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पति बिना ही दुल्‍हन की तरह सजीं, फिर हमेशा के लिए छोड़ दिया माता-पिता का साथ

करीब एक सप्‍ताह से शादी की भांति ही सारी रस्‍में भ्‍ाी अदा की जा रही थी। नाचना गाना और सभी तरह के पकवान भी तैयार किए गए। फिर दुल्‍हन के जोड़े की जगह युवतियों ने सफेद साड़ी ग्रहण की

By manoj kumarEdited By: Updated: Sun, 10 Feb 2019 02:17 PM (IST)
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पति बिना ही दुल्‍हन की तरह सजीं, फिर हमेशा के लिए छोड़ दिया माता-पिता का साथ

नारनौंद/हिसार [सुनील मान] इंसान ताउम्र खान-पान के स्‍वाद ऐशाे-आराम और प्रसिद्धि पाने की जुगत में लगा रहता है। मगर सोचिए जिस उम्र में अरमानों का सैलाब होता है, उसी उम्र में कोई सब कुछ छोड़ कर बेरंग दुनिया में शामिल हो जाए तो क्‍या हो। मगर ऐसा ही हिसार जिले के एक गांव में हुआ है। जहां चार बेटियों ने जैन धर्म अपना पूरा जीवन साध्‍वी बन जीने का संकल्‍प लिया है। मगर यह सब एक निश्‍चित प्रक्रिया के तहत ही हुआ है, सांसारिक सुख त्‍यागने से युवतियों को दुल्‍हन की तरह सजाया गया और फिर एक-एक करके सभी तरह के श्रृंगार को त्‍याग कर युवतियों ने दीक्षा ग्रहण कर ली।

रविवार को माजरा गांव में आयोजित कार्यक्रम में यह सारा विधि विधान युवतियों के परिवार वालों की मौजूदगी में ही किया गया। इससे पहले करीब एक सप्‍ताह से शादी की भांति ही सारी रस्‍में भ्‍ाी अदा की जा रही थी। नाचना गाना और सभी तरह के पकवान भी तैयार किए गए। मगर रविवार से दुल्‍हन के जोड़े की जगह सफेद साड़ी युवतियों ने ग्रहण कर ली। वहीं माता पिता का कहना है कि उन्हें अपनी बेटियों पर गर्व है।

जैन धर्म के अनुयायियों से प्रभावित हो सुनैना ने किया फैसला
खेड़ी जालब के किसान के घर में पैदा हुई 18 वर्षीय सुनैना गांव के ही सरकारी स्कूल में दसवीं कक्षा तक की शिक्षा ग्रहण की है। गांव में जब भी जैन धर्म के अनुयायी आते थे वो उनसे काफी प्रभावित होती थी और उनकी सेवा में जुट जाती थी। सुनैना के पिता वीरेंद्र ने बताया कि वो काफी प्रभावित है कि उनकी बेटी ने सुख सुविधाओं को छोड़कर जैन धर्म में सेवा करने का जो कदम उठाया है, उससे पूरे परिवार में खुशी है।


दीक्षा ग्रहण करने के दौरान अपने अभिभावकों से आशीर्वाद लेते हुए साध्‍वी

विदिता के पिता बोले-बेटी की जिद ने हमें भी पिघला दिया
खेड़ी जालब निवासी विदिता के पिता बारू राम किसान हैं। गांव के सरकारी स्कूल से दसवीं पास विदिता का मन इस रंगीली दुनिया से भंग हो गया। गांव में जैन धर्म का स्थानक होने के कारण वो अकसर वहां पर जाकर धर्म मुनियों के प्रवचन सुनती थी और उन्हीं से प्रभावित होकर जैन धर्म अपनाने का निर्णय लिया। बारू राम ने बताया कि उसे समझाया लेकिन वो नहीं मानी। कहने लगी कि पूरी ङ्क्षजदगी विवाह नहीं करूंगी और घर पर ही रहकर अपनी साधना करूंगी। बेटी की इस जिद ने हमें भी पिघला दिया और हमारा पूरा परिवार आज जैन धर्म के प्रति समर्पित है।

जैन गुरु के प्रवचन सुनने जाती थी कुुसुम
खेड़ी जालब निवासी कुसुम भी किसान परिवार से संबंध रखती हैं। उनके पिता रामहेर खेती से अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं। कुसुम ने गांव के सरकारी स्कूल से दसवीं कक्षा पास की। जैन धर्म के जब भी कोई गुरु गांव में आते तो वो उनके प्रवचन सुनने जाती। वो काफी प्रभावित हुई और मन में संकल्प लिया कि वो इस मोह माया के जंजाल को छोड़कर जैन धर्म अपनाकर समाज सेवा करेगी।

दिल्ली के बड़े व्यापारी की बेटी है समता
दिल्ली निवासी समता जैन के पिता अशोक एक बड़े व्यापारी हैं। समता ने बीए तक की पढ़ाई की और उसने भी जैन धर्म को अपनाकर पूरी जिंदगी समाज सेवा करने का रास्ता चुना।


