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चुनौतीपूर्ण कार्य है दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाना

नागरिक अस्पताल में दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाने के लिए आने वालों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

By JagranEdited By: Updated: Wed, 02 Dec 2020 08:45 PM (IST)
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चुनौतीपूर्ण कार्य है दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाना
जागरण संवाददाता, फरीदाबाद : नागरिक अस्पताल में दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाने के लिए आने वालों को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। घंटों इंतजार करने के बाद डॉक्टर से मुलाकात होती है एवं दस्तावेज की कमियों को दूर करने के लिए काफी भागदौड़ करने के बाद प्रमाण पत्र बनकर मिल पाता है।

उल्लेखनीय है कि जिले में सप्ताह में एक दिन बुधवार को दिव्यांग प्रमाण पत्र बनाए जाते हैं। ऐसे में लोग कार्यालय खुलने से पूर्व सुबह आठ बजे से ही एकत्र होना शुरू हो जाते हैं, ताकि जल्दी से प्रमाण पत्र बनवाकर अपने काम पर भी लौट जाएं। अधिकारियों की लेट लतीफी की वजह से दिव्यांगों को प्रमाण पत्र बनवाने में सुबह से शाम हो जाती है। प्रमाण पत्र बनवाने वालों में कई लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें बैठने के लिए डॉक्टर ने मना किया होता है, लेकिन प्रमाण पत्र पाने के लिए अपने दर्द को भूलकर बैठे रहते हैं। हालांकि आवेदन प्रक्रिया को आनलाइन कर दिया गया है, लेकिन उसके बाद की भागदौड़ खुद दिव्यांग एवं उसके स्वजनों को ही करनी पड़ती हैं। नागरिक अस्पताल में उनका मार्गदर्शन करने वाला कोई नहीं होता है। बेटे गप्पू का प्रमाण पत्र बनवाना है। सुबह नौ बजे अस्पताल बुला लिया था, लेकिन 11 बजे तक नंबर नहीं आया है। वहीं कर्मचारी अपने परचितों को पहले ले जाकर काम करवा रहे हैं।

-राजवती, डबुआ कालोनी बेटी कीर्ति चल नहीं पाती है। उसका प्रमाण पत्र बनवाने के लिए आई हूं। सुबह से दोपहर हो गई है, लेकिन अभी तक नंबर नहीं है। डॉक्टर बहुत ही धीमे काम कर रहे हैं।

-पिकी, गांधी कालोनी पत्नी ऊषा देवी का प्रमाण पत्र बनवाना है। दुर्घटना में आधे शरीर में लकवा आ गया था। वह ज्यादा देर बैठ या खड़ी नहीं रह सकती। सबको एक साथ बुलाने की बजाय समय दे देना चाहिए। इससे भीड़ भी कम रहेगी।

-अनिल कुमार, जवाहर कालोनी व्यवस्थाओं को बेहतर बनाने की ओर लगातार काम किया जा रहा है। पैनल वाले डॉक्टर सुबह से काम करने लगते हैं। कई बार ऐसे केस आ जाते हैं, जिसका पूरा परीक्षण करने में समय लग जाता है, इस वजह से समय लग जाता है। प्रयास रहेगा कि व्यवस्थाओं को और बेहतर बनाया जाए।

-डॉ. रणदीप सिंह पूनिया, मुख्य चिकित्सा अधिकारी

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