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वेस्ट टू एनर्जी प्लांट के लिए नहीं होड़ , प्रोजेक्ट के लिए चुनौती बने 280 करोड़

उमेश भार्गव अंबाला सिगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। अभी भी धड़ल्ले से इसका प्रयोग

By JagranEdited By: Updated: Thu, 07 Jul 2022 11:55 PM (IST)
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वेस्ट टू एनर्जी प्लांट के लिए नहीं होड़ , प्रोजेक्ट के लिए चुनौती बने 280 करोड़

उमेश भार्गव, अंबाला

सिगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। अभी भी धड़ल्ले से इसका प्रयोग हो रहा है। दूध की थैलियां, चिप्स, कुरकुरे, बिस्कुट के पैकेट सहित विभिन्न पैकिग का सामान अभी भी सिगल यूज प्लास्टिक में ही पैक होकर आ रहा है। इतना ही नहीं बाजार में अभी तक पालीथिन भी बंद नहीं हुई है। लिहाजा इस पर पाबंदी के साथ सख्ती और निस्तारण की व्यवस्था अहम है। जमीनी स्तर पर इसके लिए अभी कोई प्रयास नहीं हो रहा। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिले में 280 करोड़ की लागत से लगने वाला वेस्ट टू एनर्जी प्लांट यानी कचरे से बिजली बनाने का प्रोजेक्ट-5 साल बाद भी कागजों से बाहर नहीं निकल पाया है। अंबाला में वेस्ट टू एनर्जी प्लांट की घोषणा-5 साल पहले तत्कालीन शहरी स्थानीय निकाय मंत्री कविता जैन ने की थी।

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क्या है बाधा

दरअसल सरकार ने वेस्ट टू एनर्जी प्लांट लगाने के लिए टेंडर गत वर्ष सितंबर माह में फ्लोट किया था। 27 सितंबर टेंडर ओपन की तारीख रखी गई थी लेकिन इस टेंडर में किसी ने कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखाई। गत सप्ताह भी टेंडर फ्लोट किया गया था लेकिन यह भी सिरे नहीं चढ़ा। क्योंकि वेस्ट टू एनर्जी प्लांट प्रोजेक्ट 280 करोड़ का है। इतनी बड़ी राशि इनवेस्ट करने की हिम्मत एक फर्म ही दिखा रही है। लिहाजा इनवेस्टरों को यह प्रोजेक्ट लुभा नहीं सका। ऐसे में कौन इतनी बड़ी राशि खर्च करेगा यह यक्ष प्रश्न यूएलबी को सता रहा है।

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कूड़े की छंटनी और निस्तारण अनिवार्य

एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों के अनुसार कूड़े की न केवल छंटनी करनी है बल्कि इसका निस्तारण भी करना है। इसी के तहत अंबाला और यमुनानगर को एक कलस्टर में तब्दील किया गया था। अंबाला के अलावा नारायणगढ़ और बराड़ा व यमुनानगर के अलावा सढौरा और रादौर इन छह केंद्रों का कूड़ा पटवी में बनने वाले एनर्जी प्लांट में लाए जाने की योजना बनाई गई थी। बता दें कि करीब 5 साल पहले अंबाला कलस्टर में अंबाला के अलावा कुरुक्षेत्र और करनाल के निसिग को शामिल किया गया था लेकिन 2021 में कलस्टर बदल दिए गए थे।

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लुभावने वादे भी नहीं आए रास :-

वेस्ट टू एनर्जी प्लांट लगाने की जिम्मेदारी टेंडर लेने वाली कंपनी की होगी। इस पर पूरा खर्च कंपनी ही वहन करेगी। कुल 280 करोड़ रुपये के प्लांट में से 22.5 प्रतिशत सब्सिडी यानी करीब 8 करोड़ रुपये राज्य सरकार कंपनी को देगी। इतना ही नहीं कूड़े के निस्तारण और कूड़े को एकत्रित करने के लिए उसे पटवी में जगह भी नगर निगम लीज पर उपलब्ध करवाएगा। यह योजना बनाई गई थी। अंबाला-यमुनानगर दोनों जिलों से औसतन प्रतिदिन 550 टन कूड़ा निकलता है। अंबाला की बात करें तो यहां रोजाना करीब 250 टन कूड़ा निकलता है। इस कूड़े के उठान पर अंबाला में जिले में हर माह करीब ढाई करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। यानी करीब 30 करोड़ रुपये सालाना। इसके अलावा निस्तारण पर होने वाला खर्च अलग है। इसी तरह यमुनानगर की स्थिति है। कुल मिलाकर ठेकेदार को एक साल में दोनों जिलों से 60 करोड़ रुपये कूड़ा उठान से ही हासिल होने की उम्मीद है, यानी करीब साढ़े 4 साल में लागत पूरी हो जाएगी। इतना ही नहीं कूड़े से पैदा होने वाली बिजली को बेचने के लिए कंपनी बिजली निगम से पावर परचेज एग्रीमेंट करेगी। पैदा होने वाली बिजली पावर ग्रिड में जाएगी। इस तरह बिजली बेचने से होने वाली आमदनी अलग रहेगी। लेकिन यह लुभावने वादे रास नहीं आए।

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केवल दो ही कंपनियां लेती हैं आरडीएफ

वर्तमान की बात करें तो प्रदेश में केवल सोनीपत की जेबीएल और गुरुग्राम की ईकार्ट ही प्रदेशभर के सभी जिलों से निकाले गए आरडीएफ यानी रिफ्यूज डराइव्ड फ्यूल लेती हैं। यह ठोस कूड़े के निस्तारण के बाद बचता है जोकि पालीथिन और कपड़े से बनता है। इसके बाद इससे बिजली पैदा करने के लिए इसे सोनीपत की जेबीएल कंपनी को भेज दिया जाता है। इसी तरह ईकोर्ट भी एक सर्टिफाइड कंपनी है जोकि मध्यस्थता का काम करती है और आरडीएफ को विभिन्न एजेंसियों तक पहुंचाती है। मुख्य तौर पर केवल जेबीएल ही पालीथिन का खात्मा कर पा रही है लेकिन इसकी क्षमता उत्पादन क्षमता से बेहद कम है। अंबाला से ही रोजाना 100 टन आरडीएफ भेज दिया जाता है।

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वेस्ट टू एनर्जी प्लांट का टेंडर नगर निगम के स्तर पर टेंडर फ्लोट नहीं होता। यह सीधे यूएलबी के स्तर से फ्लोट किया गया था। लेकिन एक से ज्यादा कंपनी आवेदन नहीं कर रही इसीलिए टेंडर जारी नहीं हो पा रहा।

संजीव गुप्ता, एक्सईएन नगर निगम।

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