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Surajkund Fair 2024: मास्टर पीस बनाने में महारत, संसद में हरियाणा की शोभा बढ़ा रहीं राजेंद्र प्रसाद की कलाकृति

चंदन व कदम की लकड़ी पर अद्भुत नक्काशी कर मास्टर पीस तैयार करना राजेंद्र प्रसाद बेनीवाल की विशेषता है। हाथी दांत की अंडर कट कार्विंग इनकी पसंदीदा कला है। बहादुरगढ़ (हरियाणा) के रहने वाले राजेंद्र की वॉल प्लेट नए संसद भवन में हरियाणा की शिल्प कला का प्रतिनिधित्व कर रही है। उसमें उन्होंने अंडर कट कार्विंग से पत्तियां बनाई हैं।

By vaibhav tiwari Edited By: Geetarjun Updated: Sun, 11 Feb 2024 06:40 PM (IST)
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सूरजकुंड मेला में अंडर कट कार्विंग कला से छह हाथियों का मास्टर पीस दिखाते राजेंद्र प्रसाद।

वैभव तिवारी, फरीदाबाद। चंदन व कदम की लकड़ी पर अद्भुत नक्काशी कर मास्टर पीस तैयार करना राजेंद्र प्रसाद बेनीवाल की विशेषता है। हाथी दांत की अंडर कट कार्विंग इनकी पसंदीदा कला है। बहादुरगढ़ (हरियाणा) के रहने वाले राजेंद्र की वॉल प्लेट नए संसद भवन में हरियाणा की शिल्प कला का प्रतिनिधित्व कर रही है। उसमें उन्होंने अंडर कट कार्विंग से पत्तियां बनाई हैं।

दरअसल, नए संसद भवन में सभी राज्यों की शिल्प कला को एक साथ दर्शाया गया है। उसी में राजेंद्र प्रसाद की कला को भी हरियाणा से स्थान मिला है। उनका दावा है कि हरियाणा से शिल्पकला में उन्हीं की कलाकृति का चयन हुआ है।

भारत मंडपम में उत्पाद किए गए भेंट

इसके साथ ही जुलाई 2023 में भारत मंडपम के उद्घाटन समारोह में इन्हीं के बनाए उत्पाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह व लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला सहित वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को भेंट किए गए थे। भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ की तरफ से यह कलाकृतियां राजेंद्र प्रसाद से खरीदी गई थीं।

उन्होंने बताया कि ट्यूनीशिया सहित अफ्रीका के अन्य देशों में भारत के प्रतिनिधि बनकर वहां के शिल्पकारों को भी प्रशिक्षण दिया है। इसमें विशेष रूप से पक्षी, फूल, पत्ती, फोटो फ्रेम, शो पीस व पशुओं की आकृतियां उकेरने की कला को छात्रों व शिक्षकों ने सीखा है।

लाखों में बिकते हैं मास्टर पीस, बनाने में लगते हैं महीनों

राजेंद्र प्रसाद बताते हैं कि मुख्य रूप से छोटी लकड़ी पर कलाकृति उकेरने का महीन काम करते हैं। एक छोटा सा मास्टर पीस बनाने में पांच महीने तक का समय लग जाता है। कदम की लकड़ी पर अंडर कट कार्विंग से लकड़ी के अंदर छह हाथियों का एक मास्टर पीस उन्होंने बनाया है। उनका कहना है कि इसकी कीमत डेढ़ लाख रुपये है।

इसके साथ ही घोड़े, हाथी, कबूतर सहित अन्य प्रकार का उत्पाद उन्होंने बनाया है। देवी-देवताओं के छोटी मूर्तियां भी उनके द्वारा बनाई जाती है। उनका कहना है कि कदम व शीशम की लकड़ी से जुड़े उत्पाद थोड़े सस्ते होते हैं, जबकि चंदन की लकड़ी से जुड़े उत्पाद महंगे होते हैं। होम इंटीरियर व पूजा में इसको लोग पसंद करते हैं।

शिल्प गुरु अवार्ड से सम्मानित, परिवार का विश्व में भी डंका

राजेंद्र प्रसाद के घर में शिल्प कला से जुड़े हुए चार पुरस्कार मिले हैं। इनके बड़े भाई महावीर प्रसाद बेनीवाल को 1979 में राष्ट्रीय पुरस्कार, राजेंद्र प्रसाद को 1984 में, पिता जय नारायण को 1996 में, भतीजे चंद्रकांत को 2004 शिल्प कला का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ है। चंदन में शिल्प कला के लिए 2015 में राजेंद्र प्रसाद को शिल्प गुरु पुरस्कार मिला है। वहीं, भतीजे चंद्रकांत को यूनेस्को की तरफ से भी सम्मानित किया जा चुका है। परिवार पीढ़ियों से शिल्पकला से जुड़ा हुआ है।