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क्षमा करना पार्वती

By Edited By: Updated: Fri, 18 Nov 2011 12:39 AM (IST)
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उसने घड़ी देखी सुबह के नौ बजने वाले थे एक नजर बस स्टाप पर डाली यहा से छ: स्टाप दूर था उसका आफिस। झुंझलाहट हुई उसे आज फिर लेट हो जाऊंगा फिर बास को सफाई दो और झाड़ खाओ। वह कल भी लेट पहुचा था। कोई आखिर कब तक टालरेट करेगा।

उसने चितन को विराम दिया और फ्लैश बैक में चला गया। आज तो वह ठीक समय पर निकला था और बस भी सुपर फास्ट पकड़ी थी और लेट कैसे हो गया। उत्तर मिला जाम। इस जाम से निपटने के लिये ही तो वह रोज पाच मिनट पहले निकल रहा है और इस तरह पिछले छ: महीने में वह घर से लगभग आधा घटा पहले निकलने लगा है। लेकिन वह इस समस्या से निजात नहीं पा सका था। इस से पहले कि वह फ्लैश बैक में और डूबता उसे एक हिचकोले से झटका लगा सामने बोर्ड टगा था वर्क इन प्रोग्रेस फार बेटर टुमारो। उसे हसी आयी आज तो गया हाथ से और कल किसने देखा है। फिर सोचने लगा एक कल वह भी तो है जो बीत गया। क्या हुआ था कल।

कल जब वह लेट हुआ था तो पत्‍‌नी पर बरस पड़ा था। तुम्हारे ब्रेकफास्ट की वजह से लेट हो गया। तुम्हे समय का ध्यान ही नहीं रहता।

और कल का खयाल आते ही उसे अचानक आत्मग्लानि की अनुभूति होने लगी। आज जब वह समय से निकला और जाम के चलते लेट हो गया तो कल वह ब्रेकफास्ट के चलते तो कत्तई लेट नहीं हुआ था। लेट होने की वजह कुछ और थी लेकिन उसका गुस्सा किसी और पर उतरा था।

उसे लगा यह एक घटना भर नहीं है बल्कि जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है यह आदत कभी चाय वाले पर गुस्सा तो कभी सिस्टम पर। कभी दूध वाले से कहा सुनी तो कभी सब्जी वाले से। कहीं ऐसा तो नहीं कि जिंदगी की ढेर सारी समस्याओं का जिम्मेदार कोई और है और गुनाहगार हम किसी और को बना रहे है।

उसने आफिस में कदम रक्खा बास को विश किया और अपनी टेबिल की तरफ बढ़ गया। उसके गभीर रुख को देख कर किसी की कुछ बोलने की हिम्मत नहीं हुई।

- 'साहब चाय!' छोटू ने चाय का प्याला टेबिल पर रखते हुए खड़खड़ाहट की तो फिजा की खामोशी टूटी।

असीम ने कहा- 'सर! मैं आज फिर लेट हो गया पर सचमुच आज मेरे पास लेट होने की कोई वजह नहीं है।'

- 'ऐसा होता है असीम, कई बार बहुत सी चीजें हमें बिना कारण के और हमें बिना आभास दिये हो जाती है' उसके बास रवि शकर जी बोले।

असीम को बास से इतने स्नेह की उम्मीद नहीं थी आज पता नहीं क्यों उसे काम का तनाव भी नहीं महसूस हो रहा था।

इस से पहले कि वह कुछ कहता वे आगे बोले, 'आज तुम क्या मैं ही लेट हो गया। जाम के चलते। जब आफिस की गाड़ी मिली होने के बाद मैं लेट हो सकता हू तो तुम तो बस से आते हो। मैं समझ सकता हू किस हालत का सामना करना पड़ता होगा तुम्हे।'

अचानक असीम के मुंह से निकला, 'थैक्यू सर, थैंक्स अ लाट!!' फिर धीरे से बोला, 'सर, आज मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही जरा जल्दी निकलूंगा।' 'ओह श्योर, और जब निकलना हो मेरी गाड़ी ले लेना मैं ड्राईवर को बोल दूंगा वैसे भी यहा आने के बाद शाम तक यह खाली पड़ी रहती है और हा डाक्टर को जरूर दिखा लेना।'

अचानक असीम को अहसास हुआ आफिस बस मशीनों का घर नहीं है इसमें भी जीते जागते इंसान रहते है वह तो हम ही लोग है किसी से अपने सुख दु:ख बाटने को तैयार नहीं। इसके बाद असीम का मन किसी काम में नहीं लगा। कुछ था जो उसके अंतर मन को मथ रहा था।

ऐसा लग रहा था जैसे आज वह अपनी ही जिंदगी पर रिसर्च कर रहा है। उसके मानस पटल पर एक एक कर रोजमर्रा की जिंदगी पन्ने उभरते और लुप्त होते जा रहे थे।

हर दृश्य दिमाग पर हथौड़े की तरह बजता। अभी दो चार दिन पहले की ही बात है वे सब्जी मडी से आलू ले कर आये उन्हे लगा आलू कम है और जब तुलवाया तो वाकई वह कम निकला। वे वापस लौटे और लड़ पड़े सब्जी वाले से।

