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गुरु द्रोण की धरती पर यह गांव है वीर जवानों का..

कौरव-पांडव को युद्ध कला सिखाने वाले गुरु दोणचार्य की धरती गुरुग्राम से महज 15 किलोमीटर पर दिल्ली- सोहना-अलवर हाईवे पर बसा गांव भोंडसी कई इतिहास समेटे हुए है। यहां की महिलाएं खुद को वीर सपूतों की मां कहलाना पसंद करती हैं। जब भी उनका बेटा देश के लिए शहीद होता है तो उनके मुंह से यही निकलता है मेरे लाल ने दूध का कर्ज उतार दिया है। शायद ही ऐसी कोख हो जिससे जन्मा सेना व अद्र्धसैनिक बलों में नहीं गया हो।यहां के वीर जवानों ने प्रथम विश्व युद्ध से लेकर कारगिल युद्ध तक देश की आन-बान- शान को बनाए रखा।

By JagranEdited By: Updated: Mon, 13 Aug 2018 06:30 PM (IST)
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गुरु द्रोण की धरती पर यह गांव है वीर जवानों का..

सत्येंद्र ¨सह, भोंडसी (गुरुग्राम)

कौरव-पांडव को युद्ध कला सिखाने वाले गुरु द्रोणाचार्य की धरती गुरुग्राम से महज 15 किलोमीटर पर दिल्ली- सोहना-अलवर हाईवे पर बसा गांव भोंडसी कई इतिहास समेटे हुए है। यहां की महिलाएं खुद को वीर सपूतों की मां कहलाना पसंद करती हैं। जब भी उनका बेटा देश के लिए शहीद होता है तो उनके मुंह से यही निकलता है, मेरे लाल ने दूध का कर्ज उतार दिया है। शायद ही ऐसी कोख हो जिससे जन्मा सेना व अर्धसैनिक बलों में नहीं गया हो। यहां के वीर जवानों ने प्रथम विश्व युद्ध से लेकर कारगिल युद्ध तक देश की आन-बान- शान को बनाए रखा। सीने पर गोली खाकर हंसते-हंसते शहीद हो गए पर मां भारती की शान पर आंच नहीं आने दी। इस गांव से सटे गांव सहजावास व दमदमा के वीरों ने देश के लिए प्राणों का सर्वोच्च बलिदान देकर अमर शहीदों की अमर कथा में अपना नाम दर्ज कराया है। आज भी गांव के 540 अधिक जवान सेना व अर्धसैनिक बलों में ड्यूटी देते हुए देश की सुरक्षा कर रहे हैं। कई सेना में उच्च पदों पर भी हैं।

पहले व दूसरे विश्व युद्ध में दिखाई वीरता

गांव भोंडसी का नाम आते ही लोगों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। शूरवीरों के इस गांव के जवानों ने पहले व दूसरे विश्व युद्ध में भी अपनी वीरता परिचय दिया था। पहले युद्ध में गांव के 145 वीरों ने अपना अदम्य साहस दिखाया था। दूसरे विश्व युद्ध में यह संख्या 317 हो गई। बताते हैं कि उस समय हर घर से दो जवान लड़ने के लिए गए थे।

स्वतंत्रता संग्राम में भी सीना तान लड़े

अंग्रेजों की दासता से देश को मुक्त कराने व देश वासियों को खुली हवा में सांस लेने का मौका देने में भी गांव के लोगों का काफी योगदान रहा था। दो सौ से अधिक जवान आजाद ¨हद फौज में शामिल होकर गोरों के खिलाफ लड़े थे।

वीरों के गांव की गौरवगाथा

वर्ष 1962: में चीन के साथ हुए युद्ध में गांव के 385 वीरों ने भाग लिया, सूबेदार रोहताश ¨सह शहीद हुए थे

वर्ष 1971: में पाकिस्तान से हुई लड़ाई में 711 वीर जवानों ने वीरता दिखाई हवलदार मामराज व सूबेदार सत्यप्रकाश दुश्मन सेना के दांत खट्टे करते हुए शहीद हो गए थे

वर्ष 1975 : हवलदार रामेश्वर शहीद हुए।

वर्ष 2001: पाकिस्तान से अघोषित युद्ध में सूबेदार कैलाश ¨सह छोकर व सिपाही खेम ¨सह सीने में गोली खाकर देश के लिए सर्वोच्च बलिदान कर गांव की गौरव गाथा लंबी कर गए।

वर्ष 2002 : भोंडसी में जन्मे सूबेदार कंवरपाल ¨सह सूडान गई शांति सेना में शामिल थे वे वहां पर शहीद हुए थे। खास बातें

इस गांव के कई लोग सिविल सर्विस में भी उच्च पदों पर हैं। 1971 में पाकिस्तान से हुई लड़ाई में काबिले तारीफ रण कौशल दिखाने वाले पूर्व सेना अध्यक्ष और अब विदेश राज्यमंत्री जनरल वीके ¨सह की सास का मायका भोंडसी गांव ही है। वर्ष 2004 एथेंस ओलंपिक में निशानेबाजी की डबल ट्रैप स्पर्धा में रजत पदक विजेता मौजूदा केंद्रीय राज्यमंत्री (युवा एवं खेल विभाग) राज्यवर्धन ¨सह राठौड़ का ननिहाल भी भोंडसी गांव में है।