Haryana Latest News खेल जगत में हरियाणा ने देश-विदेश में खूब नाम रोशन किया है। लेकिन मुक्केबाजी में हरियाणा को वह सफलता नहीं मिल पा रही जिसकी वह क्षमता रखता है। इटली में चल रहे प्रथम वर्ल्ड ओलिंपिक क्वालिफाइंग मुकाबलों में भी अब तक भारत को निराशा ही हाथ लगी है। अब तक भारतीय मुक्केबाजों के चार मुकाबले हुए हैं
सुरेश मेहरा, भिवानी। इसे चयन प्रक्रिया का दोष कहें या मुक्केबाजों की मेहनत में कमी पर यह सच है कि पुरुष मुक्केबाजी वर्ष 2008 के बाद से सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। पहली बार ऐसा हुआ कि एशियन गेम्स में एक भी भारतीय पुरुष मुक्केबाज को ओलिंपिक कोटा प्राप्त नहीं हुआ।
इटली में चल रहे प्रथम वर्ल्ड ओलिंपिक क्वालिफाइंग मुकाबलों में भी अब तक भारत को निराशा ही हाथ लगी है। अब तक भारतीय मुक्केबाजों के चार मुकाबले हुए हैं ओर चारों ही राउंड 64 में ही दौड़ से बाहर हो गए और पेरिस ओलिंपिक में खेलने का उनका सपना टूट गया।
नौ मुक्केबाजों में से छह हरियाणी हैं जिनमें दौड़ से बाहर होने वालों में सभी हरियाणवी ही हैं। खुद खिलाड़ी और खेल प्रशिक्षक भी यह मान रहे हैं कि मूल्यांकन तो ठीक है पर चयन के लिए ट्रायल भी जरूर ली जाए। विदेशी खेल प्रशिक्षकों की मनमर्जी भी इसके लिए दबी जुबान से जिम्मेदार मानी जा रही है।
अब निशांत देव और संजीत सिंगरोहा पर टिकी उम्मीद
हरियाणा के चार मुक्केबाज पेरिस ओलिंपिक कोटा प्राप्त करने से वंचित रहने के बाद अब निशांत देव 71 और संजीत सिंगरोहा 92 किलो पर ही उम्मीद टिकी हैं। करनाल के निशांत देव का मुकाबला छह मार्च काे जीबीआर और संजीत सिंगरोहा का मुकाबला सात मार्च को होगा। ये मुक्केबाज अपने पंचों से खेल प्रेमियों की उम्मीदों पर खरा उतर पाते हैं यह आने वाला वक्त ही बताएगा।
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पेरिस ओलिंपिक कोटा पाने की दौड़ से ये हो चुके बाहर
पेरिस ओलिंपिक 2024 कोटा प्राप्त करने की दौड़ से बाहर हुए मुक्केबाजों में 92 प्लस किलो भार वर्ग में हिसार के नरेंद्र बेरवाल कजाकिस्तान से 0-5, दीपक भोरिया हिसार 51 किलो में अजरबेजान से 3-2 और भिवानी की महिला मुक्केबाज जैस्समिन लंबोरिया 60 किलो में अपने प्रतिद्वंद्वी से 0-5 अंकों से हार कर कोटा पाने की दौड़ से बाहर हो गए। इसके अलावा चरखी दादरी के लक्ष्य चाहर को इरान के मुक्केबाज ने तीसरे राउंड में नाक आउट कर दिया। दूसरे राउंड में वह एक-एक अंक की बराबरी पर थे।
बिना ट्रायल के खिलाड़ियों का चयन किया गया है। ऐसे में ओलिंपिक कोटा प्राप्त होने की संभावना कम ही लग रही है। वर्ष 2008 के बाद भारतीय पुरुष मुक्केबाजी के लिए यह सबसे खराब दौर कहा जा सकता है जब कोई खिलाड़ी पेरिस ओलिंपिक के लिए अभी तक कोटा तक प्राप्त नहीं कर पाया है।
एडवाकेट राजनारायण पंघाल, खेल प्रेरक।
केवल स्तत मूल्यांकन को ही चयन का आधार नहीं बनाया जाना चाहिए। ट्रायल भी जरूर ली जाए। चयनित खिलाड़ियों के जो बेसिक कोच हैं उनकी भी समय-समय पर राय ली जानी चाहिए। विदेशी कोच होना तो सही है पर वे स्वदेशी कोचों से भी तालमेल बना रखें। ऐसे होने पर ही बेहतर की उम्मीद की जा सकती है।
जगदीश सिंह, द्रौणाचार्य अवार्डी
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