झज्जर में 16 साल पहले पांच गायों से शुरू की दूध डेयरी मगर आज बनाई अलग पहचान
पांच गायों से डेयरी की नींव रखने वाले ईश्वर आज 75 से अधिक गायों को पाल रहे हैं। गायों की डेयरी से ही आज अलग पहचान बनाई और दूसरों के लिए भी प्रेरणा स्त्रोत बन रहे हैं। गायों के दुग्ध से उत्पन्न खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता खींच ले आती है।
By Manoj KumarEdited By: Updated: Mon, 06 Sep 2021 10:38 AM (IST)
जागरण संवाददाता,झज्जर : करीब 16 साल पहले (वर्ष 2005 में) में पांच गायों से डेयरी की नींव रखने वाले ईश्वर आज 75 से अधिक गायों को पाल रहे हैं। गायों की डेयरी से ही आज अलग पहचान बनाई और दूसरों के लिए भी प्रेरणा स्त्रोत बन रहे हैं। गायों के दुग्ध से उत्पन्न खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता ग्राहकों भी भी खींचा चला ले आती है। दूर-दराज से ग्राहक खरीददारी के लिए आते हैं। ताकि उन्हें उच्च गुणवत्ता के दूध से बने खाद्य पदार्थ मिलें। सीजन के समय में 40-50 क्विंटल दूध की खपत हो जाती है। वहीं फिलहाल कोरोना महामारी के दौर में भी 2-3 क्विंटल दूध की खपत हो रही है। स्वेत क्रांति को बढ़ावा देते हुए आज केवल खुद ही नहीं, बल्कि अन्य मजदूरों को भी रोजगार दिया हुआ है।
गांव माछरोली निवासी ईश्वर सिंह बताते हैं कि वर्ष 2005 में वे हनुमानगढ़ से पांच गाय लेकर आए थे। पहले उन्होंने गांव के ही मकान में डेयरी की। वहां पर ही गायों का दूध निकालकर बेचते थे। लेकिन इसके बाद उन्होंने अपने खेतों में डेयरी खोलने का निर्णय किया। जब खेत में डेयरी बनाई, उस समय उन्होंने गायों की संख्या 50 कर ली। धीरे-धेरी करते हुए उनके पास करीब 150 तक गाय पहुंच गई। हालांकि अब उनके पास करीब 75 गाय ही डेयरी में मौजूद हैं। गायों के रखरखाव के लिए करीब डेढ़ एकड़ में डेयरी बनाई हुई है।
जिसमें सोलर सिस्टम से लेकर अन्य सुविधाएं भी की हुई हैं। चारे के लिए उनके डेयरी के साथ लगते जमीन में खेतीबाड़ी करते हैं। वहीं डेयरी में गायों के गोबर को भी अपने ही खेतों में डालते है। खाद रहित आर्गेनिक खेती को भी बढ़ावा दे रहे हैं। जहां लोग पैदावार अधिक लेने के लिए खेती में उर्वरक का इस्तेमाल करते हैं, वहीं ईश्वर गायों के गोबर की खाद का इस्तेमाल करते हैं।
जहां एक तरफ लोगों की कोरोना महामारी में नौकरियां छूटी और बेरोजगारी भी बढ़ी। वहीं ईश्वर सिंह ना केवल खुद को रोजगार संपन्न बना रहे हैं, बल्कि दर्जन भर अन्य लोगों को भी रोजगार देने का काम करते हैं। उनकी डेयरी में काम करने के लिए मथुरा से कारिगरों को बुलाया गया है। वे डेयरी में ही दूध से दही, लस्सी, घी व मिठाई आदि उत्पाद बनाते हैं। लोग भी दूर-दूर से यहां पर पहुंचते हैं। ये उन लोगों के लिए भी प्रेरणा बन रहे हैं, जो रोजगार नहीं होने के कारण परेशान हैं।
ईश्वर सिंह ने बताया कि वे अपनी गायों की डेयरी को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रहे हैं। इसी उद्देश्य से डेयरी में सोलर सिस्टम लगाया हुआ है। ताकि बिजली के लिए परेशानी ना हो। साथ ही गोबर गैस प्लांट लगाने की भी तैयारी चल रही है। जिससे डेयरी में मौजूद गायों के गोबर से गैस बनाई जा सके। जो आय का एक अतिरिक्त साधन हो जाएगा। इसके लिए भी तैयारी चल रही है। साथ ही डेयरी की सुंदरता पर भी ध्यान दिया जा रहा है।
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