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यूं परवान चढ़ी थी नवाब पटौदी 'इफ्तिखार अली खान' और 'बेगम साजिदा' की प्रेम कहानी

16 मार्च 1910 को पटौदी के नवाब इब्राहिम अली खान व सहर बानो बेगम के घर जन्में इफ्तिखार अली खान का मात्र 41 वर्ष की उम्र में 5 जनवरी 1952 में हृदय गति रुकने से देहांत हो गया था।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Sat, 18 Apr 2020 03:58 PM (IST)
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यूं परवान चढ़ी थी नवाब पटौदी 'इफ्तिखार अली खान' और 'बेगम साजिदा' की प्रेम कहानी
डॉ. ओम प्रकाश अदलखा, पटौदी(गुरुग्राम)। मुहब्बत कभी आसान नहीं होती, रूढ़ि और रीति- परंपराओं की कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ता है...तब जाकर परवान चढ़ती है। कुछ ऐसी ही थी इफ्तिखार अली खान (पटौदी) व नवाब बेगम साजिद सुलतान की भी प्रेम कहानी। बताते हैं, जब इनका इश्क पातियों के दौर में था...तब नवाब, साजिदा सुलतान जो कि भोपाल रियासत के नवाब हमीदुल्ला खान की छोटी बेटी थीं, से मिलने के लिए भोपाल भी जाया करते थे। उन दिनों नवाब इंग्लैंड में पढ़ाई करते थे। हमीदुल्ला यूं तो दोनों की इस परवानियत के पक्षधर नहीं थे। लेकिन जब नवाब इफ्तिखार की दिलावरी देखी तो भोपाल के नवाब भी इससे खासे प्रभावित हुए।

दरअसल हुआ यूं कि भोपाल में उन दिनों एक बाघ लोगों को परेशान कर रहा था। इत्तेफाक से तब नवाब इफ्तिखार भी वहीं थे। उस बाघ का शिकार करना कड़ी चुनौती था। लेकिन नवाब ने बाघ को चकमा देकर उसका शिकार किया और पहुंच गए हमीदुल्ला खान के महल में। बस फिर क्या था, भोपाल नवाब उनसे खासे प्रभावित हुए और अपनी छोटी बेटी की जिद के आगे झुकने को विवश भी। लेकिन जिस तरह हर पिता की ख्वाहिश होती है कि बेटी संपन्न, शोहरत वाले परिवार में जाए तो हमीदुल्ला भी इस बात को लेकर चिंतित थे। उन्हें लगता था कि मेरी बेटी तो ठाठ-बाट से महलों में पली है। उन दिनों पटौदी की विरासत में पटौदी कस्बे के अलावे 40 गांव थे। और तब तक पटौदी का नवाब परिवार पटौदी में ही 1857 के बाद तत्कालीन नवाब अकबर अली खान द्वारा बनाई गई अकबर मंजिल में रहता था जो बाद में पीली कोठी के नाम से प्रचलित हुई। अब इश्क में इंसान क्या-क्या कर गुजरता है।

उसकी पेशगी देखिए, नवाब इफ्तिखार एक पिता की चिंता रूपी कड़ी परीक्षा के लिए भी डटे रहे। तभी तो जिस तरह शाहजहां और मुमताज के मुहब्बत की निशानी आगरा का ताजमहल बना इसी भांति भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान रहे इफ्तिखार और साजिदा के प्रेम की निशानी पटौदी पैलेस बना जो कि आज भी इब्राहिम पैलेस के नाम से भी विख्यात है। सन् 1935 में 23,000 वर्ग फीट क्षेत्र में इब्राहिम पैलेस का निर्माण हुआ था। इसकी खूबसूरती का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि इसका नक्शा ब्रिटिश वास्तुकार रोबर्ट टोर रसेल...जी, आप बिलकुल ठीक समझ रहे हैं वही रोबर्ट जिन्होंने दिल्ली का दिल कहे जाने वाले कनॉट प्लेस का भी डिजाइन किया था। तब कहीं जाकर 23 अप्रैल को भोपाल में शाही अंदाज में दोनों का निकाह पढ़ा गया...और हमेशा के लिए रीति-परंपरा के साथ दोनो एक-दूजे के हो गए।

