Gurugram: जिला जज ने साक्ष्यों की जांच के दिए आदेश, कहा- अधिकारियों ने पद का दुरुपयोग कर पेश किए झूठे दस्तावेज
गुरुग्राम जिला जज ने निचली अदालत को बादशाहपुर के बिजली निगम के SDO और सर्कल-टू के अधीक्षण (अभियंता एसई) द्वारा कोर्ट में पेश किए साक्ष्यों की जांच के आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि अधिकारियों द्वारा प्रस्तुत तथ्य और साक्ष्यों में मेल नहीं दिख रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों अधिकारियों ने पद का दुरुपयोग कर झूठे दस्तावेज अदालत में पेश किए हैं।
गुरुग्राम/बादशाहपुर, महावीर यादव। उपभोक्ता के बिल में तीन साल बाद गलत तरीके से 1.20 लाख रुपये जोड़ने के मामले में अपील करना महंगा साबित हुआ। जिला जज एसपी सिंह की अदालत ने बिजली निगम की अपील तो खारिज कर दी।
निचली अदालत को बादशाहपुर के उप मंडल अभियंता एसडीओ तथा बिजली निगम के सर्कल-टू के अधीक्षण (अभियंता एसई) के विरुद्ध जांच के आदेश जारी कर दिए।
एसपी सिंह की अदालत ने कहा कि प्रस्तुत तथ्य और साक्ष्यों में मेल नहीं दिख रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों अधिकारियों ने पद का दुरुपयोग कर झूठे दस्तावेज अदालत में पेश किए हैं।
बादशाहपुर के टीकली रोड पर रहने वाले उपभोक्ता नारायण सिंह ने मीटर खराब होने पर 2016 में मीटर बिजली निगम से बदलवाया था। उसके बाद सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। 26 जून 2019 को उनके बिल में 1.20 लाख रुपये की राशि जोड़कर भेज दी गई।
ब्याज समेत उपभोक्ता को वापस करेगा विद्युत निगम: अदालत
उपभोक्ता ने बिजली निगम से इस बारे में पूछा तो बताया गया कि मीटर बदलने के समय मीटर लैब में चेक करने के लिए भेजा तो मीटर टेंपर्ड किया जाना पाया गया। उपभोक्ता ने इस मामले को लेकर अधिवक्ता क्षितिज मेहता के माध्यम से अदालत का दरवाजा खटखटाया। सिविल जज साक्षी सैनी की अदालत ने 17 सितंबर 2022 को बिजली निगम के मामले को गलत करार देकर उपभोक्ता की राशि ब्याज समेत वापस करने के आदेश दिए।
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निगम ने निचली अदालत को जिला अदालत में दी चुनौती
बिजली निगम ने निचली अदालत के फैसले को जिला अदालत में चुनौती दी। जिला जज एसपी सिंह की अदालत ने बिजली निगम की याचिका तो निरस्त कर दी। अपील निरस्त करने के साथ ही अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता एसडीओ और एसई ने झूठी दलीलें पेश कर अदालत को गुमराह करने का प्रयास किया गया प्रतीत होता है।
बैक डेट में कोई भी सरकारी रिकार्ड बनाना जालसाजी की श्रेणी में आता है। प्रस्तुत तथ्य उनके द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों से मेल नहीं खाते हैं। एसई और एसडीओ दोनों ही जिम्मेदार अधिकारी हैं। उनसे जिम्मेदार तरीके से व्यवहार करने और अदालत के सामने सही तथ्य रखने की अपेक्षा की जाती है। वे अपने कार्यालय में जो कुछ भी करते हैं और अदालत में जो कुछ भी कहते हैं। उससे बहुत पवित्रता जुड़ी होती है।
इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि अधिकारियों ने झूठे दस्तावेज बनाए होंगे जो एक अपराध है। इसलिए यह आदेश दिया जाता है कि इस फैसले की प्रति ट्रायल कोर्ट को जांच करने के अनुरोध के साथ भेजी जाए।
यह पता लगाया जाए कि क्या धारा के तहत एसई व एसडीओ के विरुद्ध आगे बढ़ने की कोई आवश्यकता है। आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 340 और झूठे दस्तावेज बनाने और लाभ प्राप्त करने के लिए अदालत में उनका उपयोग करने के लिए उन पर मुकदमा चलाया जाए।
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