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Lok Sabha Election 2024: एसवाईएल नहर निर्माण के लिए आज भी तरस रहे हरियाणावासी, डबल और ट्रिपल इंजन सरकार से भी नहीं मिला पानी

लोकसभा चुनाव आने वाले हैं ऐसे में हरियाणा के कई अहम मुद्दे जनता के सामने आएंगे। इसी में से एक मुद्दा है एसवाईएल का मामला। एसवाईएल नहर के लिए हरियाणा के लोग आज भी तरस रहे हैं। एसवाईएल का पानी आने से हरियाणा की 10.08 लाख एकड़ भूमि सिंचित होगी। दक्षिणी-हरियाणा में जो भूजल स्तर काफी नीचे जा रहा है उसमें भी सुधार होगा।

By Jagran News Edited By: Deepak Saxena Updated: Sat, 16 Mar 2024 12:54 PM (IST)
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एसवाईएल नहर निर्माण के लिए आज भी तरस रहे हरियाणावासी।

जागरण संवाददाता, हिसार। हरियाणा बनने के बाद से यहां के लोग एसवाईएल नहर के पानी के लिए तरस रहे हैं। कई मौके आए, जब हरियाणा और केंद्र में डबल इंजन की सरकारें रहीं। पंजाब, हरियाणा और केंद्र, तीनों जगहों पर एक ही दल की सरकारों ने राज किया लेकिन हरियाणा को उसका हक नहीं मिल सका। सुप्रीम कोर्ट का फैसला हरियाणा के पक्ष में आ चुका है। यह निवर्तमान मुख्यमंत्री मनोहर लाल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के प्रयासों का ही नतीजा है।

केंद्र की भाजपा सरकार भी नहर निर्माण को लेकर गंभीर है, लेकिन केंद्र व हरियाणा में दोनों स्थानों पर डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद हक नहीं मिल पाया है। कारण स्पष्ट है, पंजाब सरकार की हठधर्मिता। सुप्रीम कोर्ट में मजबूत पैरवी के चलते हरियाणा के हक में फैसला आ गया, लेकिन हरियाणा के सभी 10 सांसद और पांच राज्यसभा सदस्य यदि दबाव बनाते तो पंजाब पानी देने के लिए मजबूर हो गया होता। अब लोकसभा चुनाव हैं, अब जनता का दायित्व है कि वे उम्मीदवारों से पूछें कि पानी दिलाने के लिए गंभीर प्रयास क्यों नहीं किए। पढ़ें अनुराग अग्रवाल की रिपोर्ट...।

दक्षिण हरियाणा लिखेगा समृद्धि के नये अध्याय

नहर निर्माण से हरियाणा की 10.08 लाख एकड़ भूमि सिंचित होगी। दक्षिणी-हरियाणा में जो भूजल स्तर काफी नीचे जा रहा है, उसमें भी सुधार होगा। इसका पानी भिवाानी, दादरी, महेंद्रगढ़ और नारनौल तक पहुंचेगा। इससे यह पूरा इलाका समृद्धि के नये अध्याय लिख सकता है। पंजाब अपने क्षेत्र में एसवाईएल नहर का निर्माण कार्य पूरा न करके हरियाणा के हिस्से के लगभग 1.9 एमएएफ जल का उपयोग कर रहा है।

एक बार केंद्र, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में थी कांग्रेस सरकारें

केंद्र ने 1976 में एक अधिसूचना जारी की थी कि पंजाब और हरियाणा दोनों को 3.5 मिलियन एकड़ फीट (एमएएफ) पानी मिलेगा, लेकिन पंजाब सहमत नहीं हुआ। 31 दिसंबर 1981 को हरियाणा, पंजाब और राजस्थान ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। तब कांग्रेस तीनों राज्यों में सत्ता में थी। जनवरी 1980 में आम चुनाव जीतकर कांग्रेस केंद्र की सत्ता में लौट आई थी।

