Lok Sabha Election 2024: एसवाईएल नहर निर्माण के लिए आज भी तरस रहे हरियाणावासी, डबल और ट्रिपल इंजन सरकार से भी नहीं मिला पानी
लोकसभा चुनाव आने वाले हैं ऐसे में हरियाणा के कई अहम मुद्दे जनता के सामने आएंगे। इसी में से एक मुद्दा है एसवाईएल का मामला। एसवाईएल नहर के लिए हरियाणा के लोग आज भी तरस रहे हैं। एसवाईएल का पानी आने से हरियाणा की 10.08 लाख एकड़ भूमि सिंचित होगी। दक्षिणी-हरियाणा में जो भूजल स्तर काफी नीचे जा रहा है उसमें भी सुधार होगा।
जागरण संवाददाता, हिसार। हरियाणा बनने के बाद से यहां के लोग एसवाईएल नहर के पानी के लिए तरस रहे हैं। कई मौके आए, जब हरियाणा और केंद्र में डबल इंजन की सरकारें रहीं। पंजाब, हरियाणा और केंद्र, तीनों जगहों पर एक ही दल की सरकारों ने राज किया लेकिन हरियाणा को उसका हक नहीं मिल सका। सुप्रीम कोर्ट का फैसला हरियाणा के पक्ष में आ चुका है। यह निवर्तमान मुख्यमंत्री मनोहर लाल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के प्रयासों का ही नतीजा है।
केंद्र की भाजपा सरकार भी नहर निर्माण को लेकर गंभीर है, लेकिन केंद्र व हरियाणा में दोनों स्थानों पर डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद हक नहीं मिल पाया है। कारण स्पष्ट है, पंजाब सरकार की हठधर्मिता। सुप्रीम कोर्ट में मजबूत पैरवी के चलते हरियाणा के हक में फैसला आ गया, लेकिन हरियाणा के सभी 10 सांसद और पांच राज्यसभा सदस्य यदि दबाव बनाते तो पंजाब पानी देने के लिए मजबूर हो गया होता। अब लोकसभा चुनाव हैं, अब जनता का दायित्व है कि वे उम्मीदवारों से पूछें कि पानी दिलाने के लिए गंभीर प्रयास क्यों नहीं किए। पढ़ें अनुराग अग्रवाल की रिपोर्ट...।
दक्षिण हरियाणा लिखेगा समृद्धि के नये अध्याय
नहर निर्माण से हरियाणा की 10.08 लाख एकड़ भूमि सिंचित होगी। दक्षिणी-हरियाणा में जो भूजल स्तर काफी नीचे जा रहा है, उसमें भी सुधार होगा। इसका पानी भिवाानी, दादरी, महेंद्रगढ़ और नारनौल तक पहुंचेगा। इससे यह पूरा इलाका समृद्धि के नये अध्याय लिख सकता है। पंजाब अपने क्षेत्र में एसवाईएल नहर का निर्माण कार्य पूरा न करके हरियाणा के हिस्से के लगभग 1.9 एमएएफ जल का उपयोग कर रहा है।एक बार केंद्र, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में थी कांग्रेस सरकारें
केंद्र ने 1976 में एक अधिसूचना जारी की थी कि पंजाब और हरियाणा दोनों को 3.5 मिलियन एकड़ फीट (एमएएफ) पानी मिलेगा, लेकिन पंजाब सहमत नहीं हुआ। 31 दिसंबर 1981 को हरियाणा, पंजाब और राजस्थान ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। तब कांग्रेस तीनों राज्यों में सत्ता में थी। जनवरी 1980 में आम चुनाव जीतकर कांग्रेस केंद्र की सत्ता में लौट आई थी।यह समझौता इस आंकलन पर आधारित था कि रावी और ब्यास जल की कुल उपलब्धता 17.17 एमएएफ अनुमानित है। समझौते में पंजाब के लिए 4.22 एमएएफ, हरियाणा के लिए 3.5 एमएएफ और राजस्थान के लिए 8.6 एमएएफ की परिकल्पना की गई थी। 1966 में पानी के बंटवारे का मामला अधर में लटका हुआ था।
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