में एक संवाद है कि जो पागलपन की हद से न गुजरे वो प्यार ही क्या, होश में तो रिश्ते निभाए जाते हैं। जब तापसी यह डायलॉग बोलती है, तो लगता है कि प्यार का पागलपन पिछली फिल्म से ज्यादा होगा। हालांकि ऐसा हो नहीं पाता है। इस फिल्म की लेखिका कनिका ढिल्लों ने बताया था कि पहले पार्ट के दौरान सीक्वल का ख्याल नहीं आया था।

वह बात कहानी में झलकती है, क्योंकि इस बार रानी और रिशू का किरदार पहले की तरह तेज-तर्रार नहीं है। कहानी में मगरमच्छ का एंगल भी है, जिसे क्लाइमेक्स में रोमांच के लिए बार-बार दिखाया जाता है, हालांकि वही बात उस रोमांच को खत्म कर देती है। फिल्म के डार्क जोन को देखते हुए सिनेमैटोग्राफर विशाल सिन्हा का काम बेहतरीन है।

डायरेक्शन बना सिरदर्द

निर्देशक जयप्रद देसाई की पकड़ पहले हाफ पर मजबूत है, लेकिन दूसरे हाफ में ढीली पड़ जाती है। रास्तों के सीसीटीवी फुटेज देखकर, दिनेश पंडित की किताब पढ़कर, काल रिकार्ड्स निकालकर घटना का पता लगाने वाले पुलिस के सीन हास्यास्पद लगते हैं। पंडित जी कहते हैं कि चलन से ना चाल से प्यार करने वालों को परखों उनके दिल के हाल से... जैसे कई संवाद मूल फिल्म के फील को बनाए रखते हैं।

कैसी है स्टार कास्ट की एक्टिंग परफॉर्मेंस

तापसी पन्नू अच्छी अदाकारा हैं। किसी भी रोल में ढल सकती हैं। हालांकि इस बार रानी का अंदाज या कह लीजिए वो नमक जो इस किरादर में होना चाहिए था, वह कम दिखा। विक्रांत मेस्सी के जादुई अभिनय की कमी खलती है, क्योंकि उनके हिस्से मूल फिल्म की तरह दमदार सीन नहीं लगे हैं।

सनी कौशल (Sunny Kaushal) अपने अभिनय से चौकाएंगे। अब तक सनी को परतों वाली भूमिका निभाने के मौका नहीं मिला था। जब मिला, तो उन्होंने कोई कमी नहीं रखी। जिमी शेरगिल छोटी सी भूमिका में अपने चिर-परिचित अंदाज में दिखे हैं। साल 1980 में रिलीज हुई फिल्म कर्ज का गाना एक हसीना थी... एक दीवाना था... सीन को दिलचस्प बनाता है।

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