Commonwealth 2022: चांदी जीतने वाले सागर की एक खबर ने बदल दी जिंदगी, स्वजन बोले- अगली बार सोना जीतेगा
महज चार साल पहले ही रिंग में उतरे सागर ने कामनवेल्थ गेम्स में रजत पदक जीता है। धांधलान गांव निवासी सागर अहलावत देश की धड़कन बन चुका है। कल देर रात सागर का फाइनल मुकाबला था जिसमें इंग्लैंड के खिलाड़ी से भिड़ंत हुई थी।
By Manoj KumarEdited By: Updated: Mon, 08 Aug 2022 11:01 AM (IST)
आनलाइन डेस्क, हिसार। कहते हैं कुछ पाना हो तो लंबे वक्त मेहनत करनी पड़ती है। मगर झज्जर के सागर ने ये साबित कर दिया कि अगर मेहनत पूरी हो तो कम समय में भी सफलता मिल सकती है। महज चार साल पहले ही रिंग में उतरे सागर ने कामनवेल्थ गेम्स में रजत पदक जीता है।
धांधलान गांव निवासी सागर अहलावत देश की धड़कन बन चुका है। कल देर रात सागर का फाइनल मुकाबला था जिसमें इंग्लैंड के खिलाड़ी से भिड़ंत हुई थी। सागर को हार का सामना करना पड़ा मगर सागर ने चांदी अपने नाम कर ली। उनकी जीत से देश और झज्जर समेत पूरे प्रदेश में खुशी की लहर है।
सागर का फाइनल में इंग्लैंड के खिलाड़ी केआनयकवर्व के साथ मुकाबला था। यह मुकाबला बहुत ही दिलचस्प रहा। मगर आखिर में सागर जीत न सके। मुकाबला सोमवार 1:15 (एएम) बजे हुआ। सभी की निगाहें सागर के फाइनल पर टिकी हुई थी। सागर के पिता ने कहा कि परिवार को पूरी उम्मीद थी कि बेटा गोल्ड मेडल जरूर लाएगा, मगर चांदी भी सोने से कम नहीं है।
पिता राजेश अहलावत ने बताया कि बेटे की जीत का हम सभी को गर्व है। परिवार में इस वक्त खुशी का माहौल है। पिता राजेश ने बताया कि सेमीफाइनल के मुकाबले में लगभग 500 लोग इकट्ठा हुए थे। इस बार गोल्ड नहीं जीत पाया मगर अगली बार जरूर जीतेगा फाइनल मैच के दौरान भी पूरी रात हम जगते रहे।
जीरो से शुरू किया था, अभी बहुत दूर जाना है - बहन सागर की बहन तनु ने कहा कि महज चार साल पहले ही सागर ने खेलना शुरू किया था। परिवार की परिस्थितियां भी खेल के ज्यादा अनुकूल नहीं थी, मगर सभी ने साथ दिया। सागर ने जीरो से शुरू किया था, अब वह यहां तक पहुंच गया है। अभी तो बहुत आगे जाना है। सागर और कुछ बड़ा करके दिखाएगा। मेडल का रंग भी बदलेगा।
बेटे को खिलाऊंगी चूरमा- मांसागर की मां मुकेश अहलावत ने कहा कि बेटे ने देश का नाम रोशन कर दिया। मैं बहुत खुश हूं। सागर जैसा बेटा हर किसी को मिली। उसके लौटने पर उसे देसी घी का चूरमा खिलाऊंगी और खीर भी बनाऊंगी। सागर का सफर अभी खत्म नहीं हुआ है। वह ओलिंपिक तक जाएगा और मेडल जीतकर लाएगा।चंडीगढ़ से बीए कर रहा है सागर30 अक्टूबर 1998 को जन्मा सागर वर्तमान में चंडीगढ़ में रह रहा है। उसके पिता एक किसान हैं और परिवार का कोई भी एथलेटिक्स बैकग्राउंड नहीं है। अपनी स्कूली शिक्षा गांव में ही की। वर्तमान में वह बीए फाइनल इयर में है और चंडीगढ़ से पढ़ रहा है।
अखबार में लेख पढ़कर मुक्केबाजी की ओर हुआ आकर्षित सागर ने बताया था कि उसका पढ़ाई में बिल्कुल भी मन नहीं लगता था उससे पढ़ाई बिल्कुल भी नहीं होती थी। 12वीं के बाद आगे के करियर के बारे में सोचना शुरू किया। किसान परिवार में जन्में सागर का खेलों से कोई दूर-दूर तक लेना-देना नहीं था। लेकिन एक दिन उन्होंने मेवेदर और पैकियाओ के बीच हुई मशहूर भिड़ंत के बारे में अखबार में पूरे पन्ने का लेख पढ़ा। जैसे-जैसे वह दोनों महान मुक्केबाजों के बारे में और उनकी उपलब्धियों के बारे में पढ़ता गया, सागर ने तय कर लिया कि उसे क्या करना है।
कोच हितेश देशवाल ने दिखाई सही दिशा सागर को थोड़ा बहुत मुक्केबाजी के बारे में पता था। लेकिन मेवेदर और पैकियाओ के बारे में अखबार में पढ़कर प्रेरणा मिली थी। फिर 2017 में मुक्केबाजी शुरू की और बाग जहांआरा स्टेडियम (वर्तमान में महर्षि दयानंद स्टेडियम) में ट्रेनिंग करना शुरू किया। परिवार की मदद के कारण उसे अपनी ट्रेनिंग कई बार छोड़नी पड़ती थी। मगर कभी भी हार नहीं मानी। फिर सागर की मुलाकात कोच हितेश देशवाल से हुई। कोच हितेश ने बताया कि करीब चार साल पहले वह रिंग से जुड़ा था। कड़ी मेहनत और सादगी से वह सभी को प्रभावित करता है। कद-काठी से मजबूत होने की वजह से वह हार्ट हिटर है। राइट अपर कट और लेफ्ट हुक पंच उसके बेस्ट है।
हितेश का कहना है कि कम समय में सागर ने जबरदस्त प्रदर्शन किया और चंडीगढ़ चैंपियन बना, उसके बाद लगातार 2 बार ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी चैंपियन बना और 2 बार खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी चैंपियन बना और फिर नेशनल में सिल्वर मेडल जीता। जिसके दम पर इंडिया कैंप में चयन हो पाया। कोविड के दौर में कोच हितेश देशवाल ने सागर को अकेले भी मेहनत करवाई। कॉमनवेल्थ गेम्स ट्रायल में ओलिंपिक 2020 प्रतिभागी सतीश कुमार को हराया। फिर फाइनल में मुक्केबाज नरेंद्र को हरा कर अपना दम दिखाया।
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