Haryana Assembly Seat: अंबाला शहर में निर्मल के सामने 'असीम' चुनौती, पिछली बार जब्त हो गई थी कांग्रेस की जमानत
अंबाला शहर सीट पर भाजपा के असीम गोयल और कांग्रेस के चौधरी निर्मल सिंह के बीच कड़ा मुकाबला है। असीम गोयल के पास हैट-ट्रिक बनाने का मौका है लेकिन यह आसान नहीं होगा। निर्मल सिंह नग्गल विधानसभा क्षेत्र के धुरंधर रहे हैं लेकिन अंबाला शहर से पहली बार कांग्रेस ने उन्हें उतारा है। इस सीट पर अब तक सात बार भाजपा और दो बार कांग्रेस जीत चुकी है।
दीपक बहल, अंबाला। जीटी बेल्ट अंबाला शहर सीट। यहां भाजपा का दबदबा रहा है। इस बार चुनौती कड़ी है। मुख्य मुकाबला भाजपा के असीम गोयल और कांग्रेस के चौधरी निर्मल सिंह के बीच बना हुआ है। इनेलो-बसपा से मलकीत सिंह व आजाद समाज पार्टी (कांशीराम)-जजपा गठबंधन से पारुल नागपाल को चुनाव मैदान में उतारा है।
असीम गोयल के पास हैट-ट्रिक बनाने का मौका
असीम गोयल इस सीट से दो बार चुनाव जीत चुके हैं और उनके लिए हैट-ट्रिक बनाने की अवसर है, लेकिन यह आसान नहीं है। यहां भाजपा के मास्टर शिव प्रसाद ने हैट-ट्रिक बनाई। उनके अलावा कोई भी प्रत्याशी तीसरी बार चुनाव नहीं जीत पाया है। निर्मल सिंह नग्गल विधानसभा क्षेत्र के धुरंधर रहे हैं, लेकिन अंबाला शहर से पहली बार कांग्रेस ने उन्हें उतारा है। वह पिछला चुनाव भी अंबाला शहर विधानसभा से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़ चुके हैं।
पांच बार कांग्रेस तो सात बार भाजपा के खाते में गई सीट
अबाला शहर में अब तक के हुए चुनावों में सात बार भाजपा के विधायक बने। कांग्रेस के खाते में यह सीट दो बार आई है। एक बार अखिल भारतीय जनसंघ ने जीत दर्ज की है। इस सीट पर कांग्रेस की लेखवती जैन, विनोद शर्मा लगातार दो बार चुनाव जीते, लेकिन तीसरी बार नहीं जीत पाए।
भाजपा के मास्टर शिव प्रसाद लगातार 1977 से लेकर 1987 के चुनावों में तीन बार जीते। इसी हलका से लेखवती जैन विधानसभा में डिप्टी स्पीकर के पद पर भी रहीं। इसी सीट से जीते फकीरचंद अग्रवाल भी विधानसभा में डिप्टी स्पीकर के पद तक पहुंचे। असीम गोयल नायब सरकार में परिवहन राज्य मंत्री बने। इस बार बड़ी चुनौती यह है कि यहां से पिछली बार कांग्रेस प्रत्याशी बुरी तरह हार गए थे। इस निर्मल सिंह के सामने जीत की बड़ी चुनौती है।
नए चेहरों पर पहली बार दांव
अंबाला शहर सीट पर राजनीतिक पार्टियों ने नए चेहरों पर दांव खेला है। इस सीट पर कुल 11 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। इसमें आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) से पारुल नागपाल नया चेहरा हैं। इस पार्टी का जजपा से गठबंधन है। इसी तरह बसपा ने मलकीत सिंह भानोखेड़ी को उतारा है। यह भी नया चेहरा है। दूसरी ओर, आम आदमी पार्टी से केतन शर्मा शर्मा चुनवा मैदान में है। बागियों के वापस लेने पर अब कांग्रेस और भाजपा में मुकाबला है।
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कांग्रेस में गुटबाजी रही है हावी
इस सीट पर कांग्रेस की गुटबाजी कई बार सामने आ चुकी है। यहां तक कि दिग्गज नेताओं की रैली या जनसभाओं में भी कई बार एक गुट पूरी तरह से अनुपस्थित हो जाता है। यह वही विधानसभा सीट है जहां पर कांग्रेस ने इंडस्ट्रियल माडल टाउनशिप (आईएमटी) लगाने के लिए औरपचारिकताएं पूरी कर जमीन अधिग्रहण को लेकर नोटिस की कार्रवाई पूरी कर दी थी। इसी बड़े प्रोजेक्ट को लेकर सैलजा और हुड्डा गुट अलग-अलग धड़ों में बंट गए थे। इसके चलते यह प्रोजेक्ट आज भी कागजों में ही है।
असीम गोयल का क्षेत्र में विरोध
असीम गोयल के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में सत्ता विरोधी लहर चल रही है। यह सबसे बड़ी चुनौती है। शहर विधानसभा में 100 से अधिक गांव हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि वह इसका मुकाबला कैसे करते हैं। इतना ही नहीं शहर के मतदाताओं को भी अपने पक्ष में लाना किसी चुनौती से कम नहीं है।
निर्मल सिंह के लिए गुटबाजी रोकना चुनौती
निर्मल सिंह के लिए गुटबाजी और भितरघात को रोकना बड़ी चुनौती है। शहर विधानसभा में गुटबाजी हावी रही है। सैलजा और हुड्डा गुट हैं। हुड्डा गुट के दो समर्थकों का नामांकन वापस करवाने में कामयाबी मिली, लेकिन गुटबाजी से निपटना मुश्किल हो सकता है।
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