2001 के भूकंप में सबकुछ हो गया बर्बाद... 26 सदस्यों के परिवार से मिली ताकत, अब साड़ियों ने दिलाई वनकर देव को अंतरराष्ट्रीय पहचान
सूरजकुंड के अलावा वस्त्र मंत्रालय के सौजन्य से दिल्ली मुंबई कोलकाता चैन्न्ई के अलावा दुबई अफ्रीका थाईलैंड में भी जाने का मौका मिलता है। वहां भी भुजौड़ी साड़ी और सूट की मांग रहती है। उनकी यूनिट से 100 से अधिक महिला पुरुष कारीगरों को जुड़ कर रोजगार मिला है। बड़ी बात यह रही कि 26 सदस्यों का बड़ा परिवार है।
अनिल बेताब, फरीदाबाद। गुजरात में वर्ष 2001 में जब भूकंप आया था तो उस समय सब कुछ नष्ट हो गया था।हैंडलूम यूनिट का सारा काम ठप हो गया था। मकान भी नहीं रहा तो दो वर्षों तक परेशानी का सामना करना पड़ा था। झोपड़ी में रहना पडा था।
ऐसे भी हालात आए कि सोचा कि कहीं और जाकर नौकरी कर ली जाए, मगर भाइयों के साथ और पत्नी से ताकत मिली कि यहीं रह कर हाला से जूझते हुए आगे बढ़ना है। उस समय गुजरात सरकार ने काफी साथ दिया।
ऐसी है अवार्डी बुनकर वनकर देव के जीवन की संघर्ष की कहानी
बड़ी बात यह रही कि 26 सदस्यों का बड़ा परिवार है। कोई टूटा, हारा नहीं और आज बेहतर स्थिति में हूं। गांव भुजौड़ी, भुज, कच्छ गुजरात के संत कबीर अवार्डी बुनकर वनकर देव के जीवन की संघर्ष की कहानी कुछ ऐसी ही है।37वें सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में संत कबीर अवार्डी बुनकर वनकर देव जी अपनी नेशनल अवार्डी पत्नी बाया बहन के साथ आए हुए हैं। उनका स्टाल नंबर 1117 हैं। इनके स्टाल पर प्राकृतिक रंगों से तैयार काटन की साड़ी, सूट, शाल तथा दुपट्टे हैं।
इनके परिवार में छाेटे-बड़े सदस्य हैं और आठ शिल्पगुरु, संत कबीर अवार्डी तथा नेशनल अवार्डी हैं। इनके उत्पादों की खास बात यह है कि इन्हें बनाने के लिए सीधा किसानों से खरीदारी काटन की खरीदारी होती है।
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