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Kargil Vijay Diwas: देश की रक्षा खातिर मोहना के जवान विरेंद्र ने भी दिया था बलिदान, प्रेरणा से भर देगी ये कहानी

आज ही के दिन (Kargil Vijay Diwas) लद्दाख के कारगिल में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान को धूल चटाई थी। भारत-पाकिस्तान के इस युद्ध को 25 साल हो चुके हैं। सैकड़ों जवानों ने देश के लिए अपना सर्वोच्ट बलिदान दिया। इनमें से ही एक बल्लभगढ़ के मोहना गांव के रहने वाले विरेंद्र कुमार थे जिन्होंने सिर्फ 21 साल की आयु में देश की रक्षा की खातिर दुश्मनों से लोहा लिया।

By Subhash Dagar Edited By: Monu Kumar Jha Updated: Fri, 26 Jul 2024 04:32 PM (IST)
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गांव मोहना के कारगिल बलिदानी विरेंद्र कुमार की मां लीलावती बेटे के चित्र को लिए हुए। फोटो जागरण

सुभाष डागर, बल्लभगढ़। (Kargil Vijay Diwas 2024) कारगिल युद्ध को हुए 25 वर्ष पूरे हो चुके हैं। इस युद्ध में जिले से मोहना गांव के रहने वाले विरेंद्र कुमार ने भी मात्र 21 वर्ष की आयु में बलिदान दिया था। उनकी वीरता पर लोगों को गर्व है।

उनकी प्रेरणा से कई युवा सेना में भर्ती हुए। इनमें प्रमुख रूप से गांव अटाली के रहने वाले पैरा कमांडों संदीप सिंह अटाली भी शामिल हैं। संदीप सिंह भी भी देश की रक्षा खातिर अपना बलिदान दे दिया था।

मां लीलावती ने नम आंखों से बेटा को किया याद

कारगिल दिवस की पूर्व संध्या पर गांव मोहना के अमर बलिदानी विरेंद्र कुमार को उनकी 96 वर्षीय मां लीलावती ने नम आंखों से याद किया। लीलावती के आठ बेटा-बेटी में सबसे छोटे 21 वर्ष विरेंद्र सिंह थे। विरेंद्र का जन्म पहली जनवरी 1978 को हुआ था।

विज्ञान संकाय से 12वीं कक्षा पास करने के बाद अक्टूबर-1998 को सेना में बतौर सिपाही भर्ती हो गए। सेना की चार जाट रेजीमेंट में शामिल विरेंद्र का छह महीने का प्रशिक्षण बरेली सेंटर में पूरा हुआ था। तभी उन्हें कारगिल युद्ध में जाने का आदेश मिला।

पांच जुलाई की रात पिलर नंबर-दो पहाड़ी पर चढ़ाई की शुरू 

वीर की माता लीलावती व बड़े भाई हरप्रसाद के अनुसार विरेंद्र कुमार को 17 जाट बटालियन के 25 जवानों की टुकड़ी में शामिल करके कारगिल भेज दिया। जवानों की टुकड़ी ने पांच जुलाई की रात पिलर नंबर-दो पहाड़ी पर चढ़ाई शुरू कर दी। पहाड़ की चोटी पर बैठे। पाकिस्तानी सैनिक व घुसपैठियों ने भारतीय जवानों को आता देख गोलियां बरसानी शुरू कर दी।

इस दौरान एक गोली विरेंद्र कुमार के पैर में लगी। गोली लगने के बावजूद उसने हिम्मत नहीं हारी। छह जुलाई को तड़के करीब पौने पांच बजे भारतीय जवानों और पाकिस्तानी सेना के बीच जमकर गोलीबारी हुई। विरेंद्र ने अपनी टुकड़ी के साथ दुश्मन देश की ओर से भेजे गए कई घुसपैठियों को मौत के घाट उतार दिया।

मैंने भरी जवानी में अपने बेटे को खोया-बलिदानी की मां

चोटी फतह करने के बाद जब उनके साथी गोली निकालने का प्रयास कर रहे थे तभी उनके पास एक गोला आकर गिरा, जिसकी चपेट में आने से वीरेंद्र मश्कोह घाट के पास बलिदान हो गए। मां लीलावती कहती हैं कि मैंने भरी जवानी में अपने बेटे को खोया, पर मातृभूमि की रक्षा खातिर बलिदान देने से मेरी छाती गर्व से चौड़ी हो जाती है। वे युवाओं के लिए हमेशा प्रेरणा स्त्रोत बने रहेंगे।

विरेंद्र कुमार की स्मृति में गांव के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, बस अड्डे से मोहना पुल को जाने वाले मार्ग का नाम रखा है। स्कूल में बलिदानी का स्मारक बनवाया है। यहां पर हर वर्ष उनके जन्म दिवस पहली जनवरी को हरियाणा स्टाइल कबड्डी का आयोजन कराया जाता है। सेना मैडल से सम्मानित किया गया है।

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