कच्छ के रण में सात हजार मजदूरों के सामने छाया रोजी-रोटी का संकट, वन विभाग ने मांग लिया राजस्व रिकॉर्ड
Gujarat गुजरात में वन विभाग के एक फैसले से सात हजार से अधिक श्रमिकों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। वन विभाग ने इन मजदूरों से राजस्व रिकॉर्ड की मांग की है जबकि यह क्षेत्र कभी राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज भी नहीं था। रण में अभयारण्य की घोषणा के बाद से नमक श्रमिकों को यहां से बेदखल करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
शत्रुघ्न शर्मा, अहमदाबाद। गुजरात के कच्छ के रण में समुद्र के खारे पानी में नमक बनाने वाले सात हजार से अधिक श्रमिकों के परिवारों की रोजी रोटी पर संकट आ गया है। रण में अभयारण्य की घोषणा के बाद से नमक श्रमिकों को यहां से बेदखल करने के प्रयास किए जा रहे हैं। यह क्षेत्र कभी भी राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज भी नहीं था।
इस क्षेत्र को 0 सर्वे के नाम से जाना जाता था। वर्ष 1976 में घुडसर अभयारण्य की घोषणा हुई। गुजरात सरकार के वन विभाग ने वर्ष 1997 में पहली बार यहां सर्वे शुरु की। वन अधिकार कानून के अनुसार पीढ़ियों से नमक बनाने वाले इन परिवारों को बेदखल नहीं किया जा सकता, इसके बावजूद वन विभाग अब इनसे राजस्व रिकॉर्ड मांग रहा है।
बंजर जमीन ही गुजारे का सहारा
सरकार की ओर से इस जमीन के कभी कोई दस्तावेज बनाए ही नहीं गए हैं। इस इलाके की कुल जमीन चार लाख 95370 हेक्टेयर है। 7600 नमक श्रमिकों को 10 - 10 एकड़ भी जमीन दी जाए तो महज 76000 एकड़ जमीन होगी, जो कुल जमीन का महज छह प्रतिशत है। गुजरात हाई कोर्ट के आदेश के चलते सरकार ने वर्ष 1997 के बाद कुछ कंपनी व सहकारी मंडलियों की लीज का नवीनीकरण भी बंद कर दिया।
सरकार अब मान्य व अमान्य नमक श्रमिकों की श्रेणी बनाकर हजारों श्रमिकों को यहां से बेदखल करना चाहती है, जबकि इन परिवारों के पास रोजी रोटी का दूसरा कोई साधन नहीं है। कच्छ का रण दो भाग लिटिल रण ऑफ कच्छ और ग्रेट रण ऑफ कच्छ में बंटा है। यहां खारे पानी के कारण बंजर हुई जमीन ही नमक श्रमिकों के गुजारे का सहारा है, जहां समुद्री जल को वाष्पित करके नमक के क्रिस्टल बनाए जाते हैं।
जिंदगी खतरे में डालकर बनाते हैं नमक
अगरिया हित रक्षक मंच के संयोजक हरिणेश पंड्या बताते हैं कि नमक बनाने वाले श्रमिकों को अंगरिया कहते हैं। नमक बनाने के लिए श्रमिकों को जिंदगी भी खतरे में डालनी पड़ती है। करीब 98 प्रतिशत श्रमिक चर्म रोग के शिकार हो जाते हैं। कई मोतियाबिंद तो कईयों को हड्डी रोग जकड़ लेता है। 90 प्रतिशत नमक श्रमिकों के पास कोई जमीन नहीं है, ये गरीबी की रेखा के नीचे आते हैं।