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आज 50वें वर्ष में प्रवेश कर गया भिवानी जिला, 49 वें जन्मदिन पर कटा 49 किलो का केक

भिवानी जिला ने अपना 49वां जन्मदिन 49 किलो का केक काटकर मनाया। नगर व्यापार मंडल हर वर्ष भिवानी जिले का जन्मोत्सव गोंद का केक काटकर मनाता है। इस बार भी नगर व्यापार मंडल ने भिवानी जिले का जन्मोत्सव 49 किलो का केक काटकर मनाने का निर्णय लिया था।

By Manoj KumarEdited By: Updated: Wed, 22 Dec 2021 08:44 AM (IST)
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जानें भिवानी जिला बनने के बाद अब तक क्‍या-क्‍या कब-कब कैसे आए बदलाव
सुरेश मेहरा, भिवानी : हैप्पी बर्थडे भिवानी। 22 दिसंबर को भिवानी जिला ने अपना 49वां जन्मदिन 49 किलो का केक काटकर मनाया। नगर व्यापार मंडल हर वर्ष भिवानी जिले का जन्मोत्सव गोंद का केक काटकर मनाता है। इस बार भी नगर व्यापार मंडल ने भिवानी जिले का जन्मोत्सव 49 किलो का केक काटकर मनाने का निर्णय लिया। यह भव्य आयोजन रोहतक गेट पर आयोजित किया। अपने 49 में जन्मोत्सव के साथ ही भिवानी जिला 50वें वर्ष में प्रवेश कर गया।

अपने 49 साल के सफर में भिवानी जिला ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं। राजनीतिक सफर की बात करें तो भिवानी ने चौधरी बंसीलाल बनारसी दास गुप्त मास्टर हुकम सिंह जैसे तीन-तीन मुख्यमंत्री दिए वहीं अभी वर्तमान में भिवानी जिले के ही अरविंद केजरीवाल को दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में दिया है। भले ही वर्तमान में भिवानी जिले से मुख्यमंत्री नहीं पर प्रदेश से लेकर केंद्र की राजनीति तक में भिवानी की भागीदारी जरूर रहती रही है। वर्तमान में भी सेना अध्यक्ष रहे जनरल वीके सिंह केंद्रीय मंत्री हैं तो प्रदेश सरकार में जेपी दलाल कृषि मंत्री है। इससे पहले भी चाहे कोई भी सरकार रही हो भिवानी की हिस्सेदारी केंद्र और प्रदेश सरकार में जरूर रही है।

खेलों की दुनिया में भिवानी ने छोड़ी है अपनी खास छाप :

खेलों की दुनिया की बात करें तो भिवानी ने अपनी खास छाप छोड़ी है। मुक्केबाजी में तो भिवानी का नाम खेलों की दुनिया में पहली श्रेणी में आता ही है।अब क्रिकेट में भी भिवानी के युवा पीछे नहीं है अभी हाल ही में भिवानी के गर्व सांगवान ने अंडर-19 भारतीय टीम में स्थान बनाकर इतिहास रचा है। गर्व ऑल राउंडर हैं। इससे पहले अंडर-19 भारतीय क्रिकेट टीम में भिवानी के सनी सिंह भी जिले का नाम रोशन कर चुके हैं।

मुक्केबाजी की बात करें तो ओलंपियन विजेंद्र सिंह, विकास यादव, मनीष कौशिक जैसे मुक्केबाजों ने खेलों की दुनिया में भिवानी को बड़ी पहचान दिलाई है यहां के खिलाड़ियों की बदौलत ही भिवानी को मिनी क्यूबा के रूप में शोहरत मिली है।

भिवानी शहर है बड़ा गुलजार:

एक जमाना था जब कहावत होती थी भिवानी शहर बड़ा गुलजार 12 दरवाजे चार बाजार। दरवाजे भले ही आज ना हो पर उनके नामों की पहचान से जगह आज भी है और चार बाजार उन्ही पुराने नामों से आज भी चल रहे हैं। उस जमाने में शहर के चारों तरफ ऊंची दीवार होती थी और यह 12 दरवाजे बनाए गए थे। यह सब शहर की सुरक्षा के लिए किया गया था। इन दरवाजों पर पहरेदार मौजूद रहते थे।

वर्ष 1858 के बाद यूं आया बदलाव :

