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2001 के भूकंप में सबकुछ हो गया बर्बाद... 26 सदस्यों के परिवार से मिली ताकत, अब साड़ियों ने दिलाई वनकर देव को अंतरराष्ट्रीय पहचान

सूरजकुंड के अलावा वस्त्र मंत्रालय के सौजन्य से दिल्ली मुंबई कोलकाता चैन्न्ई के अलावा दुबई अफ्रीका थाईलैंड में भी जाने का मौका मिलता है। वहां भी भुजौड़ी साड़ी और सूट की मांग रहती है। उनकी यूनिट से 100 से अधिक महिला पुरुष कारीगरों को जुड़ कर रोजगार मिला है। बड़ी बात यह रही कि 26 सदस्यों का बड़ा परिवार है।

By Susheel Bhatia Edited By: Abhishek Tiwari Updated: Sun, 18 Feb 2024 09:51 AM (IST)
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अवार्डी वनकर देव तथा उनकी पत्नी बाया बहन के स्टाल नंबर 1117 पर साड़ी की खरीदारी करती महिलाएं
अनिल बेताब, फरीदाबाद। गुजरात में वर्ष 2001 में जब भूकंप आया था तो उस समय सब कुछ नष्ट हो गया था।हैंडलूम यूनिट का सारा काम ठप हो गया था। मकान भी नहीं रहा तो दो वर्षों तक परेशानी का सामना करना पड़ा था। झोपड़ी में रहना पडा था।

ऐसे भी हालात आए कि सोचा कि कहीं और जाकर नौकरी कर ली जाए, मगर भाइयों के साथ और पत्नी से ताकत मिली कि यहीं रह कर हाला से जूझते हुए आगे बढ़ना है। उस समय गुजरात सरकार ने काफी साथ दिया।

ऐसी है अवार्डी बुनकर वनकर देव के जीवन की संघर्ष की कहानी

बड़ी बात यह रही कि 26 सदस्यों का बड़ा परिवार है। कोई टूटा, हारा नहीं और आज बेहतर स्थिति में हूं। गांव भुजौड़ी, भुज, कच्छ गुजरात के संत कबीर अवार्डी बुनकर वनकर देव के जीवन की संघर्ष की कहानी कुछ ऐसी ही है।

37वें सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में संत कबीर अवार्डी बुनकर वनकर देव जी अपनी नेशनल अवार्डी पत्नी बाया बहन के साथ आए हुए हैं। उनका स्टाल नंबर 1117 हैं। इनके स्टाल पर प्राकृतिक रंगों से तैयार काटन की साड़ी, सूट, शाल तथा दुपट्टे हैं।

इनके परिवार में छाेटे-बड़े सदस्य हैं और आठ शिल्पगुरु, संत कबीर अवार्डी तथा नेशनल अवार्डी हैं। इनके उत्पादों की खास बात यह है कि इन्हें बनाने के लिए सीधा किसानों से खरीदारी काटन की खरीदारी होती है।

मेले में आकर बढ़ा कारोबार, औरों को भी मिला रोजगार

संत कबीर अवार्डी बुनकर वनकर देव जी कहते हैं कि वह लगभग 30 वर्षों से मेले में आ रहे हैं। पहले मेले में 50-60 रुपये का काराेबार हाेता था। अब इन दिनों मेले में छह लाख तक का कारोबार हो जाता है।

साल भर का कुल मिला कर 60 लाख रुपये का मेरे अपनी यूनिट का कारोबार है। कई वर्ष पहले 10 लाख रुपये का ऋण लिया था, जो अब चुकाया जा चुका है। सूरजकुंड के अलावा वस्त्र मंत्रालय के सौजन्य से दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चैन्न्ई के अलावा दुबई, अफ्रीका थाईलैंड में भी जाने का मौका मिलता है।

वहां भी भुजौड़ी साड़ी और सूट की मांग रहती है। उनकी यूनिट से 100 से अधिक महिला पुरुष कारीगरों को जुड़ कर रोजगार मिला है। उनका कहना है कि परिवार में एकता है और 26 सदस्यों के परिवार की रसोई एक ही है। एकजुटता होने के कारण ही उनकी तरक्की हुई है।

परिवार की उपलब्धियों पर एक नजर

वनकर देव जी संत कबीर अवार्डी हैं। इनके पिता प्रेम जी भाई शिल्पगुरु हैं। पत्नी बाया, भाई दाम जी, हीर, चमन, बहन कांकू तथा बेटा हंसराज नेशनल अवार्डी हैं।

मोदी जी को भेंट किया भुजौड़ी गमछा

वस्त्र मंत्रालय की ओर से हथकरघा को बढ़ावा देने के लिए अक्टूबर 2017 में गुजरात के गांधी नगर मैदान में टैक्सटाइल मेला आयोजित किया गया था। कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे थे। वहां वनकर देव के भाई चमन भाई ने पीएम को भुजौड़ी गमछा भेंट किया था।

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