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यहां भगवान को चढ़ाए जाएंगे 8 किलो सोने और हीरे जड़ित वस्त्र, 130 कारीगरों ने 18 महीने में किया तैयार

गुजरात के वडताल में श्री लक्ष्मीनारायण देव द्विशतवार्षिक महोत्सव मनाया जा रहा है। कल यानी विक्रम संवत 2081 को कार्तिक सुद बारस तिथि को श्री लक्ष्मीनारायण देव की प्रतिष्ठा के 200 वर्ष पूरे होंगे और 201वां वर्ष शुरू होगा। इस अवसर पर वडताल के आचार्य राकेश प्रसाद और मंदिर के संतों ने 8 किलोग्राम से अधिक शुद्ध सोने से बने वस्त्र अर्पित किए हैं।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Tue, 12 Nov 2024 05:56 PM (IST)
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सोने से तैयार किए गए देवों के वस्त्र। ( फोटो जागरण)
किशन प्रजापति, जेएनएन, वडताल। गुजरात के वडताल में श्री लक्ष्मीनारायण देव द्विशतवार्षिक महोत्सव मनाया जा रहा है। कल यानी विक्रम संवत 2081 को कार्तिक सुद बारस तिथि को श्री लक्ष्मीनारायण देव की प्रतिष्ठा के 200 वर्ष पूरे होंगे और 201वां वर्ष शुरू होगा। इस अवसर पर वडताल के आचार्य राकेश प्रसाद और मंदिर के संतों ने श्री लक्ष्मीनारायण देव, श्री राधा-कृष्ण और श्री वासुदेव जी को 8 किलोग्राम से अधिक शुद्ध सोने के तार से बनाये गए वस्त्र अर्पित किए हैं। जागरण आपको इसकी पहली झलक दिखा रहा है।

ये भाव भरे वस्त्र: डॉ. संत स्वामी

वडताल मंदिर के मुख्य कोठारी डॉक्टर संत वल्लभ स्वामी ने कहा कि स्वामीनारायण भगवान ने अपने हाथों से मंदिर की आधारशिला रखी, जहां उन्होंने खुद प्रतिष्ठा समारोह किया और अपने रूप की भी स्थापना की थी। जहां उन्होंने शिक्षापत्री लिखी, वहीं वडताल मंदिर में विराजित श्री लक्ष्मीनारायण देव, श्री राधा कृष्ण देव और वासुदेव जी के सोने के तार से बने वस्त्र तैयार किए गए हैं। भौतिक रूप से यह एक सुनहरे वस्त्र है, लेकिन जो लोग वडताल मंदिर के देवताओं में आस्था रखते हैं, उनके लिए यह भाव भरे वस्त्र है।

भगवान को वस्त्र पहनाने के बाद असली कपड़े जैसा ही अहसास होगा: डॉ. संत स्वामी

उन्होंने आगे कहा कि हमने करीब 18 महीने पहले इस वस्त्र को बनाने का फैसला किया था। इस वस्त्र के डिजाइन को वडील संतों ने फाइनल किया था। वस्त्र का निर्माण 18 महीने तक चला। हमें इस बात पर गर्व है कि हमारे वस्त्र कारीगरों ने असली कपड़े जैसा महसूस कराने के लिए बहुत अच्छा काम किया है। यह वस्त्र विक्रम संवत 2081 के कार्तिक सुद बारस को धारण किए जाएंगे। इसके अलावा जन्माष्टमी, रामनवमी, नूतन वर्षा और वार्षिक पाटोत्सव के खास दिनों में भगवान को यही वस्त्र पहनाया जाएगा।

सोने का कपड़ा बनाकर इस प्रकार वस्त्र तैयार किए

ये वस्त्र सोने के तार से बने हैं। सबसे पहले सोने को पिघलाकर तार बनाया गया। सोने के तार से बॉर्डर बनाया गया, जिसे जाली भी कहा जा सकता है। तैयार कपड़े पर कारीगरों द्वारा सोने के कपड़े पर डिजाइन स्टिच किए जाते हैं और असली हीरे और स्टोन लगाए जाते हैं। इस प्रकार वस्त्र कुल 5 स्टेप में तैयार होता है। इसमें कहीं भी चांदी का इस्तेमाल नहीं किया गया है। जब वस्त्र बनाया जाता है तो उसके पीछे पीले रंग का कपड़ा रखा जाता है। इन कपड़ों को किसी भी समय अलग किया जा सकता है।

130 कारीगरों ने 18 महीने तक प्रतिदिन 12-12 घंटे काम किया

खास बात यह है कि वस्त्र का यह काम पिछले 18 महीने से चल रहा था। इसमें 130 कारीगर प्रतिदिन 12-12 घंटे काम कर रहे थे। यह वस्त्र पन्ना और रूबी जैसे असली स्टोन और हीरों से जड़ी है। इसके अलावा वस्त्र में कमल, मोर और हाथी की डिजाइन हैं।

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