Faridabad: खुदाई खिदमतगारों के संघर्ष से हुआ था औद्योगिक नगरी एनआइटी का जन्म
Faridabad एनआइटी फरीदाबाद (न्यू इंडस्ट्रियल टाउन) का जन्म दिन है। देश जब अंग्रेज शासकों से जुल्मो सितम से स्वतंत्र हुआ तब धर्म के आधार पर देश के दो टुकड़े भी हुए। उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत के छह जिलों से उजड़ कर भारत आए थे।
फरीदाबाद, सुशील भाटिया: आज हमारे शहर एनआइटी फरीदाबाद (न्यू इंडस्ट्रियल टाउन) का जन्म दिन है। देश जब अंग्रेज शासकों से जुल्मो सितम से स्वतंत्र हुआ, तब धर्म के आधार पर देश के दो टुकड़े भी हुए।
उस समय करीब 50 हजार लोग उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत (नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस) के छह जिलों बन्नू, कोहाट, हजारा, पेशावर, मर्दान व डेरा इस्माइल खान (अब पाकिस्तान में) से उजड़ कर भारत आए थे। इनमें से लगभग 35 हजार लोगों ने पहले कुरुक्षेत्र के शरणार्थी शिविरों में शरण ली। खुद प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इन शिविरों की देखरेख करते थे और क्योंकि यह सीमांत प्रांत से आए और सीमांत गांधी के नाम से प्रसिद्ध खान अब्दुल गफ्फार खान के अनुयायी थे।
रोजाना होता था जलसा
भारत सरकार शरणार्थियों को अलवर या भरतपुर रियासत में बसाना चाहती थी, जबकि रिफ्यूजी राजधानी दिल्ली के आसपास ही बसना चाहते थे। इस पर खुदाई खिदमतगारों कन्हैया खट्टक, खामोश सरहदी पं.गोबिंद दास, सालार सुखराम, लक्खी चाचा, पंडित अनंत राम शौक, श्रीचंद मर्दानी, खुशी राम गणखेल, जेठा नंद, चौ.दयालागंद, दुली चौधरी, तोता राम, निहाल चंद, छत्तू राम गेरा जैसे संघर्षशील लोगों का एक संगठन बना, जिसके बैनर तले कुरुक्षेत्र की सुभाष व साधु मंडी में रोजाना जलसा होता था, जिसमें केंद्र सरकार तक आवाज पहुंचाने के लिए आंचलिक भाषा में यह गीत गाए जाते थे कि 'अलवर नयीं जाणा सरकार अलवर नयीं जाणा, इत्थे मर जाणा' अर्थात हम यहीं पर मर जाएंगे, पर अलवर या भरतपुर नहीं बसेंगे।
जुलाई 1948 में दिल्ली ले आए आंदोलन
सभी खुदाई खिदमतगार अपने आंदोलन को जुलाई 1948 में दिल्ली ले आए और पुन: स्थापना मंत्रालय व त्रिमूर्ति चौक पर सत्याग्रह शुरू हुआ। इसके तहत रोजाना 11 व्यक्ति गिरफ्तारी देते, जिन्हें दिल्ली सेंट्रल जेल में हवालाती के तौर पर रखा जाता। इस मुहिम में कुल 81 सत्याग्रही गिरफ्तार हुए। नाजुक माहौल में हुई गिरफ्तारियों ने भारत सरकार को सोचने पर विवश कर दिया।
पं.नेहरू ने अपनी निकटतम सलाहकार मृदुला साराभाई को सत्याग्रहियों से बातचीत करने की जिम्मेदारी सौंपी, बातचीत के बाद सरकार ने फरीदाबाद, राजपुरा व बहादुरगढ़ के रूप में तीन नए शहर विकसित करने का फैसला किया। दिल्ली के निकट होने के कारण सबकी सहमति फरीदाबाद पर बनी और अंतत: 17 अक्टूबर को 1949 को एनआइटी शहर का जन्म हुआ।
फरीदाबाद विकास बोर्ड का हुआ गठन
शहर का विकास हो, इसके लिए प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने कैबिनेट की बैठक बुलाई गई और फरीदाबाद विकास बोर्ड के गठन को मंजूरी दे दी गई। प्रथम राष्ट्रपति बाबू राजेंद्र प्रसाद बोर्ड के चेयरमैन नियुक्त किए गए। स्वयं नेहरू इसके आमंत्रित सदस्य थे। बोर्ड के मुख्य प्रशासक के तौर पर नेहरू ने सुधीर घोष को नियुक्त किया, वह महात्मा गांधी के बेहद करीबी थे और ब्रिटिश सरकार और गांधी के बीच संवाद स्थापित करने का काम करते थे। नेहरू को शहर से इतना लगाव था कि फरीदाबाद विकास बोर्ड की कुल 24 बैठकों में से 21 में उन्होंने हिस्सा लिया था।
मात्र 1800 रुपये में मिला मकान
फरीदाबाद इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के पूर्व प्रधान बीआर भाटिया के अनुसार शहर में 233 वर्ग गज के 5196 मकान बनाने का निर्णय लिया गया। इसके लिए पांच करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया गया, लेकिन चूंकि लोग खुद अपने शहर का निर्माण कर रहे थे, इसलिए 4.64 करोड़ रुपए की लागत आई और बाकी पैसा सरकार को वापस कर दिया गया।
एक मकान की कीमत 1,800 रुपए रखी गई और लोगों से कहा गया कि से 11 रुपए 14 आने की मासिक किस्त के हिसाब से पैसा लौटाएं। शहर को पांच सेक्टर में बाटा गया। इन्हें नेबरहुड (एनएच) कहा गया। एनएच-4 को सरकारी कार्यालय और उनके अधिकारी-कर्मचारियों के आवास के लिए छोड़ दिया गया। शहर से कुछ दूरी पर एक पावर हाउस बनाया गया। लगभग 20 मील की सड़कें बनाई गईं।
इसके अलावा आठ बड़े स्कूल, एक बड़ा अस्पताल, स्वास्थ्य केंद्र, वाटर वर्क्स, ड्रेनेज सिस्टम, एक सिनेमा घर और एक इंडस्ट्रियल सेक्टर बनाया गया। यह सब काम केवल 2.5 साल में पूरा हो गया। देखते ही देखते फरीदाबाद ने औद्योगिक नगरी के रूप में देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी पहचान बना ली।