अब वह सोच रहा था क्या सचमुच वह गुनाहगार था क्या पता दूसरे दुकानदार ने उसे भड़काने के लिये ऐसा किया हो। या फिर हो सकता है इस महगाई में वह सब्जी वाला अपना घर चलाने के लिये दो पैसे की बेईमानी ही कर रहा हो कितने कम थे बस एक या दो आलू जिसकी कीमत एक रुपये भी तो नहीं है। यह कोई इतनी बड़ी बात भी तो नहीं थी, लेकिन नहीं हम आज इतने आत्मकेंद्रित हो गये है कि अपने आगे किसी दूसरे का ऐंगल देखने को तैयार नहीं है।

- 'असीम, आज लच नहीं करोगे क्या?' जब उसके कोलीग ने टोका तो उसे ध्यान आया अरे बाप रे आज एक बज गये और उसे ध्यान ही नहीं।

- 'कहा खोये है असीम बाबू। कोई चक्कर-वक्कर तो नहीं है?' हरीश ने चुटकी ली।

- 'कुछ नहीं हरीश, मैं सोच रहा था कि जिस पर हम गुस्सा करते है वह वाकई गलत होता है या किसी की भी गलती के लिये किसी और को दोषी ठहराना हमारी आदत हो गयी है।'

- 'असीम तुम सोचा कम करो। सोचने से टेशन होती है और टेशन से बीमारी। हमारी तरह खाओ पीओ और मस्त रहो हरीश ने हसते हुये कहा। असीम भी उसका साथ देते हुये हसा फिर उठ कर टहलता हुआ चल दिया यह कहते हुये कि आज मैं लच नहीं लाया हू तुम शुरू करो।'

फिर वह आफिस के लान में टहलते हुये सोचने लगा- 'वाकई लाईफ इतनी ईजी गोइंग होती हरीश के फिलासफी की तरह। पर नहीं किसी न किसी को भी गभीरता से सोचना ही होगा।' और वाकई जितना वह गहराई में उतरता जाता उतना ही उसे महसूस होता कि जीवन में नयी दिशा मिल रही है।

उसे अचानक बचपन में देखी हुई अपनी मा याद आ गयी। उसे वे दिन याद आ गये जब उसे लगता कि कितनी बार मा सही होती और बाबूजी अपने दिन भर का गुस्सा उसे गलत ठहरा कर उस पर उतार देते जैसे हर असफलता के लिये बस मा दोषी हो। और मा थी कि फिर भी बाबूजी के आगे गिड़गिड़ाये जाती। अचानक उसने अपना बैग उठाया और बास से कहा, 'सर! मैं जा रहा हू।' इसके बाद असीम ने किसी उत्तर की प्रतीक्षा नहीं की।

लगभग आधे घटे के भीतर वह घर पर था। उसे अचानक दोपहर में आया देख पार्वती चौंक पड़ी। - 'क्या हुआ असीम तबियत तो ठीक है?'

असम की आखें झुकी हुई थीं, 'पार्वती, आज ही तो तबियत ठीक हुई है एक अर्से बाद।'

- 'हाय! तुम आज कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हो।' पार्वती ने असीम का माथा छूते हुए कहा।

असीम को एक मुद्दत बाद यह स्पर्श बहुत अपना लगा। वह बोला, 'पार्वती, एक बात कहनी है इसीलिए जल्दी घर आया हू।'

पार्वती बोली- 'तो कहो न इसमें इतना सोचने की क्या बात है?'

- 'नहीं मैं सीरियसली कह रहा हू।'

पार्वती ने गहराई से असीम को देखा, 'सब ठीक तो है ना?' आखिर आज असीम कहना क्या चाह रहे है। वह धीरे से बोली, 'हा असीम बोलो मैं सुन रही हू।'

असीम ने बड़ी गभीरता से कहा- 'आई एम सारी, पार्वती मुझे माफ कर दो।'

- 'तुम भी कैसी बात करते हो! तुमने कौन सी गलती की है कि माफी माग रहे हो?'

- 'तुम नहीं समझोगी पार्वती, पता नहीं क्यों मैं किसी भी असफलता में तुम्हे ही दोषी समझने की मानसिक गलती करता था और आज अपनी सोच पर मुझे बहुत आत्मग्लानि हो रही है।'

- 'क्या असीम, तुम भी कैसी बात करते हो! यह भी कोई बात है। मैंने क्या तुमसे कभी कोई शिकायत की है?'

-'यही तो बात है पार्वती कि तुम शिकायत भी नहीं करती और तुम्हारा यह व्यवहार आज तुम्हे मुझ से बहुत ऊपर खड़ा कर रहा है इसका अहसास मुझे तब हुआ जब मैंने चीजों को गहराई से देखना शुरू किया।'

पार्वती की आखें नम हो उठीं, 'असीम, आज तुम्हारी बात ने मेरे दिल का बोझ हल्का कर दिया है वर्ना मुझे भी रोज रोज एक ही बात सुन कर लगने लगा था कि मैं ही हर गलती के लिए जिम्मेदार हू मैं कितनी सौभाग्यशाली हू कि मुझे तुम जैसा सवेदनशील पति मिला है।'

और इसके बाद जैसे कहने को शब्द नहीं थे असीम और पार्वती दोनों की आखें नम थी शायद गुनाहगार कोई नहीं था। बस परिस्थितिया ही है जो हमें विभिन्न स्थितियों में ले आती है और हम एक दूसरे पर बिना जाने समझे दोषारोपण करते रहते है।

[मुरलीमनोहर श्रीवास्तव]

उप प्रबधक कामर्शियल, एन.टी.पी.सी. ए- 8 ए, सेक्टर 24, नोएडा-201301

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