बधिर ओलिंपिक के गोल्फ स्पर्धा के फाइनल में पहुंची हरियाणा की छोरी, बेटी से सोने की उम्मीद
झज्जर के गांव छप्पार निवासी गोल्फर दीक्षा डागर बधिर ओलिंपिक के गोल्फ कोर्स में सोना लाने की दौड़ में शामिल हो गई गई। जिसके लिए दीक्षा ने काफी लंबे समय तक गोरखपुर के गोल्फ कोर्स में अभ्यास किया। अब विदेशी धरा पर प्रतियोगिताओं के लिए जी-तोड़ मेहनत की है।
By Naveen DalalEdited By: Updated: Wed, 11 May 2022 08:50 PM (IST)
झज्जर, अमित पोपली। पांच साल पहले 2017 में तुर्की के सैमसन में आयोजित हुए बधिर ओलिंपिक में रजत पदक जीतने वाली छप्पार गांव की बेटी दीक्षा डागर से देश को सोने की उम्मीद है। दरअसल, गोल्फर दीक्षा डागर ने बधिर ओलिंपिक के फाइनल में जगह बनाकर स्वर्ण पदक जीतने की तरफ मजबूत कदम बढ़ाया है। शानदार प्रदर्शन करने वाली दीक्षा ने सेमीफाइनल में 2017 की कांस्य पदक विजेता नार्वे की आंद्रिया होव्सटीन हेलेगेर्डे को हराया है।
पांच साल पहले 2017 में तुर्की के सैमसन में दीक्षा ने जीता था रजत पदकदीक्षा ने क्वार्टर फाइनल छह और पांच से जीता था और वरीयता तय करने के लिए हुए स्ट्रोक प्ले में वह 14 शाट से शीर्ष पर रही। फाइनल में दीक्षा का सामना अमेरिका की खिलाड़ी से होगा। जो कि स्ट्रोक प्ले में दूसरे स्थान पर थीं। झज्जर के गांव छप्पार की बेटी के पास बधिर ओलिंपिक में दूसरा पदक जीतने का यह सुनहरा मौका है और वह अपने रजत पदक में सुधार करना चाहेंगी।
गोरखपुर के गोल्फ कोर्स में कर रही थी अभ्यासगांव छप्पार निवासी गोल्फर दीक्षा डागर ने पिछले दिनों काफी लंबे समय तक गोरखपुर के गोल्फ कोर्स में अभ्यास करते हुए विदेशी धरा पर हो रही प्रतियोगिताओं के लिए जी-तोड़ मेहनत की है। बता दें कि गोल्फर दीक्षा डागर को ओलिंपिक पोडियम स्कीम (टाप्स) में शामिल किया गया है। 21 वर्षीय बाएं हाथ की दीक्षा डागर पिछले साल ओलंपिक खेलों में 50 वें स्थान पर रहीं।
दीक्षा के पिता कर्नल नरेंद्र डागर की गोरखपुर क्षेत्र में पोस्टिंग की वजह से उन्होंने परिवार के साथ रहते हुए रेलवे के गोल्फ कोर्स में कड़ा अभ्यास किया। जिसके बूते बेशक ही वह अब शानदार प्रदर्शन कर रही है। दीक्षा के प्रदर्शन पर जिला ही नहीं पूरे देश को नाज है। आज देश के लिए गोल्फ में बड़ी उम्मीद दिख रही दीक्षा डागर की प्रतिभा को निखारने का काम पूर्व स्क्रैच गोल्फर उनके पिता कर्नल नरेंद्र डागर ने उन्हें गोल्फिंग की शुरुआती बारीकियां सिखाईं। हमेशा सुनने की अक्षमता को गंभीरता से न लेने में उनकी मदद की। हालांकि, दीक्षा टेनिस, तैराकी और एथलेटिक्स में भी पारंगत हो गई थीं।
शारीरिक चुनौती को बनाया हौसलास्वजनों के मुताबिक दीक्षा डागर ने अपनी शारीरिक चुनौती को कभी अपनी कमी नहीं बनने दिया। करियर का सबसे पहला मैच उन्होंने 12 साल की उम्र में इंडियन गोल्फ यूनियन नेशनल सब जूनियर सर्किट में खेला था। जिसके बाद उनके करियर की गाड़ी फुल स्पीड में दौड़ी। घरेलू टूर्नामेंट के अलावा दीक्षा डागर ने कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट भी खेलें हैं। देश के बाहर उनका पहला टूर्नामेंट सिंगापुर में हुआ था। दीक्षा टेनिस, बैडमिंटन और तैराकी जैसे खेल भी खेलती हैं। गोल्फ से उन्हें खास प्यार है।
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