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दुष्यंत को ही नहीं भाजपा को भी उनके पिता अजय चौटाला की रिहाई का इंतजार

Haryana Politics यदि दुष्यंत विपक्ष में बैठने का फैसला करते तो भाजपा के रणनीतिकार निर्दलीयों के बल पर सरकार तो बना ही लेते जजपा में भी तोड़फोड़ करने से बाज नहीं आते। सो दुष्यंत उप मुख्यमंत्री बन गए।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Wed, 07 Jul 2021 09:25 AM (IST)
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बस इंतजार अजय चौटाला के बाहर आने का है।
जगदीश त्रिपाठी, हिसार। प्रदेश के पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके चौधरी ओमप्रकाश चौटाला शिक्षक भर्ती प्रकरण में सजा पूरी कर आ चुके हैं। अब वह राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाएंगे। इससे हरियाणा की राजनीति देश भर में टाकिंग प्वाइंट बन गई हैं। चौटाला के राजनीति में सक्रिय होने से उनके छोटे पुत्र अभय चौटाला और और उनका दल इंडियन नेशनल लोकदल मजबूत होंगे।

चौटाला सबसे अधिक नुकसान कांग्रेस नेता पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को पहुंचाएंगे। यह भाजपा के लिए फायदेमंद होगा, लेकिन चौटाला की सक्रियता से सबसे अधिक नुकसान उनके अपने ही पौत्र दुष्यंत चौटाला और उनके दल जननायक जनता पार्टी को होगा, ऐसा लोगों का अनुमान है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि दुष्यंत और उनकी पार्टी का जनाधार एकदम दरक जाएगा, क्योंकि छह सात महीने बाद दुष्यंत के पिता अजय चौटाला भी सजा पूरी कर आ जाएंगे और अपने पुत्र को मजबूत करने का हरसंभव प्रयास करेंगे।

सो दुष्यंत को तो उनके आने का इंतजार है ही, भाजपा को भी है. क्योंकि दुष्यंत जितना मजबूत होंगे, चौटाला और हुड्डा उतने ही कमजोर होंगे। निश्चित रूप से ओमप्रकाश चौटाला जाट मतदाताओं पर प्रभावी पकड़ रखते हैं, लेकिन अजय चौटाला के संबंध-संपर्क जाट समुदाय में कम नहीं है। अजय के समर्थक गैर जाट समुदाय में भी हैं। वास्तव में जब तक ओमप्रकाश चौटाला मुख्यमंत्री रहे। इनेलो का नेतृत्व उनके हाथ में रहा, तब तक संगठन का सारा काम अजय ही करते रहे। उनमें लोगों को जोड़ने की जबरदस्त कला है।

प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पंडित भगवतदयाल शर्मा के पुत्र स्वर्गीय राजेश शर्मा उनके आत्मीय व्यवहार के कारण इनेलो से जुड़े। दुर्भाग्यवश उनका निधन हो गया। उन्होंने मृत्यु से पहले अजय चौटाला को मैसेज किया था-आप जैसे प्यारे इन्सान दुनिया में बहुत कम हैं। इस घटना का उल्लेख केवल इसलिए कि ओमप्रकाश चौटाला की वापसी से भले ही दो चार पुराने लोग जो अन्य दलों में चले गए हैं, वापस आ जाएं, लेकिन अजय जब सक्रिय राजनीति में फिर से एंट्री करेंगे तो बहुत से मजबूत नेता जजपा का दामन थाम सकते हैं। फिर अजय की जो मोहक भाषण कला है, उसका लाभ भी जजपा को मिलेगा।

यद्यपि भाजपा को समर्थन देकर उसकी सरकार बनवाने के बाद दुष्यंत और उनके छोटे भाई दिग्विजय से उनके अपने जाट समुदाय के बहुत से युवा खफा हैं, इससे उनकी लोकप्रियता कम जरूर हुई है, लेकिन खत्म नहीं हुई है। हिसार से सांसद चुने जाने के बाद 26 वर्षीय दुष्यंत ने जबरदस्त सक्रियता दिखाई और उन्हें युवा रोल माडल मानने लगे। इसमें दुष्यंत की अपनी छवि और श्रम तो था ही, उनके छोटे भाई दिग्विजय की रणनीति भी थी, जो छात्रों के बीच कर रहे थे और छात्रों में जितनी उनकी लोकप्रियता थी, उतनी लोकप्रियता हरियाणा में कभी भी किसी छात्र नेता की नहीं रही। परिवारिक कलह के बाद जब दोनों भाई अपने चाचा अभय चौटाला से अलग हुए तो चौधरी ओमप्रकाश चौटाला ने अभय का पक्ष लिया तो अजय ने अपने बेटों को अलग कर नई पार्टी जननायक जनता पार्टी सौंप दी। दोनों भाइयों ने अपने बल पर जजपा को खड़ा किया।

विधानसभा चुनावों में जजपा को दस सीटें भी मिल गईं, जबकि इनेलो से एकमात्र सीट अभय चौटाला ही निकाल पाए। लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद दुष्यंत के सामने धर्मसंकट हो गया। वह कांग्रेस का सपोर्ट कर हुड्डा की सरकार बनवा दें। विपक्ष में बैठें या भाजपा को समर्थन देकर सरकार में शामिल हों। दुष्यंत को पता था कि अपने समुदाय का मुख्यमंत्री बनाने का सपना संजोने वाले उनके समुदाय के अधिकतर लोग उनके भाजपा से गठबंधन करने से नाराज हो जाएंगे। लेकिन उन्होंने अपने पिता की सलाह पर भाजपा से गठबंधन करने का फैसला लिया और दुष्यंत के भविष्य के लिए यही फैसला सर्वाधिक सुरक्षित था।

दुष्यंत यदि हुड्डा को सपोर्ट कर उनकी सरकार बनवा भी देते तो हुड्डा उनका भविष्य चौपट करने में कोई कसर नहीं छोड़ते, क्योंकि उन्हें अपने बेटे दीपेंद्र हुड्डा को हरियाणा की राजनीति में स्थापित करना है और उसके लिए वे सन 2005 से ही शिद्दत से जिद्दोजहद कर रहे हैं। दूसरी तरफ दुष्यंत ने पहली बार में ही कुलदीप विश्नोई जैसे दिग्गज को पराजित करते हुए लोकसभा में प्रवेश किया और अपने व्यक्तित्व के बल पर सदन में विशेष छवि बनाने में सफल रहे।

यदि दुष्यंत विपक्ष में बैठने का फैसला करते तो भाजपा के रणनीतिकार निर्दलीयों के बल पर सरकार तो बना ही लेते जजपा में भी तोड़फोड़ करने से बाज नहीं आते। सो, दुष्यंत उप मुख्यमंत्री बन गए। लेकिन इससे उनके जनाधार को जो क्षति पहुंची अब उसकी क्षतिपूर्ति कैसे हो, यह उनके लिए चिंता का विषय है, लेकिन जैसे हर पिता अपने पुत्र की चिंता को दूर करता है, वैसे ही उनके पिता भी उन्हें इस चिंता से मुक्त करेंगे और अपने करिश्माई व्यक्तित्व से जजपा का जनाधार वापस लाने में ही नहीं उसे बढ़ाने और मजबूत करने में भी सक्रिय भूमिका निभाएंगे, इसका दुष्यंत और दिग्विजय को विश्वास है। बस इंतजार उनके बाहर आने का है।

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