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Haryana day special : इन पांच संस्थानों की सफलता ने बदल दी हरियाणा की तकदीर

ये पांच संस्थान भी किसी रणनीति से अधिक हमारे प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के हरियाणवी तेवर काम करने का जुनून और अगली पंक्ति में रहने की सोच की देन है।

By Manoj KumarEdited By: Updated: Fri, 01 Nov 2019 01:41 PM (IST)
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Haryana day special : इन पांच संस्थानों की सफलता ने बदल दी हरियाणा की तकदीर
हिसार [श्याम नंदन कुमार] देश आजाद होने के 19 साल बाद अस्तित्व में आए हरियाणा के विकास का श्रेय प्रदेश के तीन लालों के अलावा उन पांच संस्थानों को भी जाता है, जिन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, उद्योग और खेल जगत में हरियाणा को पहली पंक्ति में खड़ा कर दिया है। शिक्षा के क्षेत्र में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय का गठन, प्रदेश में कृषि क्रांति लाने वाला हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, उद्योग जगत में प्रदेश को अंग्रिम पंक्ति में खड़ा करने वाला मारुति कंपनी, स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाला रोहतक का पीजीआइ और खेल विश्वविद्यालय राई की सफलता ने हमें न सिर्फ पिछड़ेपन से बाहर निकाला अपितु हमारी गिनती विकसित प्रदेशों में होने लगी। ये पांच संस्थान भी किसी रणनीति से अधिक हमारे प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के  हरियाणवी तेवर, काम करने का जुनून और अगली पंक्ति में रहने की सोच की देन है।

दीक्षांत समारोह की नाराजगी पर बंसी लाल ने पंजाब से हटा लिए सारे कॉलेज और बन गया केयूके

बात दिसंबर 1973 की है। हरियाणा बनने के बाद भी प्रदेश के कॉलेज पंजाब यूनिवर्सिटी से जुड़े हुए थे। पंजाब यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में पंजाब के मुख्यमंत्री के अलावा हरियाणा के मुख्यमंत्री भी पहुंचे थे। यहां पंजाब के मुख्यमंत्री तो स्टेज पर थे लेकिन हरियाणा के मुख्यमंत्री को सामने पहली पंक्ति में जगह मिली थी। यहां से नाराज होकर बंसीलाल सीधे सचिवालय पहुंचे और अफसरों से पंजाब यूनिवर्सिटी से संबंधित फाइलें तलब कर ली। खूब मंथन हुआ और फैसला हुआ कि पंजाब यूनिवर्सिटी से सारे कॉलेज जल्द से जल्द हटाए जाएं। कुरुक्षेत्र में 1957 में एक यूनिवर्सिटी बन गई थी। तब संस्कृत यूनिवर्सिटी के रूप में इसे जाना जाता था। 1961 में मल्टी फैक्ल्टी यूनिवर्सिटी बनी, लेकिन हरियाणा के कॉलेज पंजाब यूनिवर्सिटी से ही जुड़े थे पर ऐसा अब अधिक दिनों तक कहां चलने वाला था। 30 जून 1974 को नोटिफिकेशन आ गया कि हरियाणा के सभी कॉलेज अब कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन होंगे।

तीन साल में ही एशिया का बेस्ट कैंपस बन गया एचएयू

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, जिसने खेती के स्वरूप को ही बदल दिया, का भी रोचक किस्सा है। 2 फरवरी 1970 से पहले एचएयू पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी का कैंपस थी। इसी कैंपस में 1948 में वेटनरी कॉलेज बना। हरियाणा में बंसी लाल मुख्यमंत्री बन चुके थे उन्होंने एचएयू को खड़ा किया और सबसे पहले कुलपति के तौर पर एएल फ्लैचर, जो रिटायर्ड आइसीएस अधिकारी थे, को जिम्मेवारी दी। एचएयू जो इतना खूबसूरत बना, वो सब एएल फ्लैचर की ही सोच की देन है। तीन साल में मुख्य कैंपस खड़ा कर दिया, जिसे एशिया का सबसे सुंदर कृषि विश्वविद्यालय कैंपस माना गया। फ्लैचर की दूरदर्शिता का आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि 1970 में एचएयू में स्वीमिंग पुल बना दिया गया था, जब यहां स्वीमिंग पुल जैसी संस्कृति नहीं थी। शोध के मामले में एचएयू का कोई सानी नहीं रहा। समय-समय पर आई सरकारों ने एचएयू को खूब पोषित पल्लवित किया।

अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक डा. कुलदीप सिंह ढींडसा बताते हैं कि घटना का वृत्तांत 1970 का ही है। मूल रूप से केरल के रहने वाले एएल फ्लैचर ने शाहाबाद के पास खरैंदवा गांव में फार्म हाउस बना लिया था। बंसी लाल उन्हें एचएयू की कमान सौंपना चाहते थे, इसलिए करनाल के तत्कालीन डीसी को उन्हें व्यक्तिगत रूप से पहुंचकर संदेश देने को कहा गया। करनाल के तत्कालीन डीसी गांव में गए, लेकिन जब डीसी की गाड़ी उनके नजदीक पहुंची तो वे छत पर थे। नाराज होकर उन्होंने डीसी से मिलने से मना कर दिया। उसी दिन दूसरी बार उपायुक्त उनसे मिले, अबकि मुलाकात शिष्टाचार की थी, जिसमें बताया गया कि चौधरी बंसीलाल उनसे चंडीगढ़ में मुलाकात करना चाहते है, जिस पर वे सहमत हो गए।

