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'मुस्लिम व्यक्ति को अनुसूचित जाति आरक्षण का लाभ वैध नहीं'- असिस्टेंट प्रोफेसर को बर्खास्त करने के फैसले पर HC

कोर्ट ने कहा कि अगर यह मान भी लिया जाए कि याची ने कोई फ्रॉड नहीं किया है और उसका एससी प्रमाणपत्र भी अथॉरिटी ने जारी किया तो भी यह वैध नहीं हो सकता। मुस्लिम व्यक्ति को अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र जारी ही नहीं किया जा सकता।

By Jagran NewsEdited By: Rajat MouryaUpdated: Mon, 12 Jun 2023 08:38 PM (IST)
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'मुस्लिम व्यक्ति को अनुसूचित जाति आरक्षण का लाभ वैध नहीं'- असिस्टेंट प्रोफेसर को बर्खास्त करने के फैसले पर HC

चंडीगढ़, राज्य ब्यूरो। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि मुस्लिम व्यक्ति को अनुसूचित जाति आरक्षण का लाभ देना वैध नहीं है। हाई कोर्ट ने यह फैसला कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर को बर्खास्त करने के फैसले पर मुहर लगाते हुए जारी किया है।

याचिका दाखिल करते हुए कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी के पत्रकारिता विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर आबिद अली ने उन्हें बर्खास्त करने के 28 जुलाई 2017 के फैसले को चुनौती दी थी। याचिका में बताया गया कि उन्हें 2 जुलाई 2007 को नियुक्ति दी गई थी। इसके बाद 2012 में कृष्ण कुमार ने यूनिवर्सिटी को शिकायत दी, जिसके आधार पर जांच आरंभ हुई।

जांच में क्या मिला

जांच के दौरान करनाल के डीसी ने पाया कि जो एससी सर्टिफिकेट याची ने नियुक्ति के लिए आवेदन करते हुए दिया था, वह उनके पास पंजीकृत नहीं है। इसके बाद यूनिवर्सिटी ने जांच कमेटी बनाई और आखिरकार याची को बर्खास्त करने का आदेश जारी कर दिया। याची ने कहा कि लिपिकीय गलती के कारण याची का प्रमाणपत्र पंजीकरण दस्तावेजों से मेल नहीं खाया। साथ ही यह भी कहा कि उसे सामान्य श्रेणी में नियुक्ति दी गई थी, न की अनुसूचित जाति का आरक्षण लाभ देते हुए।

हाई कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि याची ने आवेदन पत्र में अपनी जाति एससी ए दर्ज की थी। इंटरव्यू के समय भी जो सूची तैयार हुई थी उसमें याची को एससी उम्मीदवार दिखाया गया था। ऐसे में याची इस बात से मुकर नहीं सकता कि उसने एससी श्रेणी में आवेदन किया।

'अगर याची ने फ्रॉड नहीं किया है तो भी...'

इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि अगर यह मान भी लिया जाए कि याची ने कोई फ्रॉड नहीं किया है और उसका एससी प्रमाणपत्र भी अथॉरिटी ने जारी किया तो भी यह वैध नहीं हो सकता। मुस्लिम व्यक्ति को अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र जारी ही नहीं किया जा सकता। ऐसे में याची की नियुक्ति सही नहीं थी और याचिकाकर्ता को सेवा में बने रहने का कोई हक नहीं है। कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए उसे दो माह के भीतर सरकारी आवास को भी खाली करने का आदेश दिया है।

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