वर्ष 1858 में उतर भारत में सबसे बड़ी रियासत झज्जर होती थी। झज्जर स्टेट का इलाका डबवाली से कोटपुतली तक होता था। सादलपुर से लेकर बल्लभगढ़ तक यह स्टेट था। 1857 का गदर हुआ तो झज्जर स्टेट को 12 हिस्सों मेो तोड़ दिया गया था। गदर में मदद करने वालों को अंग्रेजों ने रियासतें सौंप दी थी। उस समय भिवानी गांव महम जिले का हिस्सा होता था। गंगाराम भोड़ूका मकान में पटवार खाना होता था। इस पटवारखाने की दीवार पर नीली स्याही से लिखा था कि भिवानी गांव का जिला महम है। महम एक प्रभावशाली जिला होता था। महम के बाद भिवानी रोहतक जिले का हिस्सा बना और इसके बाद हिसार जिले में शामिल किया गया। 22 दिसंबर 1972 को भिवानी अलग से जिला बना था। भिवानी शहर की बात करें तो इसके दो प्रमुख हिस्से थे। भिवानी जोनपाल व भिवानी लोहड़ दो गांव थे। सन 1901 में भिवानी तहसील बनी थीं।

22 दिसंबर 1972 को बने थे तीन जिले

तत्कालीन प्रदेश सरकार ने कुरुक्षेत्र, सोनीपत व भिवानी को अलग जिला बनाया था। भिवानी जिला बनने पर महेन्द्रगढ़ का कुछ हिस्सा मिला दिया गया था।

ये होते थे भिवानी में 12 दरवाजे :

1. रोहतक गेट

2. महम गेट

3. तिगड़ाना गेट

4. हांसी गेट

5. रेल दरवाजा

6. दिनोद गेट

7. देवसर गेट

8. हलवास गेट

9. पतराम गेट

10. हनुमान गेट

11. बेरी गेट

12. बावड़ी गेट

(नोट: सन 1965 में तोड़े गए)

ये चार बाजार थे :

नया बाजार

लोहड़ बाजार

बिचला बाजार

हालु बाजार

नोट- आज भी चार ही बाजार हैं।

1890 में ये था लाल डोरा एरिया :

नया बाजार, सराय चौपटा, दिनोद पुलिस चौकी, डग्गों वाली गली, हालु बाजार, घोसियान चौक, जैन चौक, बाग कोठी, फैंसी चौक शामिल था। 1909 में लाल डोरे की परिधि बढ़ाई गई तो यह 12 दरवाजों से बाहर आ गया। ताजा सरकुलर रोड को लाल डोरे की परिधि मान लिया गया। भिवानी लोहड़ ने उन्नति पर विकसित नहीं हुआ। जोनपाल भिवानी लोहड़ की जमीन से भिवानी जोनपाल की जमीन डेढ़ गुणा थी पर वह रेतीला इलाका था। आज भी जोनपाल क्षेत्र में विकास अपेक्षाकृत कम हुआ है।

हर पाने का अलग होता था तालाब :

भिवानी के हर पाने का अपना एक तालाब होता था। नगर परिषद के रिकार्ड में 16 तालाब थे पर असल में अधिकांश अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुके हैं। हालांकि अब जो तालाब में बचे हैं उनका सुंदरीकरण कर झील का रूप दिया गया है।

पंडित रामकुमार बिढाठ पहले विधायक थे :

पहले विधायक पंडित रामकुमार बिढ़ाठ दो बार 1952 से 1962 तक यहां से नेतृत्व करते रहे। जबकि हरियाणा बनने के बाद भगवान देव प्रभाकर भिवानी के पहले विधायक बने। इसके बाद तो केंद्र और प्रदेश की राजनीति में भिवानी की हमेशा दमदार उपस्थिति रही है।

शिक्षा के क्षेत्र में भिवानी की बोलती थी तूती :

1944 में पहला कालेज वैश्य कालेज बना। उस दौर में रोहतक, हिसार में कालेज नहीं होते थे। उस समय दिल्ली, लाहौर व अंबाला में ही कालेज होते थे। शिक्षा के क्षेत्र में भिवानी इस एरिया में सबसे आगे रहा। बीटी कालेज 1953 में स्थापित हो गया था, जो केएम बीएड कालेज के नाम से चल रहा है। उस समय उतर प्रदेश, बिहार व राजस्थान सहित उतर भारत के अधिकांश शिक्षक यहां से पढ़ लिखकर गए थे।

1943 में सेठ किरोड़ीमल द्वारा गठित ट्रस्ट ने शहर में कई बड़े काम किए। इनमें अस्पताल, किरोड़ीमल पार्क, साईं हास्टल बीएड कालेज के छात्रों का हास्टल होता था। राजकीय केएम वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, हांसी गेट पर स्कूल, वैश्य कालेज का भवन भी सेठ किरोड़ीमल ने ही बनाया था। 1952 में किरोड़ीमल मंदिर बना था। 1952 से 1968 तक इस मंदिर में लाखों लोग यहां आते थे। मंदिर में चलचित्र झांकियां निकाली जाती थी, जो कि पूरे उतर भारत में आकर्षण का केंद्र बनी होती थीं। इन झांकियों को देखने के लिए दूरदराज से लोग एक दिन पहले आकर ठहरते थे। सन 1966 में भिवानी व अंबाला दो ही शहर थे, जिनकी आबादी एक लाख थी।

