रोहतक एमडीयू में छात्रों के हक की आवाज बनीं मनीषा, बोलीं- बचपन से मां-बाप का संघर्ष देखा
रोहतक एमडीयू में एक्टिव विद्यार्थी संगठनों में छात्र एकता मंच की मनीषा इकलौती छात्रा पदाधिकारी है जो छात्रों के हकों आवाज बन रही है। छात्रा मनीषा बताती हैं कि आर्थिक तंगी के चलते दो बड़े भाई स्नातक तक ही पढ़ाई कर सके। संसाधनों का हमेशा से अभाव रहा है।
रोहतक, केएस मोबिन। मां पढ़ना-लिखना नहीं जानती। पिता नौंवी कक्षा तक ही स्कूल जा सके। घर का गुजर-बसर दिहाड़ी-मजदूरी से चलता है। किसी तरह हम भाई-बहनों की कालेज तक की शिक्षा हुई है। माता-पिता का संघर्ष बचपन से देखा है। काम के बाद ठेकेदार की दुत्कार, समय से दिहाड़ी न मिलना, इन सबसे बचपन से नाता है। बड़े संघर्षों के बीच कालेज पहुंची हूं, जो खुद झेला नहीं चाहती दूसरे झेले। मेरा उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा छात्र-छात्राओं को खुद के अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति संवेदनशील बनाना है। महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय (एमडीयू) की एमए राजनीति विज्ञान की छात्रा मनीषा छात्र एकता मंच की सचिव हैं। 21 वर्षीय मनीषा, एमडीयू में एक्टिव विद्यार्थी संगठनों में इकलौती छात्रा हैं जोकि किसी बड़े पद पर हैं, ज्यादातर संगठनों में उच्च पदों पर छात्र ही काबिज हैं। लेकिन, सोनीपत के कोहला गांव निवासी मनीषा इस रूढ़िबद्ध धारणा को तोड़ रही हैं।
संगठन छात्र एकता मंच की हैं सचिव, माता-पिता मजदूरी करके चला रहे घर का गुजर-बसर
छात्र एकता मंच में सचिव ही सबसे बड़ा पद होता है। संगठन के सदस्यों ने उनकी काबिलियत के आधार पर इस पद के लिए नियुक्त किया है। करीब एक वर्ष से इस पद पर बनी हुई हैं। मनीषा बताती हैं कि 12वीं तक की पढ़ाई गांव के ही स्कूल से हुई है। वह भूगोल में रूचि रखती थी, लेकिन स्कूल में इस विषय के अध्यापक ही नहीं थे। इसलिए राजनीति विज्ञान विषय चुना। 12वीं की परीक्षा मेरिट में पास की। माता-पिता ने रोहतक के पंडित नेकीराम शर्मा राजकीय कालेज में दाखिला दिला दिया। किसी के अधिकारों का हनन होते देख नहीं पाती। विद्यार्थी संगठन छात्र एकता मंच से साथ जुड़ गई। छात्र-छात्राओं के हकों के लिए संघर्ष शुरू किया। संगठन के लिए विभिन्न कार्यक्रम तैयार करना। विद्यार्थियों के मुद्दों पर विरोध मार्च का आयोजन, समय-समय पर संगठन के पत्रों के लिए लेख लिखना आदि कार्यों की जिम्मेदारी का निर्वहन मनीषा करती हैं।
सिर्फ डिग्री ही शिक्षा नहीं, आसपास के माहौल को जानना जरूरी
छात्रा मनीषा बताती हैं कि आर्थिक तंगी के चलते दो बड़े भाई स्नातक तक ही पढ़ाई कर सके। संसाधनों का हमेशा से अभाव रहा है। छात्र एकता मंच के ही जसमिंदर गांव से ही हैं। वह हमेशा सिलेबस के साथ ही अन्य पुस्तकें पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। पहली बार भगत सिंह के विचारों को उन्हीं की दी किताबों में पढ़ा। इन किताबों से यह सोच विकसित हुई कि महज डिग्री प्राप्त करना ही शिक्षा नहीं है जब तक हम अपने आसपास के माहौल को सही से न जान लें, मुद्दों की गहराई से जानकारी नहीं होने से हमारा अध्ययन ही अधूरा है।