इंदिरा और संजय गांधी के प्रति बंसीलाल की वफादारी की देन है मारुति कंपनी

इंदिरा गांधी और संजय गांधी के प्रति बंसी लाल वफादार थे। हरियाणा में मारुति फैक्टरी को जमीन दिलवाने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसका बाद में उन्हें राजनीतिक फायदा भी मिला। कूमी कपूर अपनी किताब, द इमरजेंसी- अ पर्सनल हिस्ट्री में लिखती हैं, बंसी लाल ने अपने वरिष्ठ अफसरों को हुक्म दिया कि वो दिल्ली जाकर संजय गाँधी को मारुति फैक्टरी के लिए जमीन दिलवाने में मदद करें। शर्त ये थी कि जमीन दिल्ली के पास होनी चाहिए। मारुति के लिए जिस जमीन को चुना गया वो खेती योग्य उपजाऊ जमीन थी। वहां से हथियारों का एक डिपो और एक हवाई पट्टी एक हजार गज से भी ज्यादा दूर नहीं थी।

उन्होंने संजय गांधी को 290 एकड़ जमीन का कब्जा दिलवाया। मारुति को जमीन दस हजार रुपये एकड़ के हिसाब से बेची गई, जबकि बगल वाली जमीनों का दाम पैंतीस हजार रुपये एकड़ था। हालांकि मारुति के हरियाणा में आने से हरियाणा खासकर गुरुग्राम औद्योगिक हब बन गया। इससे जहां काफी लोगों को रोजगार मिला, वहीं मारुति की सहयोगी कंपनियों के खुलने से काफी होटल समेत अन्य आनुसांगिक कारोबार भी बढ़े। फिलहाल प्रदेश सरकार से समझौते के आधार पर मारुति कंपनी हरियाणा के युवाओं को स्किल ट्रेनिंग भी प्रदान कर रही है, जो हमारे युवाओं के भविष्य निर्माण में सहायक साबित हो रहा है।

पीजीआइ ने सुधारी प्रदेश की सेहत

रोहतक में पीजीआइ की स्थापना के बाद स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव आया। 1967 से पहले यहां बीमार होने की स्थिति में भगवान का ही भरोसा था, क्योंकि तब यहां के लोगों को गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए पीजीआइ चंडीगढ़ या फिर दिल्ली जाना पड़ता था जो सबके बस की बात नहीं थी। गरीब तो इलाज के अभाव में दम तक तोड़ जाते थे। पंजाब में पटियाला, अमृतसर और लुधियाना में मेडिकल कॉलेज थे। हरियाणा क्षेत्र में कोई मेडिकल कॉलेज नहीं था। रोहतक पीजीआइ से रिटायर्ड वरिष्ठ शल्य चिकित्सक डा. आरएस दहिया बताते हैं कि 1961 में पटियाला में रोहतक मेडिकल कॉलेज के नाम पर दाखिले शुरू हो गए थे लेकिन 1963 से यहां नियमित दाखिला होने लगा।

वरिष्ठता के आधार पर डा. दीवान रोहतक मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल बनाए गए। उस समय यहां सर्जरी के डा. वरयाम सिंह, डा. जीएस शेखों, मेडिसिन के डा. सी प्रकाश, डा. एनपी वेक्टर, पिडियाट्रिक के डा. हीरालाल गुप्ता , साइक्रिएट्री के डा. विद्यासागर सरीखे चिकित्सक थे, जिनका देश में बड़ा नाम था। उनके प्रयास से मेडिकल कॉलेज और बाद में पीजीआइ रोहतक काफी पल्लवित, पुष्पित हुआ। पीजीआइ रोहतक की चर्चा पूरे देश में होने लगी। डा. दहिया बताते हैं कि पीजीआइ बनने के बाद यहां के लोगों को एक तरह से जीवन का वरदान मिल गया। जो लोग निराशा में अपने परिजनों को मरने के लिए छोड़ देते थे, इलाज कराने लगे। हालांकि काम की अधिकता और मानव संसाधन की कमी के कारण पीजीआइ की कार्यक्षमता जरूर प्रभावित हुई है लेकिन हर साल ओपीडी की संख्या में करीब दो लाख लोगों की बढ़ोतरी बताती है कि यह संस्थान हरियाणा के लिए किस कदर महत्वपूर्ण है।

खेल विश्वविद्यालय से और बढ़ेगा खेलों में हमारा धाक

कुश्ती, कबड्डी, बॉक्सिंग समेत अन्य खेलों में देश को सर्वाधिक खिलाड़ी देने वाले हरियाणा में राई खेल विश्वविद्यालय प्रगति के नए आयाम स्थापित करने वाला साबित हो सकता है। जुलाई 1973 में मोतीलाल नेहरू स्पोट्र्स स्कूल के नाम से सोनीपत जिले के राई में शुरू स्कूल ने देश को कई खिलाड़ी दिए हैं। अब राई खेल विश्वविद्यालय सफलता की इसी लकीर को बड़ी करेगी और उसे नए आयाम तक पहुंचाएगी। 2018 में मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने इसकी घोषणा की थी जो अब कपिल देव के इस विश्वविद्यालय के कुलपति बनने के बाद अपने पूर्ण स्वरूप में आने की उम्मीद है। इससे राई जैसे अन्य खेल विद्यालय भी खुल सकेंगे जहां शुरू से ही बच्चों की खेल प्रतिभा को पहचान कर उसे तराशा जा सकेगा ताकि युवा होने पर देश को दक्ष खिलाड़ी मिल सके।

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