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फतेहाबाद में कार की बाडी से बनी अद्भुत नंदी सफारी दे रही सैलानियों को सुखद भ्रमण का अहसास

फतेहाबाद के टोहाना में रेगिस्तान सफारी में ऊंट की अहमियत से ऊपर कार और बैल (नंदी) दोनों की संयुक्त सफारी का आनंद मिलता है। कार की बाडी वाली इस सफारी में सामाजिक सरोकारों से बंधे मानव-मूल्यों के दर्शन होते हैं।

By Manoj KumarEdited By: Updated: Sun, 18 Jul 2021 01:55 PM (IST)
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टोहाना में शिव नंदीशाला की अभूतपूर्व पहल, कार की सीट व म्यूजिक सिस्टम से लैस अनूठी सफारी
मणिकांत मयंक, फतेहाबाद: सफारी शब्द ही रोमांचित करता है। वह चाहे रेगिस्तान सफारी हो अथवा अन्य, रोमांच का अहसास स्वत: आता है। कुछ ऐसी ही अनुभूति टोहाना की शिव नंदीशाला में होती है। लेकिन यहां रेगिस्तान सफारी में ऊंट की अहमियत से ऊपर कार और बैल (नंदी) दोनों की संयुक्त सफारी का आनंद मिलता है। कार की बाडी वाली इस सफारी में सामाजिक सरोकारों से बंधे मानव-मूल्यों के दर्शन होते हैं। साथ ही, सरकार के भरोसे गोवंश संवद्र्धन की बाट जोहने वाली गोशाला-संस्थाओं को आत्मनिर्भरता के संदेश भी मिलते हैं।

यह अनूठी पहल है-सैलानियों के लिए सुहाने सफर के जरिये नंदीशाला की आत्मनिर्भरता का। यह सब हो रहा है इस नंदीशाला के समाजसेवी कर्ता-पुरुषों की संवेदना से। आइडिया यूं आया कि शिव नंदीशाला के संयोजक व प्राइवेट स्कूल के ङ्क्षप्रसिपल धर्मपाल सैनी जब अपने स्कूल के बच्चों को शैक्षिक भ्रमण के लिए ले जाते तो बच्चे धरोहर दर्शन के दौरान बैलगाड़ी देखकर रोमांचित हो जाते थे। यहीं से विचार आया कि क्यों न नंदीशाला में नंदी के सहारे सफारी की पहल की जाए। फिर विचार आया कि कार की बाडी और एक बहलवान के साथ नंदी का उपयोग किया जाए। चाह को राह मिली। तैयार हो गई सफारी और नाम दिया नंदी सफारी का। फिर चल पड़ी हरियाली से पर्यावरण संरक्षण, रोजगार से गरीबी उन्मूलन, जोहड़ से जल-संरक्षण आदि जैसे जीवन-मूल्यों के दर्शन की सफारी...। सफारी से मिलने वाली आय से नंदीशाला की आत्मनिर्भरता...। इस जज्बे को सलाम ...।

यूं बनी अद्भुत नंदी सफारी

शिव नंदीशाला संचालक कार मार्केट गए। उन्होंने वहां एक काफी पुरानी इंडिका कार देखी। दाम 20 हजार रुपये बताया गया। 13 हजार में फाइनल हुआ। फिर नंदीशाला में ही अक्सर गेट वगैरह बनाने वाले नरायणगढ़ के प्रकाश को आइडिया बताया गया। कार की इंजन काटकर हटा दिया गया। शेष हिस्से को जूहा से जोड़ दिया गया। कार वाले हिस्से में म्यूजिक सिस्टम सेट कर दिया गया। बन गई अनूठी सफारी। एक नंदी के सहारे यह चलती है। साथ में बहलवान भी होता है।

मेरे लिए यह चुनौती थी : वेल्डर प्रकाश सैनी

सफारी बनाने वाले पेशे से वेल्डर प्रकाश सैनी बताते हैं कि यह अनोखा जुगाड़ था। इसलिए चुनौती भी थी। आइडिया को मूर्त करना था। वेङ्क्षल्डग कौशल काम आया। सात दिन लगे। मास्टरजी का आइडिया शानदार सफारी बन गया।

दस रुपये टिकट, दस मिनट में सात एकड़ का एक चक्कर

लगभग सात एकड़ जमीन में है नंदीशाला। यहां राधिका गाय हैं तो कन्हैया नंदी भी। परिसर में हरियाली है तो रोजगार के स्रोत भी। इस पूरे परिसर में फैले मानव मूल्यों के दर्शन में नंदी सफारी से दस मिनट लगता है। दस रुपये का टिकट रखा गया है।

अब इसे शहर में चलाने की योजना : धर्मपाल सैनी

नंदीशाला संयोजक धर्मपाल सैनी बताते हैं कि शनिवार व रविवार को खासी तादाद होती है सफारी के चाहवानों की। इस रकम से गोवंशों के भरण-पोषण में लगभग सात हजार रुपये प्रतिमाह तक की आत्मनिर्भरता मिलती है। अब इसे शहर में भी चलाने की योजना है।

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