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Famous temple of Hisar: 1707 ईसवीं में बर्बरीक की धड़ की मिली थी मूर्तियां, आज श्याम बाबा मंदिर

Famous temple of Hisar 1720 ईसवीं में खाटू धाम में श्याम बाबा का मंदिर दोबारा से बनाया था। पहले औरंगजेब ने मंदिर को तुड़वा दिया था। मंदिर को तोड़ने के बाद नया बनाने से 13 साल पहले स्याहड़वा में मंदिर बना था। बरबरीक का सिर खाटू धाम में मिला था।

By Naveen DalalEdited By: Updated: Thu, 23 Jun 2022 02:39 PM (IST)
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मुगलों के शासन में गांव के दो किसानों ने मूर्तियां ढूंढ निकाली थी।
हिसार, कुलदीप जांगड़ा। हिसार के गांव स्याहड़वा में कई ऐसी पुरानी धरोवर है, जिन्होंने गांव को प्रसिद्ध बनाया है। 1707 ईसवीं में बर्बरीक की धड़ की मूर्तियां मिली थी, आज यह श्याम बाबा मंदिर के नाम से मशहूर है। इस मंदिर की बहुत मान्यता है। गांव के अलावा दूरदराज क्षेत्र से भी लोग मंदिर में धोक लगाने के लिए आते है। खास बात यह है कि शुरू से लेकर अब तक ब्राह्मण समाज का एक ही परिवार मंदिर में अपनी सेवाएं दे रहा है। एक ही परिवार के पूर्वज सदियाें से मंदिर की देखरेख करने में लगे है।

शुरुआत में कच्चे टीले पर बनाया था कच्ची ईंटों का मंदिर

उन दिनों मुगलों का शासन था। गांव में लगान भी लगता था। नजदीकी गांव निवासी मंदरु स्याहड़वा में आक्रमण के लिए आया था। इसकी सूचना गांव में फैल गई। स्याहड़वा निवासी मौलूराम मुंदलिया, बिहारी मुंदलिया स्याहड़वा दो सगे भाई थे। मौलूराम व मरडूराम पंडित हाथों में जेली लेकर गांव की सीमा पर पहुंचे। मरडूराम विशालकाय शरीर का था और हर समय अपने हाथों में भरी-भरकम जेली रखता था। उस दौरान मंदरु गांव की ओर आता दिखाई दिया तो मौलूराम ने उसकी छाती पर वार कर उसका वध कर दिया। यह मामला मुगलों तक पहुंचा।

हिसार का नाम फिरोजशाह होता था

हिसार के आसपास कोई जेल नहीं थी तो मुगलों ने मौलूराम व मरडूराम को गोहाना जेल भेज दिया। जेल में पंडित मरडूराम को स्वपन में बर्बरीक दिखाई दिए और गांव में तालाब के बीच हींस के पेड़ के नीचे अपनी धड़ की मूर्ति के बारे में बताया और उस मूर्ति के पूर्व दिशा में मंदिर बनाने को कहा। उनको रिहा का भी वचन दिया। मुगलों ने अगली सुबह दोनों को जेल से रिहा कर दिया।

हालांकि, पहले दोनों काे छोड़ने के लिए 60 सिक्के मांगे थे। गांव में इतने सिक्के नहीं थे तो ग्रामीण कुछ प्रबंध कर गोहाना जा रहे थे तो दोनों हिसार के पास पैदल आते मिले। गांव में आते ही दोनों ने हींस के पेड़ के नीचे से बर्बरीक की धड़ की मूर्ति निकाली और उन पैसों से कच्ची ईंटों का छोटा सा मंदिर बनाया। उन दिनों हिसार का नाम फिरोजशाह होता था।

खाटू धाम में मंदिर नया बनाने से 13 साल पहले बना था मंदिर

1720 ईसवीं में खाटू धाम में श्याम बाबा का मंदिर दोबारा से बनाया था। इससे पहले औरंगजेब ने मंदिर को तुड़वा दिया था। बर्बरीक का सिर खाटू धाम में मिला था। कौरव-पांडव युद्ध के बाद शीश व धड़ को अलग-अलग नदियों में फेंक दिया था। पानी में बहती हुई धड़ व सिर अलग-अलग जगह पर मिले।

बीड़ बबरान से भी गहरा नाता

स्याहड़वा गांव से अशोक कुमार ने बताया कि बर्बरीक ने बीड़ गांव में बरगद के पेड़ के नीचे एक रात गुजारी थी। उस समय घना जंगल था और बर्बरीक एक घोड़ा व धनुष हाथ में लिए था। इसकी भनक गुप्तचरों से भगवानी श्री कृष्ण को लगी और पानीपत के चुलकाना में बरगद के पेड़ के नीचे पंडित के भेष में मिले। उसी दौरान बर्बरीक ने शीश दान किया था। बीड़ गांव का नाम बीड़ बबरान पड़ा और आज भी पेड़ के हर पत्तों में सुराग है।

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