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Women Empowerment: खेती से आर्थिक उन्नति की नई कहानी लिख रहीं देश की ग्रामीण महिलाएं

देश की लगभग 85 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएं कृषि कार्यों से जुड़ी हैं। इनमें से मात्र 13 फीसद के पास अपनी जमीन है। बावजूद इसके वे खेतों में श्रम कर स्वयं के साथ परिवार को आर्थिक मजबूती देने का प्रयत्न कर रही हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Sat, 28 Nov 2020 08:23 AM (IST)
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महिला कृषकों में उपजा यह हौसला नई पीढ़ी तक को प्रेरणा दे रहा है।
अंशु सिंह। हरियाणा के अंबाला जिले का छोटा-सा गांव है अधोई, जहां कृषि ही लोगों का मुख्य पेशा है। यहां के ही ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी हैं अमरजीत कौर। 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद अभी स्नातक में दाखिला लिया ही था कि कृषक पिता की तबियत बिगड़ने पर इसका प्रभाव परिवार की आर्थिक स्थिति पर भी पड़ा। तब बेटी ने पिता के खेतों की जिम्मेदारी लेने का निर्णय लिया। जो भी थोड़ी-बहुत जानकारी थी, उसकी मदद से उन्होंने खेतों में कार्य करना शुरू कर दिया। कई बार तो सुबह चार बजे की गई, रात में घर लौट पाती थीं अमरजीत। लेकिन न मेहनत करना छोड़ा और न ही टूटा उनका हौसला।

वह बताती हैं, ‘मुझे खेती-किसानी की अधिक जानकारी नहीं थी। बचपन में पिता जी को खेतों में जो करते देखा था, उतना ही जानती थी। मुश्किल दौर था वह। लेकिन कुछ लोगों की मदद से आगे बढ़ी। शुरू के तीन वर्ष ठेके पर ली हुई जमीन के अलावा पारिवारिक भूमि पर भी फसल उपजाई। तकरीबन 15 एकड़ के खेत में अकेले, बिना किसी मजदूर की सहायता के काम किया। फिर वह खाद डालना हो या खेतों की जुताई करनी हो।’ आज अमरजीत के खेतों में मौसम के अनुसार, गन्ने से लेकर गेंहू, धान, सब्जी, मक्का सभी फसलें उगाई जाती हैं। वे खुद ही इसे बाजार तक पहुंचाती हैं।

कृषि में कर रही हैं नव-अन्वेषण : संतोष राजस्थान के सीकर जिले के गांव बेरी के एक सामान्य परिवार से आती हैं। कुछ अलग हटकर करने की चाहत में उन्होंने जैविक खेती शुरू की। नवाचार के जरिये कटिंग विधि से अनार की नई जैविक किस्म विकसित की, जिसके लिए उन्हें प्रदेश सरकार से सम्मान मिला है। 2019 में वे 'खेतों के वैज्ञानिक' सम्मान से भी नवाजी जा चुकी हैं। इनके पिता होमगार्ड के जवान थे, लेकिन 2013 में उन्होंने भी नौकरी छोड़ बागवानी में हाथ बंटाने का निर्णय लिया।

अपनी बुलंद आवाज में बताती हैं संतोष, ‘हम नई विधि से अनार, अमरूद, नींबू, माल्टा एवं किन्नू के पौधे कटिंग विधि से तैयार करते हैं। पौधे तैयार हो जाने के बाद उन्हें उचित कीमत पर किसानों को उपलब्ध कराया जाता है।’ बड़ी बात यह भी है कि संतोष कृषि में उन्नत तकनीक का इस्तेमाल करती हैं। वे ट्यूबवेल, बूंद-बूंद सिंचाई एवं सौर ऊर्जा का प्रयोग करती हैं। कुछ समय पूर्व इन्होंने राजस्थान में सेब के पौधे तैयार करने में भी उपलब्धि हासिल की है। आज वे पांच बीघे में बागवानी कर 20 लाख रुपये तक सालाना कमा लेती हैं। इनके तैयार किए हुए सेब एवं अनार आदि के पौधे स्थानीय बाजारों के अलावा, आंध्रप्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात जैसे अन्य राज्यों में भेजे जा रहे हैं।