यू पड़ा पड़ा भिवानी का छोटी काशी नाम :

प्रबुद्ध वरिष्ठ नागरिकों के अनुसार 1857 के गदर में भिवानी क्षेत्र में अंग्रेजों पर राजपूत व मुसलमान भारी पड़ रहे थे। अंग्रेजों की हार होने पर दो अंग्रेज उच्चाधिकारियों को नंदराम कटला के तहखाने में छुपा लिया और कई दिनों तक उनको संरक्षण दिया। जब गदर शांत हो गया तो अधिकारियों ने कहा कि आपने हमारी रक्षा की है, हम आपको कुछ देना चाहते हैं। इस पर सेठ नंदराम ने मांग की कि 12 कोस के इलाके में पशु वध व शिकार पर रोक लगाई जाए। एक थाने की स्थापना की मांग की थी, जो कि वर्तमान शहर पुलिस थाने के स्थान पर पुरानी बिल्डिंग का निर्माण 1857 में किया गया था। कलानौर में भी इसी दौरान थाना बना था। तीसरी मांग मंदिर बनाने के लिए जगह के लिए कोई टैक्स नहीं लेगी अंग्रेज सरकार। ये तीनों मांगे अंग्रेज सरकार ने मंजूर कर ली थी। 1857 में भिवानी में कई बड़े मंदिरों की स्थापना हुई। इनमें आचार्यो का मंदिर, दादू पंथियों का मंदिर शामिल हैं, जो कि नंदराम के बेटे पतराम ने बनाए थे। उस समय काफी अन्न क्षेत्र बनवाए थे, जिनमें से चार अभी भी चल रहे हैं। वर्तमान में यहां शहर में 300 से ज्यादा मंदिर है।

कपड़ा व्यवसाय में भिवानी देश में दूसरे नंबर पर रहा है :

वर्ष 1962 में भिवानी में अहमदाबाद के बाद भिवानी टैक्सटाइल में पूरे देश में नंबर दो पर था। उस समय पंजाब टैक्सटाइल मिल व टीआइटी मिल थी। 1940 में टीआइटी स्थानीय निवासी पंडित अंगुरीलाल शर्मा ने स्थापना की थी। यहां बड़ी बात यह है कि अंगुरीलाल शर्मा ने तकनीकी रूप से ज्यादा दक्ष न होते हुए भी धागा बनाने व कपड़ा बुनने की यहां शुरुआत की थी। हरियाणा बनने से पहले इन फैक्ट्रियों में 16 हजार से अधिक मजदूर कार्य करते थे।

आंखों के इलाज के लिए रही है भिवानी की खास पहचान:

भिवानी शहर की आंखों के इलाज के लिए उतर भारत में खास पहचान रही है। भिवानी के किशन लाल जालान व कन्हैया आंखों के अस्पताल में देशभर से हजारों मरीज इलाज के लिए आते थे। 1935 से लेकर 1972 तक डा. पीडी गिरधर का नाम विख्यात रहा था। वर्तमान में भी किशनलाल जालान अस्पताल में दूरदराज से लोग आंखों का इलाज करवाने के लिए आते हैं।

आजादी के बाद विभाजन के समय शांति बनाए रखने को दिया था खास योगदान :

वर्ष 1947 में जब देश आजाद हुआ और दंगे हुए, उन दंगों की रिपोर्ट आवासीय दंडाधिकारी गंगाराम जैन व सरदार सिंह ट्रांसपोर्टर थे। इन्होंने भिवानी में हिंदुओं को बचाने के लिए अहम योगदान दिया। शहर के चारों ओर मुसलमान बाहुल्य गांव होते थे। ये दोनों शांतिदूत की भूमिका में थे। 15 अगस्त 1947 को गंगाराम सरदार सिंह की गाड़ी में हिसार कलेक्टर को दंगों की रिपोर्ट देने जा रहे थे तो हिसार के पास स्थित डबल फाटक के पास इनकी गाड़ी सेना की गाड़ी से टकरा गई थी और दोनों की मौत हो गई थी।

कपड़े व सोने के कारोबार में आज भी भिवानी है अग्रणी:

भिवानी आज भी सोने और कपड़े के कारोबार में उत्तर भारत में अग्रणी माना जाता है। कपड़ा व सोना राजस्थान, पंजाब, दिल्ली से सस्ता व गुणवत्ता वाला यहां मिलता है।

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