जैन धर्म की दीक्षा ग्रहण करने के बाद चार हिंदू युवतियां

इस तरह से दी जाती है दीक्षा, इतना कष्‍टदायी होती है प्रक्रिया
दीक्षा देने के दौरान पूरा समाज, रिश्तेदार और वरिष्टजनों के साथ मिलकर एक समारोह आयोजित होता है। इस दीक्षा समारोह में लड़के साधु और लड़कियां साध्वी बन जाती हैं। यह समारोह ठीक वैसा ही होता है, जैसे कोई शादी का आयोजन। यानि दीक्षा लड़के लें चाहें लड़कियां वे सांसारिक जीवन और मोह त्यागने के पहले हंसी खुशी से विदा होती हैं। दीक्षा लेने से पहले ठीक शादी की रस्मों की तरह उन्हें हल्दी लगती है, फिर मेंहदी लगाई जाती है। मंडप सजता है जहां लड़कियां सज-धज कर दुल्हन की तरह तैयार होती हैं और लड़के भी आखिरी बार सबसे ज्यादा अच्छे वस्त्र धारण करते हैं। फिर घर से समारोह स्थल तक गाजे-बाजे के साथ बारात निकालती हैं। परिवार के लोग बेटी या बेटे को आखिरी विदाई देते हैं।

समारोह स्थल पर जैन अनुयायी, धर्मावलंबी और मुनि आदि उपस्थित रहते हैं। जिनके मंत्रोचार के बीच दीक्षा आसान पर व्यक्ति को बिठाया जाता है। वहां वह एक-एक करके अपने साजो-श्रंगार उतार देता है। पुरूष वस्त्र त्याग देते हैं। जबकि, स्त्रियां हाथ की बुनी हुई सफेद सूती साड़ी लपेट लेती हैं। गुरूओं से दीक्षा ली जाती है और फिर परिवार की ओर मुड़कर नहीं देखते। दीक्षा का सबसे कठिन और अहम पड़ाव 'केश लोचन' होता है यानि बिना किसी कैंची या रेजर की मदद से स्वयं अपने सिर के बालों को नोच कर अलग किया जाता है। यह प्रक्रिया सबसे पीड़ादायक होती है।

कई बार तो सिर में जख्म हो जाते हैं पर बाल निकालने का क्रम जारी रहता है। दीक्षा के बाद सभी मुनि और साध्वी साल में दो बार केश लोचन करती हैं। पुरूष अपनी दाढ़ी-मूंछों के बाल भी इसी प्रकार त्यागते हैं। केश लोचन के पहले साधु-साध्वी शरीर को राख से रगड़ते हैं। फिर गुच्छों में शरीर के बालों का लोचन करते हैं।

नियमों ऐसे की पालन करना बेहद मुश्किल
दीक्षा ग्रहण करने के बाद जीवन की असल चुनौतियों से सामना होता है। सूर्यास्त के बाद जैन साधु और साध्वियां पानी की एक बूंद और अन्न का एक दाना भी नहीं खाते हैं। इसी तरह सूर्योदय होने के बाद भी ये लोग करीब 48 मिनट बाद पानी पीते हैं। वे अपने लिए कभी भोजन नहीं पकाते हैं ना ही उनके लिए आश्रम में कोई भोजन बनाता है। ये सभी अपने लिए भीक्षा मांगकर भोजन का इंतजाम करते हैं। भीक्षा का भी अपना नियम है इस प्रथा को 'गोचरी' कहा जाता है। जैन मुनियों को एक घर से बहुत सारा भोजन लेने की अनुमति नहीं होती है वे स्वाद के लिए भोजन नहीं करते हैं, बल्कि धर्म साधना के लिए भोजन करते हैं।

जैन साधु जब आहार (भोजन) के लिए निकलते हैं, तो उसका नियम पालन करते हैं। पडग़ाहन में श्रद्धालुओं द्वारा शब्दों का उच्चारण किया जाता है। भोजन दान देने से पहले श्रद्धालु मुनि को  नारियल, कलश, लौंग के दर्शन कराते हैं। इसके बाद भोजन दान देते हैं यदि यह चीजें नहीं हैं तो ​मुनि बिना भीक्षा के ही चले जाते हैं। साधु एक ही स्थान पर खड़े होकर दोनों हाथों को मिलाकर अंजुली बनाते हैं। उसी में भोजन करते हैं यदि अंजुली में भोजन के साथ चींटी, बाल, कोई अपवित्र पदार्थ या अन्य कोई जीव आ जाए तो उसी समय भोजन लेना बंद कर देते हैं। अपने हाथ छोड़ देते हैं। उसके बाद पानी भी नहीं पीते है।

जैन मुनि किसी भी प्रकार की गाड़ी या यात्रा के साधन का प्रयोग नहीं करते हैं। वे मीलों का सफर भी पैदल ही पूरा करते हैं। यह यात्रा बिना जूते और चप्पल के होती है। इसके साथ ही किसी भी एक स्थान पर उन्हें अधिक दिनों तक रुकने की अनुमति नहीं होती। बारिश के 4 माह मुनि और सा​ध्वी कहीं यात्रा नहीं करते। इसके पीछे तर्क यह है कि इस दौरान कई बारीक जीव जंतु पैरों में आ सकते हैं और इससे जीव हत्या का पाप लगता है।

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