राजेश भादू, फतेहाबाद। फसली अवशेष का किसान जिस तरह निस्तारण कर रहे हैं, वह शहर व राज्य ही नहीं अन्य प्रांतों के लोगों के लिए भी मुसीबत का सबब बनता है। खासतौर पर खेतों में जलने वाली पराली का प्रदूषण हवा के साथ कई राज्यों में पहुंचकर लोगों को अपनी गिरफ्त में ले लेता है।
यही वजह है कि इस मामले में पंजाब व हरियाणा ही नहीं, दिल्ली की सरकार और सुप्रीम कोर्ट तक चिंतित है। कमोबेश इसी चिंता के साथ हरियाणा में फतेहाबाद जिले के गांव बड़ोपल के किसान राजीव पराली के अनुकरणीय उपयोग से बंजर भूमि की क्षारीयता खत्म कर उस पर फसल तैयार कर रहे हैं। अन्य फसलों के भी अवशेष से जमीन को उपजाऊ बनाने वाले राजीव दूसरे किसानों के लिए नजीर बन गए हैं।
किसान राजीव भादू ने सेम ग्रस्त जमीन को उपजाऊ बना दिया। पिछले छह वर्षों में फसलों के अवशेष व जिप्सम सहित अन्य पदार्थ मिलाकर लवण की मात्रा को कम किया। इसका फायदा यह हुआ कि उनके खेत में फसल लगती भी है और उत्पादन भी अच्छा होता है।बता दें कि प्रदेशभर में नौ लाख एकड़ जमीन सेमग्रस्त है। सबसे ज्यादा झज्जर, रोहतक, भिवानी, हिसार, फतेहाबाद और सिरसा में सबसे ज्यादा जमीन इससे प्रभावित है। यहां जलस्तर एक दो फीट में होने के साथ पानी में लवण की मात्रा अधिक होने से फसल नहीं हो पाती है।
17 एकड़ बंजर जमीन को यूं बनाया उपजाऊ
किसान राजीव बताते हैं कि खेत में नरमे की बनछटियों से लेकर सरसों की तूड़ी, धान के अवशेष, गेहूं के फाने, ज्वार व मूंग को भी हरी खाद के रूप में खेत में मिलाया।इसके साथ ही जिप्सम को भी लवण की मात्रा को कम करने के लिए प्रति एकड 50 किलोग्राम डाला गया। करीब 17 एकड़ जमीन में यह प्रयोग पिछले छह वर्ष से जारी है।
फोटो कैप्शन: ट्रैक्टर से रोटावेटर चलाकर अवशेष मिलाते किसान राजीव
अब तो सरकार धान के अवशेष मिलाने पर रुपये भी अलग से देती है। खरीफ सीजन में चार एकड़ खेत में औसत परमल धान का उत्पादन 25 क्विंटल के करीब हुआ। रबी सीजन में गेहूं का उत्पादन भी 22 क्विंटल प्रति एकड़ के करीब रहा जो धान बेल्ट के उपजाऊ खेतों के मुकाबले महज प्रति एकड़ पांच क्विंटल ही कम है। 17 एकड़ जमीन उपजाऊ हो गई।
पशुओं के लिए लाए फसल अवशेष तो जमीन में उग आईं सब्जियां
राजीव बताते हैं कि छह साल पहले ढाणी के पास नरमे की बनछंटिया व पशुओं के लिए धान की पराली डाली। जब छह महीने बाद जगह खाली हुई तो वहां कुछ सब्जियों की बेल लगा दी जो अच्छी हुई। फिर पूरे खेत में अवशेष मिलाने शुरू किए।
फोटो कैप्शन: जिला मृदा एवं जल परीक्षण केंद्र के इंचार्ज डॉ. राजेश सैन
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सर्दियों में धान के अवशेष लेकर आए और करीब चार एकड़ में बिछाकर छोड़ दिया। साथ ही ढैंचा, गेहूं व नरमे के अवशेष, ज्वार के अवशेष भी मिलाए। तीन बार नहरी पानी मिलाया। गेहूं की फसल लहलहाने लगी। चार एकड़ में करीब 70 क्विंटल तक उत्पादन हुआ।
सरकार दे रही सहायता, 20 से अधिक किसान जुड़े
फसल अवशेष प्रबंधन करने पर प्रदेश सरकार प्रति एकड़ किसान को एक हजार रुपये की सहायता देती है। पिछले तीन सालों में 30 हजार रुपये की सरकार ने सहायता दी है।
फोटो कैप्शन: खेत में मिलाए हुए फसलों के अवशेष दिखाते किसान राजीव।
वहीं किसान के अवशेष मिलाने से सेम प्रभावित जमीन में फसल होने शुरू होने के बाद उनसे प्रभावित होकर 20 से अधिक किसान पिछले दो सालों में फसलों के अवशेष मिलाना शुरू कर दिया है।राजीव का कहना है कि इस तरह के नवाचार को आगे बढ़ाते हुए अपने खेत में अब विशेष तौर पर ऐसे पौधे लगा रहा है जो जमीन के उर्वरा शक्ति में सहायक हो।
अब तक 57 टन से अधिक जमीन में मिलाया अवशेष
अब तक जमीन में 57 टन से अधिक अवशेष जमीन में मिलाया है। एक टन अवशेष जलाने कृषि विभाग के अनुसार कई तरह के प्रदूषक निकलते हैं जिसमें मुख्यत: 1460 किलोग्राम कार्बन डाइआक्साइड, 60 किलोग्राम कार्बन मोनोआक्साइड, 2 किलोग्राम सल्फर आक्साइड, 3 किलोग्राम सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर, 199 किलोग्राम फ्लाई ऐश निकलती है। जिससे सांस लेना भी मुश्किल हो जाता।
जीवांश यानी कार्बनिक पदार्थ बढ़ाने में सहायक है फसल अवशेष
कार्बनिक पदार्थ यानी जीवांश एक तरह के सूक्ष्म तत्व की तरह बैक्टीरिया होते है जो जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं। जिला मृदा एवं जल परीक्षण केंद्र के इंचार्ज डॉ. राजेश सैन बताते हैं कि ये जीवांश ही जमीन से पौष्टिक तत्व लेकर पौधे को देते हैं।
फोटो कैप्शन: खेत के पास में ही सेमग्रस्त जमीनजीवांश जमीन में सिर्फ अवशेष मिलाने से बढ़ते हैं। फसल अवशेष जमीन में मिलाने से तीन से चार साल में फसल उत्पादन अधिक हो जाता है। जीवांश की मात्रा 0.5 से 0. 75 प्रतिशत होनी चाहिए। लेकिन सेम ग्रस्त इलाके में या अवशेष जलाने से जीवांश की मात्रा निर्धारित से कम है। अवशेष जलाने से जमीन में इसकी मात्रा 0.3 तक हो गई। जीवांश से जमीन की पानी सोखने की क्षमता भी बढ़ती है।
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