हरियाणा को मिल सकता है SYL का पानी, SC के हस्तक्षेप से जगी आस; मान सरकार का रुख अब भी नकारात्मक
सतलुज यमुना लिंक यानी एसवाईएल नहर निर्माण के मुद्दे पर हरियाणा की भाजपा सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में लगातार की गई मजबूत पैरवी का ही असर है कि अब हरियाणा को उसके हिस्से का पानी मिलने की आस बढ़ गई है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप कर केंद्र सरकार को निर्देश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि एसवाईएल का निर्माण होना चाहिए।
By Jagran NewsEdited By: Preeti GuptaUpdated: Thu, 05 Oct 2023 11:07 AM (IST)
अनुराग अग्रवाल, चंडीगढ़। Haryana SYL water Issue: सतलुज यमुना लिंक यानी एसवाईएल नहर निर्माण के मुद्दे पर हरियाणा की भाजपा सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में लगातार की गई मजबूत पैरवी का ही असर है कि अब हरियाणा को उसके हिस्से का पानी मिलने की आस बढ़ गई है।
मुख्यमंत्री मनोहर लाल के नेतृत्व वाली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसवाईएल के पानी के लिए लगातार दमदार पैरवी की। स्वयं मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने केंद्रीय जल संसाधन मंत्री के साथ उच्च स्तरीय और केंद्रीय गृह मंत्री के साथ हुई उत्तर क्षेत्रीय परिषद की बैठकों में हरियाणा को पानी नहीं देने के पंजाब के रुख को प्रभावशाली ढंग से उठाया।
सीएम मान पानी देने को नहीं हुए तैयार
हरियाणा ने बार-बार कहा कि वह पंजाब से कोई खैरात नहीं, बल्कि अपने हिस्से का पानी मांग रहा है। पानी की मात्रा घटना और बढ़ना अलग विषय है, लेकिन पंजाब को ना केवल अपने हिस्से की नहर का निर्माण कराना चाहिए, बल्कि हरियाणा को उसके हिस्से का पानी भी देना चाहिए।हरियाणा सरकार के अधिवक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान पंजाब के रुख की बार-बार जानकारी दी। इस मुद्दे पर दो से तीन बार हरियाणा और पंजाब के मुख्यमंत्रियों की बैठक हो चुकी, मगर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान हरियाणा को उससे हिस्से का पानी देने को तैयार नहीं हुए।
एसवाईएल का होना चाहिए निर्माण -सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट में हरियाणा सरकार की ओर से इन तथ्यों को रिकॉर्ड पर रखा गया। केंद्रीय जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत द्वारा दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ दिल्ली में की गई मीटिंग की भी सुप्रीम कोर्ट में जानकारी रखी गई।सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि एसवाईएल का निर्माण होना चाहिए लेकिन पंजाब के मुख्यमंत्री और अधिकारी इस विषय को एजेंडे पर ही लाने को तैयार नहीं होते। वे पानी नहीं होने व पानी के बंटवारे की बात कहते हैं, जबकि पानी बंटवारे के लिए अलग से ट्रिब्यूनल बनाया गया है।
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