आलू की खेती से बदलती आर्थिक तस्वीर : शमीमा के पति किसान हैं। वे खुद भी उनके साथ खेतों में बीज की कटाई से लेकर श्रमिकों को दिशा-निर्देश देना, सब देखती हैं। दो वर्ष पहले इनका संयुक्त राष्ट्र के प्रोजेक्ट डेवलपमेंट (यूएसएआइडी) कार्यक्रम से जुड़ना हुआ, जो पेप्सिको इंडिया कंपनी के साथ मिलकर ग्रामीण महिलाओं (किसानों) के सशक्तीकरण के साथ ही उन्हें सस्टेनेबल फार्मिंग के बारे में जागरूक करता है।

पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के छोटे से गांव मोलयपुर की शमीमा ने भी बकायदा प्रशिक्षण लेकर अपनी जमीन पर आलू की खेती करनी शुरू की। एक मौसम में वे करीब 12 टन आलू की उपज कर लेती हैं। वह बताती हैं,‘मैं वर्ष 2010 में ‘ईद मुबारक’ नाम के एक स्वयं सहायता समूह से जुड़ी थी। इसमें गांव की कृषक महिलाएं शामिल होती हैं। आज उस समूह का नेतृत्व कर, अन्य महिलाओं को उन्नत खेती के बारे में जागरूक करती हूं।

वहीं, कंपनी के कार्यक्रम से जुड़ने के बाद अब बिचौलियों के आश्रित नहीं रहना पड़ता। कंपनी के लोग सीधे उत्पाद खरीदकर ले जाते हैं। इससे आमदनी भी पहले से अच्छी हो गई है।’ जिन शमीमा के पास एक समय बचत के नाम पर कुछ नहीं शेष रहता था, वे आज अपनी बेटी को पढ़ा रही हैं जो मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही है। घर की माली हालत भी बेहतर हुई है। उनमें आत्मविश्वास आया है कि वे सहायक की भूमिका निभाने की बजाय अकेले खेतों में काम कर लेती हैं। हुगली के ही हरिश्चंद्रपुर गांव की मालती मलिक, बीते 20-22 वर्षों से पति के साथ मिलकर अपने 0.8 एकड़ के खेत में काम कर रही हैं। करीब साल भर पहले इनका वूमन एम्पावरमेंट इनिशिएटिव नामक एक अभियान से जुड़ना हुआ, जहां उन्होंने बीजों की सही देखभाल, पेस्ट कंट्रोल, हार्वेस्टिंग, संग्रहण के बारे में जाना। मालती ने बताया कि प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिस्सा लेने से वे सिंचाई, क्रॉप रोटेशन आदि के साथ वित्तीय प्रबंधन एवं उद्यमिता के बारे में जान सकीं। इससे आज आलू व अन्य सब्जियों आदि की उपज में अच्छी बढ़ोतरी हुई है। वह परिवार की आर्थिक मदद करने के साथ घर में ट्यूबवेल से लेकर शौचालय तक का निर्माण करा सकी हैं।

संगठित होकर लिखतीं नई कहानी : राजस्थान में मानसून के दौरान ही एक निश्चित समय के लिए खेती होती है, लेकिन जोधपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर सरेचा पंचायत के अंतर्गत आने वाले छोटे से गांव सर में कुछ अलग प्रयोग किया जा रहा है। स्थानीय ग्रामीण महिलाएं एक समूह के माध्यम से खेती के साथ अन्य कलात्मक गतिविधियों से जुड़कर जीविकोपार्जन कर रही हैं। फेसबुक की मदद से इस समूह द्वारा बनाए जाने वाले उत्पाद या उपज को बाजार तक पहुंचाया जा रहा है। ‘हीरा पन्ना’ समूह से जुड़े वाघाराम चौधरी की मानें, तो इससे महिलाओं को स्थानीय के अलावा प्रदेश के बाहर भी पहचान मिल रही है। समूह से जुड़े सदस्यों की संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है। समूह से जुड़ीं किसान पप्पू देवी कहती हैं,‘हम बाजरा, मूंग, तिल, ग्वार आदि की खेती के अलावा सिलाई-कढ़ाई व डेयरी से संबंधी कार्य करती हैं, लेकिन मेहनत व लागत के अनुसार कमाई नहीं हो पाती। अगर बिचौलियों की समस्या न रहे, तो स्थिति में काफी सुधार आ सकता है।‘