यह समझौता इस आंकलन पर आधारित था कि रावी और ब्यास जल की कुल उपलब्धता 17.17 एमएएफ अनुमानित है। समझौते में पंजाब के लिए 4.22 एमएएफ, हरियाणा के लिए 3.5 एमएएफ और राजस्थान के लिए 8.6 एमएएफ की परिकल्पना की गई थी। 1966 में पानी के बंटवारे का मामला अधर में लटका हुआ था।

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हरियाणा कर चुका अपने हिस्से की नहर का निर्माण

एसवाईएल नहर का कुल हिस्सा 211 किलोमीटर लंबा है, जिसका निर्माण होना है। 121 किलोमीटर हिस्सा पंजाब क्षेत्र में और 90 किलोमीटर हिस्सा हरियाणा में बनाया जाना था। हरियाणा अपने हिस्से की नहर बना चुका है, जबकि पंजाब कन्नी काटता चला आ रहा है। इराडी आयोग ने 1987 में रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें पंजाब और हरियाणा का पानी का हिस्सा बढ़ाकर पांच एमएएफ और 3.83 एमएएफ कर दिया गया। 1988 में उग्रवादियों ने कई मजदूरों की हत्या कर दी। जुलाई 1990 में सिंचाई विभाग के मुख्य अभियंता और अधीक्षण अभियंता की गोली मारकर हत्या कर दी गई, जिससे पंजाब में काम रुक गया। तब से यह निर्माण अटका पड़ा है।

पंजाब जान बूझकर अटकाता रहा नहर निर्माण में रोडे

1996 में जब हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 2002 में कोर्ट ने पंजाब को एक साल के भीतर नहर को पूरा करने का निर्देश दिया। इसके बाद पंजाब ने फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया। 2004 में शीर्ष अदालत ने केंद्रीय लोक निर्माण विभाग को पंजाब में नहर के निर्माण का काम अपने हाथ में लेने को कहा।

फैसले के तुरंत बाद अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने विधानसभा में पंजाब टर्मिनेशन आफ एग्रीमेंट एक्ट (पीटीएए) पारित कर दिया, जिसने पड़ोसी राज्यों के साथ अपने सभी जल समझौतों को रद कर दिया। इसके बाद राष्ट्रपति भवन ने अधिनियम की वैधता पर निर्णय लेने के लिए मामले को सर्वोच्च न्यायालय में भेज दिया। 10 नवंबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने उस अधिनियम को रद कर दिया, जिसने पंजाब सरकार द्वारा सभी जल समझौतों को रद कर दिया था।

कोर्ट का फैसला लागू कराने से पहले आ गए चुनाव

पंजाब सरकार ने एसवाईएल नहर के निर्माण के लिए अधिगृहीत 5,376 एकड़ भूमि को गैर-अधिसूचित कर दिया और इसे मूल मालिकों को वापस करने की घोषणा कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2017 में एक आदेश पारित कर अपने पहले के फैसले पर अमल करने का आदेश दिया और दोनों राज्यों से हर कीमत पर कानून और व्यवस्था बनाए रखने को कहा।

तब केंद्र से कहा गया कि वह पारस्परिक रूप से सहमत समाधान खोजने के लिए दोनों राज्यों के साथ संयुक्त रूप से बैठकें करे, लेकिन कई दौर की बैठकें ऐसा करने में विफल रही हैं। सुप्रीम कोर्ट को आखिरकर हस्तक्षेप करते हुए केंद्र सरकार को कहना पड़ा कि वह अपनी देखरेख में एसवाईएल के निर्माण के लिए नोडल एजेंसी तय करे। समस्या का समाधान होने से पहले चुनाव आ गए। अब पंजाब सरकार के एक बार फिर सख्त रुख अपनाने से विवाद खत्म होता नजर नहीं आ रहा है। हरियाणा के मतदाताओं का दायित्व बनता है कि वह वोट मांगने आने वालों से पूछे कि उन्होंने अब तक एसवाईएल क्यों नहीं बनवाई।

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