बेहद मिलनसार रहे दोनों : मंसूर अली खान के पिता व सैफ अली खान के दादा नवाब इफ्तिखार अली खान के विषय में पटौदी के बुजुर्ग लोग अपने पूर्वजों से सुनी बातों के आधार पर बताते हैं कि नवाब बहुत ही मिलनसार थे। वे रात को खाना खाने के बाद नगर में निकल जाते थे और कहीं भी बैठकर हुक्का गुड़गुड़ाते लोगों से हाल चाल जानते थे। उनके लिए धर्म का भेदभाव कभी नहीं रहा। इसी तरह बेगम साजिदा भी मिलनसार, मददगार थीं। इनका दांपत्य जीवन जितनी कड़ी परीक्षा के साथ एक सूत्र में बंधा...लेकिन ईश्वर की होनी, नवाब इस दुनिया से जल्दी विदा ले गए थे। तब साजिदा दिल्ली स्थित बंगले में रहने लगी थीं। और यदि कहीं से भी कोई नवाब पटौदी का नाम लेकर उनके यहां पहुंच जाता था तो उसकी बहुत अच्छे से आवभगत करती थीं। अलग-अलग तरह के पकवान बनवाती थीं, यहां तक की उन्होंने अपने यहां सभी कर्मचारियों को भी वही भोजन दिया जो स्वयं खाती थीं। पूर्व पार्षद अब्दुल जलील बताते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय चौधरी भजन लाल के कार्यकाल में पटौदी के तहसील कार्यालय सहित विभिन्न कार्यालयों को हेलीमंडी में स्थानांतरित करने की योजना बनाई गई थी। तब नगर के लोग उनके पास मदद को पहुंचे व उनके हस्तक्षेप पर स्थानांतरण रोका गया।

जब हमीदुल्ला पहली बार पटौदी आए : अब विवाह तो हो गया था। लेकिन नवाब हमीदुल्ला कभी बेटी के यहां पटौदी नहीं आए। हां, लेकिन जब आए तो खुद पर उन्होंने बहुत अफसोस भी जताया। दरअसल नवाब इफ्तिखार अली खान का पोलो खेलते हुए हृदय गति रुकने से देहांत हो गया था, तब भोपाल नरेश उनकी मैयत में शिरकत करने पटौदी आए। लोग आज भी बताते हैं, कि वहां देश-विदेश की अनेक नामचीन हस्तियों को और पूरे पटौदी क्षेत्र को उमड़ा देखकर तब हमीदुल्ला ने कहा था कि ‘जिसे वे जिंदगी भर अपने से छोटा समझते रहे, पता नहीं था कि उनका साम्राज्य देश विदेश में फैला हुआ है और वे लोगों के दिलों में इतनी जगह बनाए हुए हैं।

जब नवाब की बोल पर क्लीन बोल्ड हो गए थे गांधी : भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी नवाब पटौदी एक बार गांधी जी से मिलने गए। इस मुलाकात में गांधी जी ने कहा, मैंने निर्णय किया है कि क्रिकेट में हम दोनों लोग अकेले-अकेले आमने-सामने खेलें, तब पटौदी ने कहा एक शर्त पर, मैच पूरा होते ही राजनीति में मैं आपको चुनौती दूं इसकी इजाजत दीजिए। गांधी जी ने स्वीकार कर लिया, तब नवाब पटौदी गंभीरता से बोले देखिए मुझे पूरा यकीन है कि क्रिकेट में आप मुझे बुरी तरह हरा देंगे, पर साथ ही मुझे भरोसा है कि राजनीति में मैं आपको पराजित कर दूंगा। गांधी जी बच्चों की तरह खिलखिला कर हंस पड़े और नवाब की पीठ थपथपा कर बोले नवाब साहब आपने तो अभी से मुझे क्लीन बोल्ड कर दिया।

16 मार्च 1910 को पटौदी के नवाब इब्राहिम अली खान व सहर बानो बेगम के घर जन्में इफ्तिखार अली खान का मात्र 41 वर्ष की उम्र में 5 जनवरी 1952 में पोलो खेलते समय हृदय गति रुकने से देहांत हो गया था।

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