बेटियों को मिल रहा कृषि में प्रोत्साहन : अंबाला के अधोई की किसान अमरजीत कौर ने बताया कि खेतों में काम करने के अलावा जैविक उत्पाद का कारोबार भी देखती हूं। जैसे अपने खेतों में 90 प्रतिशत जैविक खाद का प्रयोग करती हूं, वैसे ही अन्य किसानों से भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करती हूं। इससे उनका उत्पादन प्रभावित नहीं होता और पर्यावरण की रक्षा हो जाती है, सो अलग।

दूसरा सकारात्मक परिवर्तन यह आया है कि अब गांव के अन्य परिवार भी अपनी बेटियों को कृषि कार्यों से जोड़ रहे हैं, उन्हें प्रोत्साहित कर रहे हैं। नई पीढ़ी के लड़कों को भी एक संदेश गया है कि एक लड़की खेतों में काम कर सकती है, ट्रैक्टर चला सकती है, तो वे क्यों नहीं अपने पिता या घरवालों का हाथ बंटा सकते हैं? मैं मानती हूं कि किसी के लिए भी उनका स्वयं का आत्मसम्मान जरूरी है। महिलाओं के साथ समाज को अपनी सोच का दायरा बढ़ाना होगा।

जैविक विधि से बागवानी ने बदली सूरत : राजस्थान की किसान संतोष खेदड़ ने बताया कि मैंने 2008 में अनार की जैविक खेती शुरू की थी, क्योंकि बाजरा,गेंहू जैसे मोटे अनाज से खास कमाई नहीं हो रही थी। जितनी लागत लगती थी, उसकी भी भरपाई नहीं हो पाती थी। तभी हमने बागवानी में हाथ आजमाने का निर्णय लिया। हमने अनार, किन्नू, मौसमी, नींबू के बगीचे लगाए।

पहले वर्ष कम लागत के बावजूद अच्छी कमाई हुई, तो उत्साह बढ़ा। फिर कटिंग विधि से अनार के बीस हजार के करीब पौधे तैयार किए। उससे बहुत फायदा हुआ। तब से पौधे की बिक्री भी करने लगे। खेती-बागवानी में मेरा दिल रमता है। मैंने अपने बच्चों को भी एग्रीकल्चर में स्नातक कराया है, ताकि वे कृषि क्षेत्र से जुड़कर कार्य कर सकें। मैं किसानों से यही अपील करूंगी कि वे रसायनों का प्रयोग बंद कर, जैविक खेती को अपनाएं। पानी के संकट को देखते हुए ड्रिप इरीगेशन अपनाने से फायदा होगा। इसी प्रकार, अपने फसलों को खुद बाजार तक ले जाने से आर्थिक उन्नति के साथ-साथ संतुष्टि भी मिलेगी।

महिला किसानों के सशक्तीकरण पर जोर : पेप्सिको इंडिया की एग्रो निदेशक प्रताप बोस ने बताया कि हम देश के 14 राज्यों में करीब 27 हजार से अधिक किसानों के साथ काम कर रहे हैं। कॉलैबोरेटिव फार्मिंग, डायरेक्ट सीडिंग, ड्रिप इरिगेशन, सस्टेनेबल फार्मिंग जैसे कार्यक्रमों के जरिये हम किसानों और विशेषकर महिला किसानों के आर्थिक सशक्तीकरण के लिए प्रयासरत हैं।

पश्चिम बंगाल में यूएसएआइडी के साथ मिलकर हमने महिला किसानों को प्रशिक्षित करने से लेकर उन्हें वैकल्पिक खेती, वित्तीय प्रबंधन आदि के बारे में जागरूक किया है। कंपनी लैंडेसा जैसे स्थानीय पार्टनर्स के साथ किसानों को स्वतंत्र रूप से खेती करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। आने वाले समय में महाराष्ट्र में भी इस तरह के अभियान शुरू करने की योजना है।

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