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Surajkund Mela: बोल रहे पत्थर, कृतियों से दे रहे बुजुर्गों की सेवा की सीख; पेबल आर्ट को कोने-कोने में पहुंचा रहे

37वें सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में महाराष्ट्र के परभनी जिला से आए शिल्पकार भगवान पंवार और उनके पुत्र प्रह्लाद पंवार ऐसे ही यह शिल्पकार हैं जो पंचम सदी की प्रचलित पेबल आर्ट (कंकड़ कला) को अपने हुनर के माध्यम से देश के कोने-कोने में पहुंचाकर अपनी पहचान बनाए हुए हैं। प्राचीन काल में पत्थरों को तराशे बिना ही विभिन्न प्रकार की मूर्तियां व कृतियां बनाई जाती थी।

By Anil Betab Edited By: Sonu SumanPublished: Thu, 15 Feb 2024 05:49 PM (IST)Updated: Thu, 15 Feb 2024 05:49 PM (IST)
Surajkund Mela: बोल रहे पत्थर, कृतियों से दे रहे बुजुर्गों की सेवा की सीख।

अनिल बेताब, फरीदाबाद। कई बार पत्थर भी बाेलते हैं और हमें बड़ी ही खामोशी से बहुत कुछ समझाते हैं। अगर उन्हें कोई आकार दिया जाए तो उसे देखते हुए समझ आ जाएगा कि शिल्पकार अपनी इस कृति से आखिर क्या कहना चाहता है।

37वें सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में महाराष्ट्र के परभनी जिला से आए शिल्पकार भगवान पंवार और उनके पुत्र प्रह्लाद पंवार ऐसे ही यह शिल्पकार हैं, जो पंचम सदी की प्रचलित पेबल आर्ट (कंकड़ कला) को अपने हुनर के माध्यम से देश के कोने-कोने में पहुंचाकर अपनी पहचान बनाए हुए हैं।

प्राचीन काल में पत्थरों को तराशे बिना ही विभिन्न प्रकार की मूर्तियां व कृतियां बनाई जाती थी। यह दोनों पिता-पुत्र इस कला को जीवंत बनाने में लगे हुए हैं।

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नदियों और समुद्र के आसपास जाकर एकत्र करते हैं पत्थर

दोनों पिता-पुत्र गोदावरी नदी, गिरगाव, चौपाटी महाराष्ट्र तथा केरल के कोलमबीच से पत्थरों को एकत्र करते हैं। इसके बाद इन पत्थरों को आकार देने के लिए थीम तय करते हैं।

उदाहरण के तौर पर कदम के पेड़ के पास कृष्ण जी बांसुरी बजा रहे हैं। उनके आसपास गाय आर ग्वालिन भी हैं। ऐसा खाका खींचने के बाद वह एक-एक पत्थर से कृति को आकार देते हैं। कार्ड बाेर्ड पर गोंद की मदद से पत्थर चिपका दिए जाते हैं। इन्होंने पत्थर से ऐसी कृति भी बनाई है, जिसमें एक बच्चा बुजुर्ग की ओर सिर झुकाता नजर आ रहा है। देवी-देवताओं की आकृतियां बनाने में भी दोनों निपुण हैं। मेले में देश-विदेश से आए पर्यटकों का ये शिल्पकार अपनी अनोखी कलाकृतियों से ध्यान आकृष्ट कर रहे हैं।

महिलाएं भी बनीं आत्मनिर्भर

बीएससी कर चुके शिल्पकार प्रहलाद पंवार ने बताया कि पहले वह इस कला को शौकिया किया करते थे। बाद में यही कला रोजगार का जरिया बन गई। अब उनके साथ रुक्मणी पंवार और धर्मपत्नी मोहिनी इसी शिल्पकला से जुड़ गई हैं।

अब वह अपने घर के आसपास की एक दर्जन से अधिक महिलाओं को इस कला से जोड़ कर आत्मनिर्भर बना चुके हैं। इससे महिलाओं का जीवन स्तर सुधर रहा है।

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