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चुनावी किस्सा: जब सियासी पिच पर बोल्ड हुआ ये दिग्गज कप्तान, सीट बदली... पार्टी बदली, काम नहीं आया कपिल देव का प्रचार

Lok Sabha Election 2024 इन दिनों पूरे देश में चुनावी रंग चढ़ा है। अतीत के आईने में नजर डालें तो चुनावी किस्सों की कमी भी नहीं है। आज ऐसा ही एक दिलचस्प किस्सा आपके साथ साझा करने जा रहे हैं। जब एक दिग्गज भारतीय क्रिकेट टीम का कप्तान दो बार चुनाव मैदान में उतारा लेकिन उसे वैसी सफलता नहीं मिली जैसी उसने क्रिकेट में हासिल की।

By Susheel Bhatia Edited By: Ajay Kumar Updated: Mon, 25 Mar 2024 12:12 PM (IST)
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लोकसभा चुनाव 2024: सियासी पिच पर जम नहीं पाई थी मंसूर अली खान पटौदी की पारी।
सुशील भाटिया, फरीदाबाद। मात्र 21 वर्ष 77 दिन की उम्र में भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी संभाल कर उस समय सबसे युवा कप्तान बनने का रिकॉर्ड बनाने वाले मंसूर अली खान पटौदी ने अपनी कलात्मक बल्लेबाजी से क्रिकेट प्रेमियों को खासतौर पर तत्कालीन अभिनेत्री शर्मिला टैगोर को अपना मुरीद बनाया था।

पटौदी ने क्रिकेट मैदान की पिच पर बल्लेबाजी के दौरान ही बीच में सियासी पारी भी शुरू की, पर दो बार अलग-अलग चुनावी मैदान में बल्लेबाजी के लिए उतरे पटौदी अपनी पारी को सजा-संवार नहीं सके। यहां तक कि उनकी धर्मपत्नी शर्मिला टैगोर का स्टारडम और कपिल देव जैसे नामचीन क्रिकेटरों का प्रचार करना भी टाइगर पटौदी की चुनावी नैया को पार लगवा कर उन्हें संसद नहीं भेज पाया।

गुड़गांव लोकसभा सीट से लड़ा चुनाव लेकिन...

सैफ अली खान व सोहा अली खान के पिता मंसूर अली खान पटौदी ने पहली बार 1971 में पूर्व मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह के नेतृत्व वाली विशाल हरियाणा पार्टी के टिकट पर गुड़गांव संसदीय सीट से चुनाव लड़ा था। तब फरीदाबाद जिला गुरुग्राम का ही हिस्सा हुआ करता था। इस मैच में उनके प्रतिद्वंद्वी थे कांग्रेस के टिकट पर उतरे प्रत्याशी तैयब हुसैन और निर्दलीय के.नरेंद्र।

भीड़ खूब जुटी मगर मतों में तब्दील न हो सकी

फिल्म अभिनेत्री शर्मिला टैगोर का विवाह टाइगर पटौदी से हुआ था और उस समय की सुपरहिट अभिनेत्रियों में उनकी गिनती हुआ करती थी। वर्ष 1971 में तब शर्मिला टैगोर अपने पति के चुनाव प्रचार के लिए फरीदाबाद-गुरुग्राम में सड़कों पर उतरी थीं।

हरियाणा सरकार के सेवानिवृत्त कर्मचारी 88 वर्षीय रेमल दास के अनुसार उस समय जिला मुख्यालय तत्कालीन गुड़गांव हुआ करता था। हमारा प्रतिदिन आना-जाना होता था, तब एक बार पटौदी की चुनावी सभा में जाने का मौका मिला। वहां शर्मिला टैगोर को नजदीक से जानने का अवसर मिला। तब उन्हें देखने के लिए लोगों की भीड़ तो खूब मंचों के करीब नजर आईं, पर यह वोटों में तब्दील न हो सकी।

तीसरे स्थान से करना पड़ा संतोष

चुनाव में कुल वैध वोट 387206 में से तैयब हुसैन ने सर्वाधिक 199333 मत हासिल करने में कामयाब रहे। दूसरे नंबर पर रहे निर्दलीय के.नरेंद्र, जिन्होंने 131391 वोट लिए। टाइगर पटौदी को कुल वोट मिले 22979, यह कुल पड़े वैध मतों का 5.8 फीसद था। सियासी पारी में सफल न होने पर टाइगर पटौदी वापस क्रिकेट मैदान में लौट गए और चार साल तक और भारतीय टेस्ट टीम में देश का प्रतिनिधित्व किया।

जब दोबारा भोपाल से उतरे चुनावी पिच पर...

इधर, जब पटौदी का क्रिकेट करियर खत्म हो गया तो 1991 में एक बार फिर उन्होंने नए सिरे से सियासी पारी की शुरुआत की। इस बार चुनावी पिच थी मध्य प्रदेश के भोपाल स्थित मैदान की, जो उनकी जन्मभूमि भी थी। इस बार पटौदी कांग्रेस के टिकट पर उतरे थे और सामने प्रतिद्वंद्वी थे भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी सुशील चंद्र वर्मा।

यहां भी मिली करारी शिकस्त

उस दौरान राम जन्मभूमि आंदोलन अपने चरम पर था। पटौदी के चुनाव प्रचार तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी, पूर्व कप्तान कपिल देव पहुंचे थे। यहां भी मैच जीता यानी चुनाव में विजय हासिल की भाजपा के सुशील चंद्र वर्मा ने, जिन्होंने 53.61 फीसदी मतों के साथ सबसे अधिक 3,08,946 मतों पर कब्जा किया। पटौदी दूसरे नंबर पर थे, उन्हें 2,06,738 मत मिले थे। इस तरह से दूसरे सियासी मैच में भी पटौदी के सिर जीत का सेहरा न बंध सका।

नवाब पटौदी के बारे में

क्रिकेट जगत में टाइगर पटौदी के नाम से भी पहचाने जाने वाले मंसूर अली खान ने एक आंख की रोशनी के बावजूद टेस्ट क्रिकेट में पांच शतक लगाए थे। कप्तान के रूप में पहली पूरी सीरीज 1963-64 में दिल्ली में इंग्लैंड के खिलाफ नाबाद 203 रन की पारी भी शामिल है।

पटौदी ने अपने 46 टेस्टों में से 40 में भारत का नेतृत्व किया था और नौ में भारत को जीत दिलाई थी, जबकि 19 में हार मिली। उस समय पटौदी भारत के सबसे सफल कप्तानों में शामिल थे और युवा कप्तान के रूप में भी उनका रिकॉर्ड टूटा 2004 में। वर्ष 1975 तक उनका क्रिकेट करियर चला और अपने जीवन में 46 टेस्ट मैचों में 2793 रन बनाए। इनमें छह शतक और 16 अर्धशतक शामिल हैं।

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