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Chandipura Virus: संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. चेतन त्रिवेदी ने बताया चांदीपुरा वायरस का ए टू जेड, जानिए कब खत्म होगा ये वायरस

गुजरात में चांदीपुरा वायरस लगातार का कहर लगातार जारी है। इस बिमारी का सबसे ज्यादा असर छोटे बच्चों पर नजर आ रहा है। इस वायरस के कारण अब तक कई बच्चों की मौत हो चुकी है। गुजराती जागरण टीम ने संक्रामक रोगों के विशेषज्ञ डॉ. चेतन त्रिवेदी (वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ) से बातचीत की। जिसमें उन्होंने विस्तार से बताया है कि चांदीपुरा वायरस कैसे होता है।

By Jagran News Edited By: Versha Singh Updated: Fri, 19 Jul 2024 02:00 PM (IST)
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गुजराती जागरण टीम ने संक्रामक रोगों के विशेषज्ञ डॉ. चेतन त्रिवेदी से की खास बातचीत

किशन प्रजापति, अहमदाबाद। Chandipura Virus Symptoms: पिछले कुछ दिनों से गुजरात में चांदीपुरा वायरस के मामले बढ़ रहे हैं। इस वायरस से 16 बच्चों की मौत हो चुकी है। जबकि अन्य बच्चे अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती हैं। ऐसे में चांदीपुरा वायरस को लेकर सभी के मन में काफी भ्रम है।

इस संबंध में गुजराती जागरण टीम ने संक्रामक रोगों के विशेषज्ञ डॉ. चेतन त्रिवेदी (वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ) से बातचीत की। जिसमें उन्होंने विस्तार से बताया है कि चांदीपुरा वायरस कैसे होता है, इसके लक्षणों को शुरुआत में कैसे पहचाना जा सकता है, इसका इलाज कैसे किया जाता है और यह वायरस कब खत्म होगा।

चांदीपुरा वायरस की पुष्टि होने में लगता है समय

इस मामले को कन्फर्म में समय लगता है। कमर से खून के नमूने लेकर जांच के लिए भेजने के बाद पुष्टि की जाती है। जिस तरह से पेटेंट दिख रहा है उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये चांदीपुरा वायरस हो सकता है। चांदीपुरा वायरस 9 महीने से 14 साल तक के बच्चे को कभी भी हो सकता है। कुछ गांवों में इस वायरस के मामले उन इलाकों से ज्यादा आ रहे हैं जहां साफ-सफाई, गंदगी और कूड़ा-कचरा है। फिलहाल ये मामले पंचमहल, सांबरकांठा और अरवल्ली से आ रहे हैं।

60 प्रतिशत मामलों में वायरस के बारे में नहीं मिलती जानकारी

इस वायरस में काफी बदलाव देखने को मिलते हैं। जैसे किसी मरीज को आज किसी तरह की कोई समस्या नहीं है लेकिन कल तेज बुखार है। जो 103-104 डिग्री होता है। बुखार के बाद उल्टी होती है और कुछ देर बाद बच्चा बेहोश हो जाता है। इसे एईएस कहा जाता है। अब एईएस वायरस के साथ-साथ गैर-वायरस के कारण भी हो सकते हैं, इसलिए इसे ऑटो एंटीबॉडी कहा जाता है। इसलिए अधिकांशतः यही कहा जाता है कि यह वायरस के कारण होता है। 60 प्रतिशत मामलों में, यह एईएस वायरस का पता नहीं लगाएगा।

बिहार में फैला था लीची वायरस

इससे पहले बिहार में लीची वायरस फैला था। यह वायरस बुखार, दस्त-उल्टी, ऐंठन और बेहोशी जैसे लक्षण भी पैदा करता है। 24 घंटे के अंदर मरीज का लीवर और किडनी का पैरामीटर खराब हो जाता है। लीवर, किडनी और हृदय प्रभावित होते हैं। यानी अगर किसी बच्चे को तेज बुखार, दस्त, उल्टी, ऐंठन और बेहोशी हो, दस्त के एक या दो दौर में बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाए तो हमें तुरंत इलाज शुरू करना होगा।

रेत मक्खी से वायरस शरीर में करता है प्रवेश

2010 मे आणंद-खेडा मे नए वायरस के मामले बहोत आए थे। एसा दो-चार साल मे एक बार आता है। हाल के दौर मे सोशल मीडिया की वजह से पता चलता है कि नए केस मिले हैं। जब रेत मक्खी का समय पूरा हो जाएगा तब चांदीपुरा वायरस भी चला जाएगा।

जब वायरस मस्तिष्क तक पहुंचता है तो आती है सूजन

यह वायरस सीधे दिमाग तक जाता है। जब मस्तिष्क में कोई संक्रमण होता है, जैसे कि यदि हमें कोई ट्यूमर है, तो श्वेत कोशिकाएं संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए वहां पहुंचती हैं। जब वायरस मस्तिष्क तक पहुंचता है तो सूजन आ जाती है। एक बार जब सूजन आ जाती है, तो आपको बेहोशी और ऐंठन महसूस होने लगती है। तो आपको क्या करना है, आपको शुगर कंट्रोल करना है, आपको सूजन की दवा लेनी है।

कमजोर, कुपोषित और कम प्रतिरोधक क्षमता वाले बच्चों पर ज्यादा असर

जो बच्चे कुपोषित हैं और अगर किसी को कोई बीमारी है या उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है तो चांदीपुरा वायरस का असर उन बच्चों पर ज्यादा होता है। इस वायरस के लक्षण जिस बच्चे में होते हैं उसमें से अधिकांश बच्चे 72 घंटे में ही दम तोड़ देते हैं।

रेत मक्खी का दौर खत्म होते ही चांदीपुरा वायरस हा जाएगा खत्म

2010 में आनंद खेड़ा में नए मामलों का अंबार लग गया। ये दो-चार साल में आता है, जब पता चलता है तो मीडिया में आ जाता है। अब सोशल मीडिया की वजह से अगर पता चल जाए कि हमें कोई केस मिला है तो हमें भी लिखना चाहिए कि हमें भी कोई केस मिला है। पहले नहीं पता था. अवधि समाप्त होते ही यह रेत मक्खी समाप्त हो जायेगी।

बच्चों के लिए इसका विशेष रूप से करें पालन

आपको ध्यान रखना चाहिए कि रेत न उड़े। घर में गंदगी नहीं भरनी चाहिए और यदि घर में दरारें हों तो वहां दवा का छिड़काव करना चाहिए। बच्चे को गंदी जगह पर न जाने दें। हम बच्चे को सूखे कपड़े पहनाकर और मच्छरदानी लगाकर इसे रोक सकते हैं और तीसरा यदि ऐसा होता है तो हम बच्चे को डॉक्टर के पास ले जा सकते हैं। बड़े बच्चों में इसके होने की संभावना कम होती है क्योंकि यह केवल छोटे बच्चों को होता है। हमें गांव के लोगों तक इस वायरस का संदेश पहुंचाना चाहिए, घबराने की जरूरत नहीं है।

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