Surya Tilak: अयोध्या में भगवान राम की मूर्ति पर लगेगा सूर्य तिलक, जानें-कैसे लगता है सूर्य तिलक
Surya Tilak अयोध्या में बन रहे भव्य श्रीराम मंदिर के निर्माण का काम देख रहे मुख्य वास्तुकार आशीष सोमपुरा के मुताबिक सूर्य की गति की गणना करके सूर्य तिलक की तिथि व समय को लेकर शोध चल रहा है।
By Sachin Kumar MishraEdited By: Updated: Thu, 18 Nov 2021 06:04 PM (IST)
अहमदाबाद, शत्रुघ्न शर्मा। अयोध्या में बन रहे भव्य श्रीराम मंदिर में भगवान राम की मूर्ति का सूर्य तिलक से अभिषेक होगा। राम मंदिर के वास्तुकार सूर्य की गति व मार्ग की गणना कर इसकी तिथि व समय तय करेंगे।दुनिया में बहुत ही कम मंदिर ऐसे हैं, जहां भगवान की मूर्ति पर सूर्य किरण से सूर्य तिलक होता है या प्रतिमा के चरणों में सूर्य किरण पहुंचती है। भगवान राम की जन्मस्थली अयोध्या में बन रहे राममंदिर को भव्यातिभव्य बनाने के लिए श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट काफी प्रयास कर रहा है। मंदिर के आकार को बड़ा करने के साथ अब इसमें एक और यह आकर्षण जोड़ने पर विचार किया जा रहा है कि अयोध्या में निर्माणाधीन श्री रामजन्मभूमि मंदिर में भगवान श्रीराम की मूर्ति का सूर्य की पहली किरण से सूर्यतिलक अभिषेक हो। मंदिर के निर्माण का काम देख रहे मुख्य वास्तुकार आशीष सोमपुरा बताते हैं कि सूर्य की गति की गणना करके सूर्य तिलक की तिथि व समय को लेकर शोध चल रहा है। चूंकि सूर्य गतिमान होता है तथा साल में सर्दी, गर्मी, बारिश कई मौसम होते हैं। इसलिए पूरे साल भगवान की मूर्ति पर सूर्य तिलक की संभावना नहीं है, लेकिन साल में एक या इससे अधिक दिन जरूर सूर्य के अक्षांश को देखकर इसका निर्धारण किया जा सकता है।
भगवान महावीर के माथे पर सूर्यतिलक
सोमपुरा परिवार की ओर से निर्मित गांधीनगर के कोबा में बने गुरुमंदिर जैनतीर्थ में भगवान महावीर की मूर्ति के ललाट पर प्रतिवर्ष 22 मई को दोपहर दो बजकर सात मिनट पर सूर्य तिलक होता है। जैन संत कैलाशसागर सूरीश्वर का 22 मई को दोपहर दो बजकर सात मिनट पर कालधर्म हुआ था, इसलिए पदम सागर सूरीश्वर महाराज ने इस समय को सूर्यतिलक के लिए चुना। वर्ष 1987 से प्रतिवर्ष इस दिन सूर्यतिलक होता है। सूर्यकिरण जिनालय के शिखर से पार करते हुए भगवान महावीर के ललाट पर आकर सूर्यतिलक करती है।
जानें, कैसे लगता है सूर्य तिलक
अहमदाबाद के समरणगणाम आर्किटेक्ट के आशीष सोमपुरा बताते हैं कि मंदिर के शिखर से एक पाइप के जरिए सूर्यकिरण को गर्भ गृह में मौजूद भगवान की मूर्ति तक लाया जाता है। यही सूर्यकिरण मूर्ति के ललाट पर सूर्य तिलक लगाती है या चरणों तक पहुंचती हैं। सोमपुरा बताते हैं कि सूर्य लगातार चलता रहता है, इसलिए प्रतिदिन यह संभव नहीं है। सूर्य की गति व मार्ग की गणना कर विशेष दिन पर सूर्यतिलक का तय किया जाता है।
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