Kisan Andolan: पहले की तरह नहीं आते फल-सब्जियों से भरे वाहन, खरीदकर लाते हैं किसान
बहादुरगढ़ के टीकरी बॉर्डर पर आठ महीने से किसान डटे हैं। पर अब पहले जैसा जोश नहीं है। अब तंबू में बैठे सब कुछ हासिल नहीं है। यह स्थिति तब है जब पहले के मुकाबले टीकरी बार्डर पर 30 फीसद तक ही संख्या रह चुकी है।
By Umesh KdhyaniEdited By: Updated: Sat, 31 Jul 2021 03:17 PM (IST)
जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे आंदोलन में एक-एक करके हर पहलू फीका पड़ चुका है। कभी वह भी दिन थे जब आंदोलन के बीच रोजाना सब्जियों और फल से भरे वाहन आते थे। गांवों से ट्रैक्टर ट्रालियों में सब्जियों की बोरियां भरके लाई जाती थीं, लेकिन अब तस्वीर अलग है।
काफी किसानों को सुबह और शाम सब्जी मंडी का रुख करते देखा जा सकता है। वे सब्जियां खरीद कर लाते हैं, पकाते हैं, और खाते हैं। अब तंबू में बैठे सब कुछ हासिल नहीं है। यह स्थिति तब है जब पहले के मुकाबले टीकरी बार्डर पर 30 फीसद तक ही संख्या रह चुकी है। यह अलग बात है कि आंदोलनकारी नेता यह दावा करते हैं कि जैसे ही जरूरत होगी तो हरियाणा और पंजाब से भारी संख्या में किसान 24 घंटों के अंदर बार्डर पर पहुंच जाएंगे। लेकिन ऐसे दावों की हकीकत को सभा के मंच से रोजाना होने वाली अपील से समझा जा सकता है।
अपीलों और दलीलों का नहीं असर
कई वक्ता दिन भर में यह जरूर कहते हैं कि जो वापस गए हुए हैं उन्हें यहां पर बुलाओ और जो आंदोलन स्थल पर ही तंबुओं में डटे रहते हैं वे भी रोजाना सभा में शामिल हों, ताकि यहां पर उत्साह बना रहे। लेकिन, ऐसी अपील का असर नहीं हो रहा है। न तो घरों को गए सभी किसान वापस लौट रहे हैं और न ही सभा में संख्या पहले जितनी बन पा रही है।
लाल किला हिंसा के बाद फीका हुआ जोश
26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर मार्च के दौरान लाल किले पर जो हिंसा हुई उसके बाद दोबारा आंदोलन में वह जोश नही बन पा रहा, लेकिन हिंसा की उस घटना के बाद से दिल्ली पुलिस भी सतर्कता दिखा रही है और इधर संयुक्त मोर्चा के नेता भी दोबारा दिल्ली का रुख करते समय फूंक-फूंक कर कदम रख रखे हैं। हाल ही में जब संसद का सत्र चल रहा है तो जंतर-मंतर पर आंदोलनकारियों की ओर से किसान संसद लगाई जा रही है। यह बताने की जरूरत नहीं की पुलिस ने इसको लेकर किस तरह की सुरक्षा व्यवस्था कर रखी है और आंदोलनकारी किसान भी खुद वहां जाने के लिए कोई लापरवाही नहीं बरत रहे हैं।
लंबे होता आंदोलन, लेकिन रंग फीका
कुल मिलाकर आंदोलन भले ही लंबा होता जा रहा है, लेकिन इससे उत्साह का रंग फिलहाल तो उतरा हुआ है। अब अगर घरों से यहां आने वाले प्रदर्शनकारी यह समझें कि आंदोलन स्थल पर खाने-पीने की कमी नहीं होगी, तो यहां आकर उन्हें मालूम पड़ेगा कि आंदोलन स्थल पर ठहरने के लिए कई व्यवस्था खुद करनी होगी।
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