विभाजन की विभीषिका: मुहल्ले की महिला के वचन ने बचाई थी जान, रेलगाड़ी पर हमले के डर से बार-बार अटक जाती थी सांसें
सन् 1947 में देश को स्वतंत्रता मिली वैसे तो यह दिन हमारे लिए खुशहाली से भरा था। लेकिन आजादी ने जो हमें घाव दिए उसकी टीस आज भी दिल को दहला देती है। बंटवारे के समय सैकड़ों लोगों का खून बहा। उन दिनों की विभीषिका भिवानी (Bhiwani News) के कृष्णा नगर निवासी 90 वर्षीय शानुराम धमीजा ने अनुभव साझा किया है
सुरेश मेहरा, भिवानी। हम तो छोटे बच्चे थे घर के बाहर खेल रहे थे। अचानक से मां आई और घर में ले गई बाकी बच्चों को भी अपने-अपने घर भेज दिया। बताया गया लड़ाई हो गई है।
हमारी समझ से बाहर था यह सब। जब यह घटना घटी तब हमारी उम्र कोई 12-13 साल रही होगी। अगले दो दिन बाद बात बढ़ती गई। गौरों की सेना आ गई।पाकिस्तान में कोटला मंगला हमारा गांव था। ज्यादा बड़ा गांव नहीं था। हम दोस्तों के साथ खेलते रहते थे। हमारे पड़ोसी भी अच्छे थे उनके नाम तो मैं नहीं जानता। जब लड़ाई हुई तो गांव का हर कोई जैसे अपने घरों में दुबक गया था। कोई बाहर नहीं आ रहा था।
हमें भी बाहर नहीं जाने दिया जा रहा था। पिता ने बताया था हमें यहां से जाना होगा। बात बढ़ती जा रही है। अमन शांति होगी तो वापस आ जाएंगे। अब तो वक्त बदल गया। यहां भिवानी आने के बाद सब अच्छा है। बेटे पौते खुशहाल हैं।यह भी पढ़ें- Haryana Crime: करनाल में फायरिंग करने वाले बदमाशों से पुलिस की मुठभेड़, एक आरोपी के पैर में लगी गोली; दोनों गिरफ्तार
मुहल्ले की महिला के वचन ने बचाई हम सबकी जान
कृष्णा कॉलोनी निवासी 90 वर्षीय शानुराम धमीजा खाना खाते हुए अपने अतीत में खो जाते हैं। साथ में बैठे उनके पौत्र कहते हैं दादाजी खाना खा लेते हैं। फिर वे खाना खाने लगते हैं।खाना खाने के बाद उनसे बातचीत का प्रयास करते हैं। वह उम्र के इस पड़ाव पर पूरी तरह स्वस्थ तो नहीं हैं पर फिर भी अपने दिमाग पर जोर देते हुए अतीत को याद करते हैं।
तुतलाई आवाज में उस समय के हालात बताने लगते हैं। मेरे पिताजी श्यामाराम हमारे कोटला मंगला गांव में ही हलवाई का काम करते थे। वहां पर हमारा अच्छा काम था। दो दिन बाद हमारे गांव में हमलावर पहुंच गए। उनकी अगवाई समरूद्दीन नाम का व्यक्ति कर रहा था।हमारे ही पड़ोस की एक महिला जो मुस्लिम थी उसने उसे रोका और बोली बेटा तुमसे पहले वचन चाहिए। जब उसने वचन पूछा तो बोली इस मुहल्ले में तुम किसी को नहीं मारोगे। मां का वचन हम नहीं तोड़ सकते यह कहते हुए वह हमलावरों के साथ वहां से चले गए।
उस दिन शायद शुक्रवार था। रक्षा बंधन का त्योहार भी उस सप्ताह में आने वाला था। रक्षाबंधन की खुशियां मनाने की तैयारी घरों में चल रही थी। उसी रात हमारे मुहल्ले में सेना आ गई और सुबह-सुबह होते-होते हमें घरों से निकाला।सुबह चार बजे के आस पास हम परिवार और आस पास के लोग पैदल ही घर से निकल लिए। हम घर से दो-दो जोड़ी कपड़े और कुछ खाने का सामान लेकर निकले थे।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।