Gurugram News: पथरीली राहों पर खिले प्रयासों के फूल, विदेशी मेहमानों से गुलजार हो रही हमारी धरा
प्राकृतिक दुनिया से लगाव वही उसका घरौंदा होता है और पक्षियों की अठखेलियों...उनके सैर सपाटे पर उनके दोस्त जैसी कभी स्वजन जैसी नजर रखता है। यहां तक की इन दिनों विदेश में बर्फीले मौसम की वजह से विदेशी परिंदों को भी अपनी प्राकृतिक धरा खूब सुहा रही है।
By Priyanka Dubey MehtaEdited By: Prateek KumarUpdated: Fri, 25 Nov 2022 04:34 PM (IST)
एनसीआर की खूबसूरती यहां के आधुनिक मालों, ऐतिहासिक बाजारों और धरोहरों से तो है ही लेकिन इसकी नैसर्गिक खूबसूरती प्रकृति के चटख धानी आंचल, राजधानी की सड़कों के किनारों लहलहाते छायादार पेड़ों और अरावली के आसपास की प्राकृतिक छटा से मिलती है, उसका कोई जवाब नहीं है। इस खूबसूरती में चारचांद तब लग जाते हैं जब यहां स्थानीय पक्षियों के साथ-साथ मेहमान परिंदों का आगमन होता है। भीनी-भीनी ठंडक में गुनगुनी धूप में एनसीआर के हाटस्पाट और बायोडाइवर्सिटी क्षेत्र एक बार फिर से विदेशी मेहमान परिंदों के कलरव से जीवंत हो उठे हैं लेकिन एक वक्त ऐसा था जब पशु-पक्षी अपने आशियाने छोड़ जाने को मजबूर हो गए थे...: कहानी आज...और बीते कल की...
कैमरों में कैद हो रहे विदेशी मेहमान
यदि आपकी कभी किसी बर्ड वाचर से मुलाकात हुई होगी तो आपने देखा होगा वो बिलकुल पक्षियों की तरह ही जीने लगता है। वो उनके समय...काल...दिन के हर प्रहर से परिचित होता है। उनका खाना, सोना, खुश होना, दुखी होना, मौसम के संदेश...सब उस तक पहुंचने लगते हैं। प्राकृतिक दुनिया से लगाव वही उसका घरौंदा होता है और पक्षियों की अठखेलियों...उनके सैर सपाटे पर उनके दोस्त जैसी कभी स्वजन जैसी नजर रखता है। यहां तक की इन दिनों विदेश में बर्फीले मौसम की वजह से विदेशी परिंदों को भी अपनी प्राकृतिक धरा खूब सुहा रही है। तभी जो पक्षी कई वर्षों से इधर का रुख नहीं कर रहे थे उन्होंने भी यहां की माटी पर लैंड किया है। बर्ड वाचर कवि नंदा ने गुरुग्राम के चंदू बुधेड़ा में व्हाइट विंग्ड टर्न और इंडियन स्किमर(जुलाई 2022 में), बार टेल्ड गाडविट (सितंबर 2022 में), स्मोकी बार्बलर (सूरजपुर पक्षी विहार में नवंबर 2022 में) को अपने कैमरे में कैद किया।इन परिदों से गुलजार हो रही हमारी धरती
इसके अलावा पक्षी प्रेमियों और बर्ड वाचर्स ने ब्रिटेन में पाए जाने वाले ब्लैक रेड स्टार्ट, दक्षिण एशिया में पाई जाने वाले दुर्लभ पक्षी आरेंज हेडेड थ्रश, फ्लोरिडा की ग्रे हेडेड कैनरी और फ्लाई कैचर के अलावा स्थानीय गायक श्रेणी का पक्षी स्ट्राबैरी फिंच या लाल मुनिया को भी इस बार सुल्तानपुर झील में परिंदों से संवाद करते देखा है। वन्य जीव विभाग के इंस्पेक्टर राजेश चहल के मुताबिक रेजीडेंट पक्षी ब्लैक विंग स्टिल्ट, पेंटेड स्टोर्क (जांघिल) प्लेड किंगफिशर (कौड़िल्ला), ग्रे हरोन (अंजन), फीजेंट टेल्ड जकाना (जल मोर) प्रवासी पक्षियों में कामन क्रेन (कूंज), कामन पचार्ड (करछिया), कर्लू (गुलिंदा), डेमोइसेल क्रेन (करकरा), ग्रेट क्रस्टेड ग्रेब (शिवहंस), ग्रेलैग गूज (कलहंस), लिटिल ग्रेब (पनडुब्बी), लीजर व्हिस्लिंग टील (छोटी सिलही), मार्श हैरियर (पनचील), मलार्ड (नीलसर),नार्दर्न पिनटेल (सींखपर) के अलावा स्थानीय माइग्रेटरी पक्षियों में ग्रेटर फ्लेमिंगो (हंसवार), एशियन ओपन बिल स्टार्क (घोंघिल) और पोंड हेरन (अंधा बगुला) जैसे पक्षी इस उद्यान की शोभा बढ़ा रहे हैं।जब छिने थे घोसले
तमाम रंग सेमेटे दिल्ली में हरा रंग भी सदियों से मुखर रहा है। अरावली और यमुना की पिचकारियों से निकलते रंगों के अलावा समय-समय पर मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक ने इसका धानी आंचल और गहरा किया है। फिर शुरू हुई आधुनिक दिल्ली के विकास की कहानी और उसकी बलि बेदी पर पहला सर प्रकृति का रहा। रही सही कसर खनन के दंश से पूरी हो गई। पूरे एक दशक तक खनन के कारण पशु-पक्षी पलायन करने लगे और इस तरह एनसीआर कंकरीट के जंगल में तब्दील होता गया। वन अधिकारी सुंदर लाल का कहना है कि 1980 और 1990 के बीच का वह दौर प्रकृति के संहार का दौर साबित हुआ, क्योंकि पहाड़ों में खनने से पशु-पक्षियों के आशियाने छिन गए थे। विस्फोटों से संवेदनशील पक्षी डरकर सुरक्षित स्थानों पर जाने लगे।
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