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Faridabad: शवदाह गृह के लिए आई 210 टन लकड़ी को चट कर रही दीमक, कोरोना काल में दाह संस्कार के लिए सरकार ने भेजी

कोरोना काल में जब बड़ी संख्या में अकाल मौत हो रही थीं तब शहर के शवदाह गृहों में पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार करने के लिए जगह तो कम पड़ ही रही थी लकड़ियों की भी कमी पड़नी शुरू हो गई थी।

By Susheel BhatiaEdited By: GeetarjunUpdated: Mon, 19 Dec 2022 06:10 PM (IST)
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शवदाह गृह के लिए आई 210 टन लकड़ी को चट कर रही दीमक
फरीदाबाद, जागरण संवाददाता। कोरोना काल में जब बड़ी संख्या में अकाल मौत हो रही थीं, तब शहर के शवदाह गृहों में पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार करने के लिए जगह तो कम पड़ ही रही थी, लकड़ियों की भी कमी पड़नी शुरू हो गई थी। कोरोना का प्रकोप होने के चलते काम-काज प्रभावित होना व वाहनों का आवागमन कम होना इसकी बड़ी वजह थी। ऐसे में प्रदेश सरकार ने पहल करते हुए कुरुक्षेत्र से 210 टन लकड़ी नगर निगम को भिजवाई थी।

यह लकड़ी शहर के विभिन्न शवदाह गृहों को भिजवाई जानी थी, पर निगम अधिकारियों की उदासीनता के चलते ऐसा हो न पाया। इधर जब कोरोना का प्रकोप कम हो गया, तो अधिकारी पूरी तरह से चिंतामुक्त हो गए। अब हाल यह है कि भारी मात्रा में यह लकड़ी नगर निगम सभागार के प्रांगण में खुले में पड़ी सड़ रही है।

प्रदेश सरकार की ओर से 13 मई 2021 से 5 जुलाई 2021 तक 210 टन लकड़ी नगर निगम को भेजी गई थी और इस पर ट्रांसपोर्टेशन के रूप में साढ़े सात लाख रुपये भी खर्च हुए थे, पर इसका रत्ती भर भी प्रयोग नहीं हुआ अर्थात जैसे लकड़ी निगम सभागार में डंप हुई, तब से लेकर जस की तस पड़ी हुई है। इस दौरान विभिन्न मौकों पर हुई वर्षा का भी इस पर असर पड़ा होगा और इतने समय में अब लकड़ी को दीमक चट कर रही है।

लापरवाही या उदासीनता किस तरह की है, यह इससे भी पता चलता है कि जहां लकड़ी पड़ी है, उसके ठीक साथ नगर निगम मुख्यालय है। इस दौरान छोटे-बड़े सभी अधिकारियों का निगम सभागार में आवागमन प्राय: लगा ही रहता है, पर डेढ़ साल के अंतराल में किसी ने भी ध्यान देना उचित नहीं समझा कि यह यहां क्यों पड़ी है।

शवदाह गृह की लकड़ी है 350 रुपये क्विंटल

शवदाह गृह की संचालन समिति की ओर से शवों को जलाने के लिए लकड़ी की जो खरीद की जाती है, वो प्राय: 300 रुपये प्रति क्विंटल होती है और इस पर 50 रुपये किराया लगता है यानी 350 रुपये। इस तरह से नगर निगम प्रांगण में जो लकड़ी पड़ी है, उसकी कीमत सात लाख 35 हजार रुपये तक है।

शक्ति सेवा दल करती लावारिस शवों का संस्कार

पूरे जिले में अगर कहीं भी लावारिस शव मिलते हैं, जिनका निर्धारित 72 घंटों के अंदर पहचान न होने पर अंतिम संस्कार करना होता है, उसकी जिम्मेदारी शक्ति सेवा दल संस्था की होती है, जो न्यू जनता कालोनी के सामने स्थित शवदाह गृह का संचालन करती है। यह लकड़ी यहां भी दी जा सकती है अथवा शहर के अन्य शवदाह गृहों को बराबर मात्रा में वितरित भी की जा सकती है।

कोरोना काल में लकड़ी की कमी हो गई थी और तब भी भाव प्रति क्विंटल 300 रुपये था, जबकि हमें तब यह 450 रुपये क्विंटल की लागत से मिली। अगर तभी मिल जाती तो काफी मदद मिलती। बाकी नगर निगम ने हमें ही लावारिस शवों के संस्कार की जिम्मेदारी दे रखी है। लकड़ी मिलती है तो यह उन जरूरतमंदों के काम आ सकती है, जो बेहद गरीब होते हैं और उनके पास किसी अपने मृत स्वजन के संस्कार के लिए पैसे भी नहीं होते।

-मोहन लाल अरोड़ा, प्रधान शक्ति सेवा दल

लकड़ियां आने के कुछ समय बाद कोरोना का संक्रमण कम हो गया था और तब कहीं से मांग नहीं आई। इसलिए लकड़ियां पड़ी रही। लकड़ियों के बारे में निगमायुक्त ही कोई फैसला ले सकते हैं।

-राजेंद्र दहिया, वरिष्ठ निरीक्षक, नगर निगम

अगर ऐसा हो रहा है तो यह हैरानी की बात है। मैं इस बाबत नगर निगम आयुक्त से बात करूंगी कि इन्हें उन संस्थाओं को भिजवा दिया जाए, जो शवदाह गृहों का संचालन करती हैं।

-सीमा त्रिखा, विधायक बड़खल क्षेत्र

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