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हरियाणवीं संस्कृति में है आनंद, उमंग और उत्साह

ठेठ हरियाणवी अंदाज में लोकगीतों पर थिरकतीं महिलाएं। चहुंओर वातावरण ऐसा कि जैसे किसी गांव में हैं। दरअसल महिलाओं का एक समूह युवा पीढ़ी को प्रदेश की संस्कृति से जोड़ने के लिए मैदान में उतरा है।

By JagranEdited By: Updated: Sun, 18 Oct 2020 08:41 AM (IST)
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हरियाणवीं संस्कृति में है आनंद, उमंग और उत्साह

संवाद सहयोगी, हांसी : ठेठ हरियाणवी अंदाज में लोकगीतों पर थिरकतीं महिलाएं। चहुंओर वातावरण ऐसा कि जैसे किसी गांव में हैं। दरअसल, महिलाओं का एक समूह युवा पीढ़ी को प्रदेश की संस्कृति से जोड़ने के लिए मैदान में उतरा है। समूह की महिलाएं ठेठ हरियाणवी अंदाज में युवाओं के साथ मिलकर कार्यक्रम का आयोजन करती हैं। शनिवार को जगदीश कॉलोनी में एक मकान में लोक संस्कृति को संजोने के लिए सांझी का रंगारंग आयोजन किया गया। महिलाओं ने पूरा दिन पुरानी हरियाणवी संस्कृति की परंपराओं के अनुरूप बिताया।

बता दें कि कला जीवन समिति की महिलाएं प्रदेश की संस्कृति के प्रसार के लिए काम कर रही हैं। इनका उद्देश्य पुराने रीति-रिवाजों से वर्तमान पीढ़ी को जोड़ना है। सांझी कार्यक्रम की आयोजक संगीता देवी ने कहा कि हमारे तीज-त्योहार लुप्त होते जा रहे हैं। पहले त्योहारों को लेकर उमंग व उत्साह होता था, जो धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है। वर्तमान पीढ़ी अपने सांस्कृतिक तीज-त्योहारों को ना भूले, इसे लेकर कला जीवन समिति की महिलाएं अपने अभियान में जुटी हैं। कार्यक्रम में सांझी माता बनाई गई व पुराने रीति-रिवाजों से उसे विसर्जित किया गया। जाने क्या है सांझी पौराणिक कथाओं में ब्रह्मा के मानस पुत्र पील्लम ऋषि की पत्नी सांझी थी जिसे मां दुर्गा भी कहते हैं। एक लोक मान्यता के अनुसार, सांझी सभी की सांझी देवी मानी जाती है। संध्या के समय कुंवारी कन्याओं द्वारा इसकी पूजा-अर्चना की जाती है। माना जाता है कि इसी कारण इस देवी का नाम सांझी पड़ा है। श्राद्ध पक्ष के पूरे 16 दिनों तक कुंवारी कन्याएं उमंग में बहुरंगी आकृति में सांझी गढ़ती हैं तथा ज्ञान प्राप्ति हेतु देवी की आराधना करती हैं। हाथी-घोड़े, किला-कोट, गाड़ी आदि की आकृतियां बनाई जाती हैं तथा अमावस्या को सांझी देवी को विदा किया जाता है।

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