Move to Jagran APP

मथुरा के पेड़ों को भी टक्‍कर दे रहा हरियाणा में हांसी के पेड़ों का 150 साल पुराना जायका

पेड़ों के कारोबार को दुनीचंद की चौथी पुश्त लोगों की जुबान पर मिठाइयों के लजीज स्वाद को परोस रही है। दुनीचंद छबीलदास का परिवार जहां पिछले 150 सालों से शुद्ध दूध से बनने वाले पेड़ों के काम से जुड़े हैं

By Manoj KumarEdited By: Updated: Sun, 19 Jun 2022 03:21 PM (IST)
Hero Image
हांसी के लजीज पेड़ों के सरताज दुनीचंद छबीलदास, गंगू जलेबियों का स्वाद है सबसे जुदा

प्रदीप दुहन, हांसीः हांसी के दुनीचंद के मशहूर दानेदार पेड़े व गंगू की गोल-गोल जलेबी के स्वाद की महक दूर-दूर बिखरी हुई है। पेड़ों के कारोबार को दुनीचंद की चौथी पुश्त व जलेबी के स्वाद के कारवां को गंगू की दूसरी पीढ़ी आगे बढ़ते हुए लोगों की जुबान पर मिठाइयों के लजीज स्वाद को परोस रही है। दुनीचंद छबीलदास का परिवार जहां पिछले 150 सालों से शुद्ध दूध से बनने वाले पेड़ों के काम से जुड़े हैं तो वहीं गंगू हलवाई का परिवार भी आजादी के पूर्व से ही जलेबी बनाने के काम में लगा हुआ है।

हांसी के मावे से बने सफेद दानेदार पेड़ों के लजीज स्वाद के आगे मथुरा के पेड़े का स्वाद भी फीका पड़ जाता है।  पेड़ों की सबसे बड़ी खासियत से है कि इन्हें भट्टी के ऊपर कारीगरों द्वारा कई घंटे तक दूध को तपाकर तैयार किया जाता है। करीब डेढ़ सौ वर्ष पूर्व हलवाईयों वाली गली में एक छोटी सी दुकान से हांसी के पेड़ों का सफर शुरु हुआ था, जो अपने स्वाद व क्वालिटी के बलबूते अब बड़ी दुकान तक पहुंच गया है। अन्य प्रदेशों से आने वाले लोग पेड़ों का स्वाद चखे बगैर नहीं जाते हैं।

दुनीचंद के पेड़ों का स्वाद ऐसा है कि दीपावली से एक दिन पहले ही दोनों की दुकानों से पेड़े बिक जाते हैं। पूरे देश में हांसी के पेड़ों की क्वालिटी का मुकाबला अब तक कोई नहीं कर पाया है। दुनीचंद के पेड़ों का स्वाद चखने वालों में कई मशहूर हस्तियां शामिल हैं। पूर्व राष्ट्रपति स्व. अब्दुल कलाम, पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के कप्तान रहे इंजमाम उल हक से लेकर योग गुरु रामदेव तक दुनीचंद के पेड़ों की तारीफ कर चुके हैं।

गंगू की गोल-गोल जलेबियों के स्वाद में गुम हो जाते हैं लोग

भारतीय मिठाइयों के फेहरिस्त में जलेबी का अपना अलग ही महत्व है। जलेबी पर अनेक गीत भी बन चुके हैं और ये मिठाई लोक संस्कृति में अपने लाजवाब स्वाद के अलावा गोल-गोल स्वरूप के कारण भी प्रसिद्ध है। शहर के सदर बाजार में गंगू हलवाई की तीसरी पीढ़ी जलेबियों के कारोबार को आगे बढ़ा रही है। करीब 70 साल पूर्व आजादी से पहले गंगू हलवाई ने सदर बाजार में जलेबियां बनाने की शुरुआत की थी। वर्तमान में उनके बेटे अजय व कमल इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं। गंगू की जलेबियों का स्वाद ऐसा है कि पूरा दिन जलेबी के दीवानों की लंबी लाइन दुकान के आगे लगी रहती है। त्यौहार वाले दिन तो जलेबियों को लेकर ग्राहकों लंबी लाइन में लगकर मिठाई खरीदते हैं।

केवल शुद्ध दूध व चीनी का कमाल है पेड़ा

पेड़ों को बनाने के लिए शुद्ध दूध को लोहे के कढाई में जमकर उबाला जाता है। दूध जब मावे बन जाता है तो उसे ठंडा करके चीनी मिलाई जाती है। इसके बाद कारीगर ऐसे कमाल करते हैं जिससे पेड़े दानेदार बन जाते हैं। शहर में कुछ कारीगर सालों से शहर में पेड़े बनाने के काम में लगे हुए हैं। इन पेड़ों की खासियत से है कि शुद्ध दूध के बगैर इनका निर्माण नहीं हो सकता है। पेड़ों को ऊपर स्वाद व खूबसूरती बढ़ाने के लिए पिस्ता सजाया जाता है। इससे पेड़ों में पिस्ता की लाजवाब महक घुल जाती है।

दो मिनट बस रुकवाकर सवारियां खरीदती है पेड़े

बस स्टैंड पर पेड़ों की दीवानी सवारियां बस रुकते ही कंडक्टर व ड्राइवर को दो मिनट अतिरिक्त बस रोकने के लिए कहते हैं और दुनीचंद की दुकान पर पेड़े खरीदने पहुंच जाते हैं। अन्य प्रदेशों से आने वाले यात्रियों में पेड़े खरीदने को लेकर सबसे अधिक क्रेज दिखता है। बस स्टैंड के सामने पेड़ों की दुकान पर रखे पेड़े दिखते ही हर किसी का पेड़े का स्वाद चखने का मन करने लगता है। राजेंद्र सैनी बताते हैं कि हमारे पूर्वज राम स्वरूप सैनी ने पेड़ों को बनाने की शुरूआत की थी। इसके बाद सूरजभान जी ने आगे बढ़ाया और अब राजेंद्र और रवि सैनी इस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।

दीपावली से पहले ही बिक जाते हैं पेड़े

वर्तमान में दोनों ही परिवारों की शहर में चार दुकानें हैं। दुनीचंद के नाम से शहर में दो दुकानें है। सबसे पुरानी दुकान हलवाईयों वाली गली में है व दूसरी बस स्टैंड के बिल्कुल सामने। अक्सर दीपावली से एक दिन पूर्व ही दोनों दुकानों पर पेड़े खत्म हो जाते हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि दुनीचंद के पेड़ों के स्वाद के लोग किस कदर दीवाने हैं।  

पेड़ों की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं ये सोचकर होता है गर्व  हमारे दादा लाला दुनीचंद ने पेड़े बनाने के काम की शुरुआत की थी। इसके बाद छबीलदास व बलवंत मित्तल और मेरे पिता जी इश्वर मित्तल ने इसे आगे बढ़ाया। अब मैं और मेरे भाई पेड़ों के स्वाद की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। पेड़ों की इस विरासत को आगे बढ़ाना हमारे परिवार के लिये गर्व की बात है।

– सुनील दत्त मित्तल, लाला दुनीचंद पेड़े वाले

लोकल न्यूज़ का भरोसेमंद साथी!जागरण लोकल ऐपडाउनलोड करें