महंगाई डायन खाय जात है, स्कूली फीस से लेकर दवाईयां सबकुछ हुआ महंगा, बिगड़ा बजट
महंगाई ने मध्यमवर्गीय परिवारों की कमर तोड़ दी है। खाने-पीने की चीजों से लेकर स्कूल की फीस और दवाईयों तक सबकुछ महंगा हो गया है। जिससे मध्यमवर्गीय परिवारों का बजट बिगड़ गया है। निजी स्कूल में दाखिले के लिए 15 से 20 हजार रुपये का खर्च आ रहा है।
By Rajesh KumarEdited By: Updated: Sat, 23 Apr 2022 01:33 PM (IST)
हिसार, जागरण संवाददाता। पिछले तीन सालों में कोरोना ने जहां लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित किया है। वहीं महंगी दवाओं ने भी लोगों का बजट बिगाड़ा है। गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए अप्रैल महीना किसी सिरदर्दी से कम नहीं होता। क्योंकि इसी महीने में सबसे अधिक आर्थिक बोझ परिवारों पर पड़ता है। बढ़ती महंगाई के बीच राशन, बच्चों की स्कूल फीस, किताबें, स्कूल ड्रैस और स्टेशनरी पर होने वाले खर्च से अप्रैल महीना आम लोगों के लिए वैसे ही बजट कम, खर्चा अधिक वाला रहता है।
किसी निजी स्कूल में दाखिले के लिए आम आदमी को 15 से 20 हजार रुपये का खर्च एक बच्चे के लिए आ रहा है। ऐसे में रोजमर्रा की दवाओं की कीमतें बढ़ने के कारण भी आम लोगों को बजट बिगड़ने की समस्या से दो-चार होना पड़ता है। अप्रैल महीने में हिसार में पिछले तीन सालों में दवाओं के रेट बढ़ने की बात करें तो सामान्य दवाओं की कीमत भी लगभग दुगूनी हो गई है। सामान्य बुखार होने पर दी जाने वाली पैरासिटमोल टेबलेट वर्ष 2020 में 10 रुपये की 10 टेबलेट की स्ट्रिप मिल जाती थी, यानि उस दौरान एक टेबलेट की कीमत एक रुपये पड़ती थी। वहीं अब 10 टेबलेट की कीमत 20 रुपये हो गई है।
इनकी कीमत भी बढ़ी
जुकाम के लिए ली जाने वाली सिनारेस्ट दवा वर्ष 2020 में 10 गोलियाें की कीमत 45 रुपये थी, जो अब बढ़कर 92 रुपये तक पहुंच गई है। इसके अलावा खांसी के लिए दिया जाने वाला कोरेक्स कफ सिरप वर्ष 2020 में 90 रुपये का आता था, जिसकी कीमत अब 126 पर पहुंच गई है। इनके अलावा बच्चों के पैम्फर की कीमतों में भी 50 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई है। पहले जहां एक पैम्फर 10 रुपये का आता था। वहीं अब एक पैम्फर की कीमत ही 15 से 20 रुपये तक पहुंच गई है। इनके अलावा शुगर, बीपी, सिर दर्द, आंखों की दवा, जोड़ो के दर्द की दवा, एलर्जी की दवा आदि सभी तरह की दवाओं में भी 50 से 100 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है।
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