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जले हुए बच्चे को चाइल्ड लाइन ने किया रेस्क्यू, सिविल पहुंचे तो एंटीसेप्टिक क्रीम तक नहीं मिली

अवकाश के दिन कोई आपात स्थिति आ जाए तो आप प्रशासन से तो मदद की उम्मीद न ही रखें। आप अधिकारियों को फोन लगाते जाएंगे मगर कोई रेस्पांस नहीं मिलेगा। हिसार में आत्मा को झकझोर देने वाला मामला सामने आया है।

By JagranEdited By: Updated: Sat, 19 Feb 2022 07:28 PM (IST)
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जले हुए बच्चे को चाइल्ड लाइन ने किया रेस्क्यू, सिविल पहुंचे तो एंटीसेप्टिक क्रीम तक नहीं मिली

जागरण संवाददाता, हिसार : अवकाश के दिन कोई आपात स्थिति आ जाए तो आप प्रशासन से तो मदद की उम्मीद न ही रखें। आप अधिकारियों को फोन लगाते जाएंगे मगर कोई रेस्पांस नहीं मिलेगा। हिसार में आत्मा को झकझोर देने वाला मामला सामने आया है। दरअसल चाइल्ड लाइन को शनिवार सुबह आठ बजे चिड़ौद रेलवे स्टेशन पर एक बच्चा मिला, जो ट्रेन में बैठकर जाना चाहता था। चाइल्ड लाइन ने बच्चे को रेस्क्यू किया तो देखा कि बच्चे का शरीर काफी जला हुआ था। इस बच्चे को उपचार और आश्रय दिलाने के लिए बाल कल्याण समिति ने पूरी ताकत झौंक दी मगर हिसार में बच्चे को आश्रय नहीं दिला पाए। इसके साथ ही सिविल अस्पताल से मिन्नतों के बाद उपचार मिला, वह भी आधा अधूरा रहा। बच्चे को घाव पर लगाने के लिए एंटीसेप्टिक क्रीम तक सिविल अस्पताल प्रशासन के पास नहीं है। इस मामले में उच्चाधिकारियों ने फोन तक नहीं उठाया। ऐसे में बच्चे को भोजन और आश्रय के लिए भी संघर्ष करना पड़ा। पढि़ए पूरा मामला : यह लापरवाही जो मानवता को झकझोर रही है सिविल अस्पताल प्रशासन की लापरवाही

बाल कल्याण समिति के सदस्य मनोज चंद्रवंशी ने बताया कि शनिवार को वह ड्यूटी रोस्टर पर थे। ऐसे में उन्होंने चाइल्ड लाइन से बच्चे का प्रोडक्शन लिया। बच्चे की हालत देखते हुए उन्होंने सीएमओ को बच्चे के उपचार के लिए पत्र लिखा। बच्चे के सिविल अस्पताल पहुंचने पर मेडिकल अफसर ने कहा कि यह आदेश तो सीएमओ के नाम है, वह आज अवकाश पर हैं। उन्होंने मेडिकल अफसर को कहा कि बच्चे को उपचार देना जरूरी है क्योंकि उसके शरीर पर घाव हैं। उन्होंने मेडिकल अफसर को कहा कि बताएं तो आपके नाम से पत्र भेज देता हूं। इसके बाद मेडिकल अफसर खुद ही मान गईं और उपचार के लिए उसी आदेश पर कुछ दवा लिख दी। इस बच्चे की अलग से पर्ची तक नहीं काटी गई। बच्चे को सिविल अस्पताल से गोली तो मिल गई मगर घाव पर लगाने के लिए एंटीसेप्टिक क्रीम तक नहीं मिली। सुबह आठ बजे से लेकर सायं को पांच बजे तक बच्चे को काफी संघर्ष करना पड़ा। प्रशासनिक अधिकारियों ने फोन तक नहीं उठाया

बाल कल्याण समिति के सदस्य मनोज चंद्रवंशी ने बताया कि बच्चे से जब पूछताछ की गई तो उसने अपने आप को बिहार का बताया। वह मानसिक रूप से अस्वस्थ था और बार-बार गांजा देने की मांग कर रहा था। ऐसे में बच्चे को भोजन और आश्रय दिलाने के लिए मनोज ने डीसी और एडीसी दोनों को फोन किया, मगर किसी ने उनका फोन नहीं उठाया। हिसार में चाइल्ड केयर संस्थान नहीं है। मनोज ने सिरसा में बात की तो उन्होंने बताया कि वहां पर अभी क्षमता खत्म हो गई है, नया बच्चा नहीं ले सकते हैं। ऐसे में मनोज ने गुरुग्राम में फोन लगाया तो यहां भी जगह नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने करनाल में बाल कल्याण समिति के चेयरपर्सन उमेश चनाना को फोन किया। वहां चेयरपर्सन ने बच्चे को भेजने और ध्यान रखने की बात कही। इस दौरान बच्चे को मनोज मजबूरन अपने घर ले गए और भोजन कराया। सायं पांच बजे उसे करनाल के लिए रवाना कर दिया गया।

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