‘आश्रम’ में निगेटिव किरदार निभाने को लेकर बॉबी देओल ने कहा- 'दर्शकों के रिएक्शन से हैरान था मैं'
अब सेट पर जाने से पहले ही बहुत तैयारी होती है। पहले इतनी तैयारियां नहीं होती थीं। ‘क्लास आफ 83’ ‘आश्रम’ ‘लव होस्टल’ मैंने हर प्रोजेक्ट से पहले वर्कशाप्स किए हैं उससे दूसरे कलाकार की प्रतिक्रिया को समझा जा सकता है अपने संवादों पर कमांड आ जाता है।
By Priti KushwahaEdited By: Updated: Fri, 25 Feb 2022 12:27 PM (IST)
प्रियंका सिंह, मुंबई। बाबी देओल अपने करियर की दूसरी पारी में प्रयोगात्मक किरदार कर रहे हैं। ‘आश्रम’ वेब सीरीज के बाद आज जी5 पर रिलीज फिल्म ‘लव होस्टल’ में वह एक बार फिर निगेटिव किरदार में नजर आ रहे हैं। उनसे बातचीत के अंश...
अब कौन सी चीजें अलग तरीके का काम करने के लिए प्रेरित कर रही हैं?(हंसते हुए) मैंने दो-तीन साल अपने करियर में कुछ ज्यादा ही आराम कर लिया था। अब मुझे जितनी मेहनत करनी पड़े या चुनौतीपूर्ण किरदार करना पड़े, मैं करूंगा। ऐसे किरदार निभाने हैं, जहां अपने लुक के साथ भी मेहनत करनी पड़े। लोग जब तारीफ करते हैं तो अच्छा लगता है। ‘लव होस्टल’ फिल्म में मेरे साथ सान्या और विक्रांत (सान्या मल्होत्रा और विक्रांत मेस्सी) भी हैं। दोनों प्यारे बच्चे हैं। जब इस फिल्म के लिए भोपाल पहुंचा था, सुबह-सुबह मेरे कमरे में खटखट हुई, मैंने अंदर बुलाया तो देखता हूं कि दोनों आए हैं।
उन्होंने कहा कि सर हम आपके बड़े फैन हैं, बचपन से आपकी फिल्में देखी हैं। हम आपके साथ काम करने के लिए उत्सुक हैं। फिल्म आनर किलिंग पर आधारित है। काफी गंभीर मुद्दा है...
हमारे समाज में जो हो रहा है, उससे प्रभावित होकर फिल्में लिखी जाती हैं। लोग तभी देखेंगे, जब वे उन विषयों से रिलेट कर सकेंगे। यह फिल्म किसी वास्तविक घटना पर आधारित नहीं है, लेकिन आसपास हुई कई घटनाओं से प्रेरित है, जिन्हें एक काल्पनिक कहानी में ढालकर दिखाया गया है। पहले कलाकारों की एक छवि बन जाती थी, पर अब हर प्रोजेक्ट के साथ किरदारों का मिजाज बदल जाता है।
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क्या अब आपको पहले के मुकाबले बेहतर मौके मिल रहे हैं?उस जमाने में ऐसा होता था कि एक बार अगर इमेज बन गई तो उससे बाहर आना मुश्किल था। मुझे डिजिटल प्लेटफार्म की वजह से अपनी इमेज को बदलने का मौका मिला है। मैंने ‘क्लास आफ 83’ फिल्म में एक पाजिटिव किरदार किया था, वहीं ‘आश्रम’ में निगेटिव किरदार था, लेकिन मुझे दर्शकों का प्यार मिला, जिससे मैं खुद हैरान था। जब मैं ‘आश्रम’ शो कर रहा था, तब मैंने किसी को नहीं बताया था। मुझे लगा कि लोग कहेंगे कि इतना निगेटिव किरदार क्यों कर रहे हो। मेरे लिए वह सिर्फ किरदार था, असल जिंदगी में मैं वैसा तो हूं नहीं। मैं एक्टर हूं, इसलिए चाह रहा था कि ऐसा कोई किरदार करूं, ताकि देख सकूं कि मुझमें कितनी क्षमता है।
नए किरदारों के साथ क्या आपके काम करने का तरीका भी बदला है?अब सेट पर जाने से पहले ही बहुत तैयारी होती है। पहले इतनी तैयारियां नहीं होती थीं। ‘क्लास आफ 83’, ‘आश्रम’, ‘लव होस्टल’ मैंने हर प्रोजेक्ट से पहले वर्कशाप्स किए हैं, उससे दूसरे कलाकार की प्रतिक्रिया को समझा जा सकता है, अपने संवादों पर कमांड आ जाता है। ‘लव होस्टल’ में मैंने हरियाणवी भाषा में बात की है। एक महीने तक डायलाग्स सीखे हैं। यह सारी प्रक्रिया मेरे लिए नई है। डिजिटल प्लेटफार्म पर बाक्स आफिस का प्रेशर नहीं होता है, लेकिन क्या मन में कोई डर होता है?हां, बिल्कुल रहता है, क्योंकि (हंसते हुए) अगर आपका काम पसंद नहीं आएगा तो और काम नहीं मिलेगा। प्रेशर तो हमेशा रहता है। डिजिटल प्लेटफार्म पर कलेक्शन का दबाव नहीं है, काम करने की आजादी है। अब व्यूअरशिप देखकर कंटेंट की सफलता का अंदाजा लग जाता है।बेटे आर्यमन के डेब्यू को लेकर आपने क्या सोचा है?मैं चाहता हूं कि वह पहले पढ़-लिख लें। फिर जो चाहे वह कर सकते हैं। मैंने उनके डेब्यू को लेकर कोई योजना नहीं बनाई है। मैं चाहता हूं कि मेरे बच्चे पढ़ें। अगर वह एक्टर के तौर पर सफल नहीं होते हैं, तो पढ़ाई की वजह से कुछ और भी कर सकते हैं।
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